अंतरराष्ट्रीय

अखुंदजादा जिंदा या मुर्दा? तालिबान के सुप्रीम लीडर के गायब होने का रहस्य और पूरा सच

Mystery of Taliban Supreme Leader Death: तालिबान ने दूसरी बार अगस्त के मध्य में काबुल पर कब्जा कर लिया. अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करने के बाद तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्ला अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) के ठिकाने के लेकर सालों पुराना रहस्य फिर गहरा गया. बुजुर्ग मौलवी जिंदा हैं या मर चुका है, इस बारे में अनिश्चितता है. सबसे खास बात ये है कि सबसे ज्यादा समर्पित विश्लेषकों को भी इस बारे में संदेह है कि वास्तव में तालिबान के समूह का नेतृत्व कौन कर रहा है. AFP की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान के एक प्रवक्ता ने बयान दिया था कि अखुंदजादा कंधार में जिंदा है. इसके करीब 2 महीने बाद दक्षिणी शहर में अफवाहें फैल गई थीं कि “अमीर” ने कुरानिक स्कूल या मदरसे में भाषण दिया था.

तालिबान के अधिकारियों ने 10 मिनट की एक ऑडियो रिकॉर्डिंग जारी करके हकीमिया मदरसे में उसकी उपस्थिति पर मुहर लगा दी. इस ऑडियो रिकॉर्डिंग में कथित तौर पर अखुंजादा कहते हुए सुना गया कि “ईश्वर अफगानिस्तान के उत्पीड़ित लोगों को इनाम दें, जिन्होंने काफिरों और उत्पीड़न करने वालों से 20 साल तक लड़ाई लड़ी. इससे पहले उसकी सार्वजनिक प्रोफाइल इस्लामिक छुट्टियों के लिए जारी किए गए सालाना लिखित संदेशों तक ही सीमित थी. 30 अक्टूबर के बाद से ये अफवाह आंधी की तरफ फैल गई और इसने लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया.

क्या सच में भाषण देने आया अखुंदजादा

रिपोर्ट के मुताबिक मदरसे के सुरक्षा प्रमुख शकरुल्लाह ने बताया कि जब सर्वोच्च नेता ने दौरा किया तो वह “सशस्त्र” थे और “तीन सुरक्षा गार्ड” उनके साथ थे. उन्होंने कहा, यहां तक ​​कि सेलफोन और साउंड रिकॉर्डर को भी कार्यक्रम में जाने की इजाजत नहीं दी गई थी. मदरसे में मौजूद छात्रों में से एक ने कहा कि हम उन्हें देख रहे थे और बस रो रहे थे. जब पूछा गया कि क्या वो पुष्टि कर सकते हैं कि वह अखुंजादा ही था. इस पर छात्रों ने कहा कि कि वो इतने खुश थे कि उनका चेहरा देखना ही भूल गए.

क्या इस मजबूरी में नहीं आया सामने

तालिबान नेताओं के लिए युद्ध के अंतिम दशक में सार्वजनिक उपस्थिति  को कम करना मजबूरी हो गई क्योंकि घातक ड्रोन के हमले बढ़ गए थे. 2016 में अपने पूर्ववर्ती मुल्ला अख्तर मंसूर के इसी तरह के एक हमले में मारे जाने के बाद अखुंदजादा शीर्ष पर पहुंच गया. उसने अल-कायदा प्रमुख अयमान अल-जवाहिरी का समर्थन हासिल कर लिया, जिसने उन्हें “वफादारों का अमीर” कहा.

पांच साल पहले जारी हुई थी एक तस्वीर

ओसामा बिन लादेन के उत्तराधिकारी के इस समर्थन ने तालिबान के लंबे समय के सहयोगियों के साथ उसकी जिहादी साख को मजबूत करने में मदद की. तालिबान ने पांच साल पहले अखुंदजादा की सिर्फ एक तस्वीर जारी की थी, जिस वक्त उसने समूह की बागडोर संभाली थी. इस तस्वीर में उसे एक ग्रे दाढ़ी, सफेद पगड़ी में दिखाया गया था. तालिबान के अनुसार ये तस्वीर दो दशक पहले ली गई थी. मदरसे के प्रमुख मौलवी सैद अहमद ने ये भी कहा कि सर्वोच्च नेता की उपस्थिति ने उनकी मौत के बारे में मौजूद “अफवाहों और प्रचार” को खारिज कर दिया.

‘लंबे समय से मौत’ का रहस्य

अपदस्थ अफगान शासन के अधिकारी और कई पश्चिमी विश्लेषक इस बात पर जोर देते हैं कि अखुंदजादा की मौत सालों पहले हो गई थी. उसकी मौजूदगी को दिखाने के लिए मदरसा का प्रोग्राम एक धोखा था. तालिबान के फाउंडर मुल्ला उमर की 2013 में मौत के बाद तालिबान ने उसके दो साल तक जिंदा रहने का ढोंग किया. पूर्व शासन के एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि “खुद अखुंदजादा लंबे समय पहले मर चुका है और काबुल पर कब्जे से पहले उनकी कोई भूमिका नहीं थी.”

