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समाज में बदलाव ला सकते हैं जनसेवा करने वाले आईएएस

  • पुस्तक ‘मेकिंग ए डिफ्रेंस: आईएएस एज ए कॅरियर’ पर लेखक आलोक रंजन से बातचीत
  • आईएएस की तैयारी कर रहे लोगों के लिए उपयोगी साबित होगी
  • भारतीय नौकरशाही की गहन पड़ताल भी करती है ये किताब

कमलेश श्रीवास्तव


लखनऊ। एक दौर वो भी जब मुख्यमंत्री के बाद मुख्य सचिव का महत्व होता था। मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधि होने के नाते कई जन समस्याओं को स्वयं सुन कर ही उनका समाधान कर देता था। पंचम तल पर मुख्य सचिव से मिलना भी सहज ही होता था। योगेन्द्र नारायण से लेकर आलोक रंजन तक मुख्य सचिव की अपनी परम्पराएं हुआ करती थीं। ज्यादातर लोग अपने सूबे के मुख्य सचिव को पहचानते थे लेकिन अब वो दौर जा चुका है। इन दिनों मुख्य सचिव शासनादेश में नीचे की ओर हस्ताक्षर के रूप में या कहे कागजों में ही सिमट कर रह गये हैं। टीम इलेवन और टीम नाइन की कतार में मुख्य सचिव का पद गुम सा लगता है।

आलोक रंजन उस दौर के मुख्य सचिव की अंतिम कड़ी कहे जा सकते हैं जब मुख्य सचिव तक आम जनता की पहुंच थी या कहें मुख्य सचिव के दरवाजे हर किसी के लिए खुले रहते थे। आगरा एक्सप्रेस वे को मूर्त रूप देने वाले व अपने काम और विकासवादी दृष्टिकोण के चलते सेवा विस्तार पा चुके 1978 बैच के व देश भर में यूपीएससी की परीक्षा में चौथे नम्बर पर रहे आलोक रंजन एक बार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने भावी आईएएस व वर्तमान नौकरशाहों के लिए ‘मेकिंग ए डिफ्रेंस: आईएएस एज ए कॅरियर’ नाम से किताब लिखी है। यह किताब सिविल सेवा में आने वाले या कहें आईएएस बनने का सपना संजोए युवाओं को प्रेरणा के साथ साथ ऊर्जा भी देगी। इस किताब में वर्तमान नौकरशाही के लिए भी बहुत कुछ है। भारतीय नौकरशाही की गहन पड़ताल करती ‘मेकिंग ए डिफ्रेंस: आईएएस एज ए कॅरियर’ किताब अंग्रेजी में हैं और इसे पेग्विन बुक्स इंडिया द्वारा प्रकाशित किया गया है। मार्केट में जल्द ही इसका हिन्दी संस्करण भी आने की उम्मीद है।

आलोक रंजन अपनी किताब मेकिंग ए डिफ्रेंस: आईएएस एज ए कॅरियर के बारे में बताते हैं कि ये किताब उन लोगो के लिए लिखी गई है जो आईएएस बनना यानी सिविल सेवा में आना चाहते हैं या फिर आई ए एस सेवा में हैं। जो युवा आईएएस बनना चाहते हैं उनके लिए यह किताब उपयोगी है। किताब की शुरूआत में ही मैने सिविल सेवा में आने वाले युवाओं से पूछा है कि सिविल सेवा में वह क्यों व किसलिए आना चाहते हैं, आईएएस बनने के लिए वहां कहां और किससे प्रेरित हुए उनका इस क्षेत्र में आने का उद्देशय क्या है। इन सवालों के जवाब जब युवा खुद में तलाशेंगे तो उनके लिए सफलता की राह दिखना आसान हो जायेगा।

आलोक बताते हैं कि मैने सिविल सेवा के इच्छुक युवाओं से सिर्फ सवाल ही नहीं किए हैं बल्कि उन्हें ये भी बताया कि परीक्षा में सफलता के लिए तैयारी किस प्रकार से करें। मैने युवाओं से किताब के माध्यम से संवाद स्थापित करने के दौरान यह भी बताया है कि आईएएस बन कर आप जनता की अधिक से अधिक सेवा कर सकते हैं। सिविल सेवा के माध्यम से समाज में बदलाव भी लाया जा सकता है। जो युवा आईएएस बन कर ईमानदारी से काम करेगा उसे जनता की शाबाशी और आशीर्वाद मिलेगा। सफलता उसके कदम चूमेगी।

नौकरशाही को भी चुनौतियां कम नहीं मिलती। सरकार और जनता दोनो को खुश करने में सामजस्य बैठाना पड़ता है। नौकरशाहों पर अहंकारी घमंडी होने का आरोप लगता है कुछ ऐसे होते होंगे उन्हें ये लगता है कि देश की सबसे बड़ी परीक्षा पास कर के आए हैं सबसे बड़ी सेवा में हैं ये नहीं होना चाहिए। किसी भी आईएएस को ये समझना होगा कि जनता सर्वोपरि है हमें उसकी हर समस्या हर में सुननी होगी और उसे दूर भी करना होगा। मैं जनता के लिए हमेशा उपलब्ध रहा। समस्याओं को दूर करने की कोशिश की। मैने अपनी किताब में वर्तमान नौकरशाही को सकारात्मक रहने की सलाह दी है।

कार्यकाल में चुनौतियों के सवाल पर आलोक का कहना है कि उन्होंने अपने 38 वर्ष के कार्यकाल में पांच साल केन्द्र में तो 33 साल प्रदेश में गुजारे हैं। वैसे तो अनेक चुनौतियां आईं उनका सामना किया। लेकिन अपने सेवा काल में मुझे जो संतोष आगरा एक्सप्रेस बनवा कर मिला वैसा कभी नहीं मिला। लखनऊ आगरा एक्सप्रेस को बनाने का ये 308 किलोमीटर का एक्सप्रेसवे शुरू से ले कर आखिर तक मेरे सेवा काल मे, मेरे चीफ सेकेटरी वाले पीरियड मे बना। इसको केवल 23 से 24 महीने के अंदर हमने बना कर दिखा दिया जबकि कही भी इतना बड़ा एक्सप्रेसवे बन रहा होता तो 5-6 साल से ज्यादा समय लगता। एक्सप्रेस वे निर्माण में बड़ी चुनौती सभी विभागों के बीच तालमेल करना था। अंत में इस क्षेत्र में आने वाले युवाओं व वत्रमान आईएएस जनों से बस इतना ही कहूंगा कि चुनौतियां आपको सिखाती हैं मजबूत बनाती हैं अत: कभी भी चुनौतियों से न घबराएं व इसका दिल खोलकर स्वागत करें।

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