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अपराध मुक्त यूपी का दावा, तो इतने दागियों को किसने टिकट बांटे?

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UP Assembly Elections 2022: उत्तर प्रदेश अपराध मुक्त है या नहीं, इस पर जनता की राय अलग हो सकती है और सियासी राय जुदा. यूपी की लड़ाई में कानून व्यवस्था को लेकर वार पलटवार हो रहा है. बीजेपी अखिलेश के कार्यकाल को माफियाकाल बता रही है तो अखिलेश भी पलटवार में पीछे नहीं है. मायावती दोनों को ही कानून व्यवस्था पर घेर रही हैं. इस चुनाव में हर कोई अपना राज अपराध मुक्त साबित करने में जुटा है. राजनीति में जो कहा जाता है, सच वो नहीं होता, बल्कि कई बार उसके पीछे कई तहों में छिपा रहता है. अपराध मुक्त यूपी का दावा करने वाली सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों को देखें तो लगता है कि उनकी कोशिश प्रदेश में अपराध मुक्ति से ज्यादा राजनीतिक हित साधने की है.

परेशान करने वाली है जमीनी हकीकत

यूपी में कानून के राज को लेकर हर दल के अपने दावे हैं, लेकिन इनकी जमीनी हकीकत परेशान करने वाली है. तीसरे चरण की जिन सीटों पर मतदान होने वाले हैं, वहां एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के आंकड़े के मुताबिक, हर पार्टी ने आपराधिक मामलों में घिरे लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया है. ADR एक ऐसी संस्था है, जो देश में चुनावी और राजनीतिक सुधार के लिए काम करती है.

ADR के ताजा आंकड़े बताते हैं कि तीसरे चरण में किस्मत आजमा रहे हर पांचवे उम्मीदवार की छवि पर कहीं न कहीं दाग जरूर है. तीसरे चरण में कुल 59 सीटों पर मतदान होने जा रहे हैं. इसके लिए 623 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें 135 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. यानी 22 फीसदी उम्मीदवार दागी हैं. आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों में 103 यानी 14 फीसदी उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनपर गंभीर अपराध के मामले हैं.

तीसरे चरण में कितने दागी?

  • कुल सीट                        59
  • कुल उम्मीदवार               623
  • आपराधिक मामले          135    यानी 22% फीसदी
  • गंभीर आपराधिक केस    103   यानी  17% फीसदी

सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि दागियों पर भरोसा करने में कोई पार्टी पीछे नहीं है. चुनावी रैलियों में भले ही हर पार्टी अपना दामन साफ बताए, लेकिन दागी उम्मीदवारों के मामले में सबके रिकॉर्ड कमोबेश एक जैसे ही हैं. तीसरे दौर की 59 सीटों की बात करें तो समाजवादी पार्टी के 59 फीसद प्रत्याशियों पर आपराधिक मुकदमे हैं और इसमें से भी 36 फीसद प्रत्याशियों पर गंभीर आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं. बीजेपी ने इन्हीं 59 सीटों पर प्रत्याशियों की बात करें तो 46 फीसद प्रत्याशियों पर आपराधिक केस दर्ज हैं और समाजवादी पार्टी के ही बराबर उसके 36 फीसद उम्मीदवारों पर गंभीर केसों में केस हैं. बीएसपी के 39 फीसद प्रत्याशी दागी हैं और उसमें से 31 फीसद गंभीर मुकदमों वाले हैं. वहीं 36 फीसद कांग्रेसी प्रत्याशियों पर आपराधिक केस हैं, जिसमें से 18 फीसद उम्मीदवारों पर गंभीर केस दर्ज हैं.

तीसरे चरण में किस पार्टी में कितने दागी?

      पार्टी            आपराधिक केस       गंभीर आपराधिक केस

  • SP                52%                    36%
  • BJP              46%                    36%          
  • BSP             39%                     31%
  • कांग्रेस          36%                     18%
  • AAP            22%                      22%

साफ है कि इस मामले में किसी का दामन पूरी तरह से साफ नहीं है और हैरानी वाला पहलू ये है कि इस लिस्ट में ऐसे भी नाम है, जिनपर हत्या से लेकर बलात्कार तक के केस दर्ज हैं. तीसरे चरण में दो प्रत्याशी ऐसे हैं, जिनपर हत्या का केस दर्ज है, जबकि हत्या की कोशिश के मुकदमे वाले 18 प्रत्याशी मैदान में हैं. महिलाओं पर अत्याचार के केस 11 प्रत्याशियों पर दर्ज हैं, जबकि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के केस वाले दो प्रत्याशी भी चुनावी दंगल में ताल ठोंक रहे हैं.

तीसरे चरण के दागी

अपराध                        कितने उम्मीदवार

  • हत्या का केस                         2
  • हत्या का प्रयास                      18
  • महिला पर अत्याचार               11
  • बलात्कार का मामला               2

हत्या और बलात्कार जैसे मामले में आरोपी अब जनता के प्रतिनिधि बनने की रेस मे हैं और बड़े बड़े दावे करने वाली पार्टियों इन्हें अपना उम्मीदवार बनाती है तो सवाल नीयत पर उठता है. सवाल है कि दागी प्रत्याशियों को जीत के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां मैदान में उतारती हैं और उसी मंच से अपराध मुक्त प्रदेश का नारा भी बुलंद करती हैं. हांलाकि राजनीति में आपराधिक मुकदमे दर्ज होते रहते हैं, क्योंकि सार्वजनिक जीवन में लोगों के विरोधियों की साजिश का शिकार होने की संभावना भी रहती है, लेकिन समस्या तब आती है जब अपराध की दुनिया से लोग राजनीति की गली में कदम रखते हैं और ये ट्रेंड भारत की राजनीति में दशकों से चला आ रहा है. सवाल ये भी है ये आखिर कब तक चलेगा. जवाब राजनीतिक पार्टियां नहीं देंगी, जवाब जनता को खुद ही तलाशना होगा.

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