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IIT कानपुर ने अपने शोध में दावा किया है कि मोक्षदायिनी गंगा नदी जल्द ही अपना रौद्र रूप दिखा सकती है. इसके पीछे की वजह नदी के प्रवाह का स्वरूप बदलना बताई गई है. दरअसल, IIT कानपुर और भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु ने बाढ़ के पूर्वानुमान के लिए गंगोत्री ग्लेशियर से ऋषिकेश तक 21 हजार वर्ग किमी क्षेत्र का अध्ययन किया. इसमें पाया कि बाढ, बांध और बैराज के निर्माण से बाढ़ क्षेत्र तेजी से बदल रहा है उनके शोध को नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट ने भी प्रकाशित किया है.
IIT कानपुर की रिपोर्ट भेजी जाएगी जलशक्ति मंत्रालय के पास
IIT कानपुर अब यह रिपोर्ट जलशक्ति मंत्रालय को भेजी जाएगी. IIT कानपुर के भू विज्ञान विभाग में प्रोफेसर डा.राजीव सिन्हा ने बताया कि उन्होंने डा. प्रदीप मजूमदार व सोमिल स्वर्णकार के साथ एक साल तक वर्षा, बाढ़, बैराज-बांध निर्माण, गाद के 50 साल के आंकड़ों का विश्लेषण किया. इसमें पता चला कि गंगोत्री ग्लेशियर से निकलने वाली गंगा नदी और सतोपंथ ग्लेशियर से शुरू होने वाली अलकनंदा नदी के प्रवाह और बेसिन में काफी बदलाव हुआ है. अध्ययन में यह भी पता लगा है कि अलकनंदा बेसिन में वर्ष 1995 से वर्ष 2005 तक पानी का प्रवाह दोगुना हो चुका है. इसे नदी का चरम प्रवाह माना गया है. वहीं, गंगा के बेसिन में अभी इतना परिवर्तन नहीं हुआ है, लेकिन आने वाले वर्षों में इसमें भी चरम प्रवाह का अनुमान लगाया जा रहा है.
नदियों का स्वरूप बदलने से बढ़ रही है मुसीबत
उन्होंने बताया कि माना जा रहा है कि नदियों के स्वरूप में बदलाव होने से भविष्य में प्रवाह में वृद्धि होगी और गंगा बेसिन में बाढ़ का क्षेत्र विस्तारित हो सकता है. प्रो. राजीव सिन्हा का कहना है कि वर्तमान व भविष्य की जरूरतों को देखते हुए बांध और बैराज बनाना जरूरी है, लेकिन उससे ज्यादा साफ-सफाई और गाद प्रबंध जरूरी है. इसके सुझाव जलशक्ति मंत्रालय को भी भेजा जाएगा. इसके जरिये बाढ़ आदि त्रासदी पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है.
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