क्या आत्मघाती हमले में मारा गया अखुंदजादा

सूत्रों का मानना है कि वह अपने भाई के साथ पाकिस्तान के क्वेटा में ” करीब तीन साल पहले” एक आत्मघाती हमले में मारा गया था. इस सिद्धांत को कभी-कभी थोड़े बदलाव के साथ कई विदेशी खुफिया एजेंसियां भी विश्वसनीय मानती हैं. एक अलग क्षेत्रीय सुरक्षा सूत्र ने बताया कि अखुंदजादा की कथित मौत को लेकर “कोई भी पुष्टि नहीं करेगा और कोई भी इनकार नहीं करेगा.” 

हम अखुंदजादा के बारे में सब जानते हैं

कंधार के पास एक विशाल पठार पर बसे एक जिले पंजवाई में सम्मानित धर्मशास्त्रियों की एक पंक्ति कहती है कि अखुंदजादा के बारे में सभी जानते हैं. अमीर का जन्म स्परवान गांव में हुआ था. सर्वोच्च नेता के एक युवा सेनानी और पूर्व छात्र नियामतुल्ला के मुताबिक “सोवियत आक्रमण (1979) के समय गांव में लड़ाई छिड़ गई और हिबतुल्ला पाकिस्तान के लिए रवाना हो गया.”

कैसे शीर्ष पर पहुंचा अखुंजादा

इसके बाद अखुंदजादा एक सम्मानित विद्वान बन गए और उसने “शेख अल-हदीस” की उपाधि हासिल की. 1990 के दशक की शुरुआत में जब सोवियत कब्जे के मद्देनजर इस्लामवादी विद्रोह जोर पकड़ रहा था. अखुंदजादा, अपने तीसवें दशक में गांव लौट आया. वह 65 वर्षीय ग्रामीण अब्दुल कयूम को याद करते हुए “शहर और पाकिस्तान से आने वाले लोगों” के साथ विचार-विमर्श करता था. उसकी आधिकारिक जीवनी के अंशों के अनुसार, 1996 में काबुल में तालिबान के सत्ता में आने के बाद उसका शीर्ष पर उदय हुआ.

काबुल की सैन्य अदालत का नेतृत्व

स्थानीय मदरसा चलाने के बाद, वह कंधार प्रांतीय अदालत में न्यायाधीश बना. फिर 2000 तक पूर्वी अफगानिस्तान के नंगरहार में सैन्य अदालत का प्रमुख बना. 2001 के अंत में जब तालिबान को सत्ता से बेदखल किया गया, तब तक वह काबुल की सैन्य अदालत का नेतृत्व कर रहा था. अखुंदजादा फिर क्वेटा में शरण पाने के लिए पाकिस्तान भाग गया. इस्लामी कानून में उनकी महारत ने उन्हें तालिबान की छाया न्याय प्रणाली का प्रमुख और क्वेटा से स्नातक करने वाले सेनानियों की एक पूरी पीढ़ी का प्रशंसित प्रशिक्षक बना दिया.

फोन का इस्तेमाल नहीं करता अखुंदजादा

पाकिस्तान स्थित तालिबान के एक सदस्य ने कहा कि अखुंदजादा “तालिबान के लिए गुरुत्वाकर्षण का केंद्र था. इस सूत्र के अनुसार जिसने दावा किया है कि वो सर्वोच्च नेता से तीन बार मिल चुका है. अखुंदजादा आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल नहीं करता है. वह लैंडलाइन पर फोन कॉल पसंद करते हैं और तालिबान अधिकारियों को चिट्ठी के जरिए बात करते हैं. पाकिस्तानी सूत्र ने कहा कि उसने पुराने शासन के खिलाफ अंतिम हमले को हरी झंडी दिखाई. वह कंधार से संचालन को ट्रैक करता है. जहां वह पहले से ही कई महीनों से गुप्त रूप से रह रहा था.

मौत के ऐलान से आखिर क्या होगा

सूत्र के मुताबिक अगर वे घोषणा करते हैं कि अखुंदजादा नहीं रहा और हम एक नए अमीर की तलाश कर रहे हैं, तो यह तालिबान में गुटबाजी पैदा कर देगा और आईएस-के इसका फायदा उठा सकता है. अटकलों के बावजूद तालिबान का कहना है कि कुछ भी अप्रिय नहीं है. एक प्रवक्ता ने बताया कि अमीर सही तरीके से नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके लिए सार्वजनिक रूप से पेश होना जरूरी नहीं है.

ये भी पढ़ें- Delhi-NCR Pollution: कोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली के सभी स्कूल बंद, सुप्रीम कोर्ट में आज फिर प्रदूषण पर होगी सुनवाई

ये भी पढ़ें- Lok Sabha Debate on Omicron: कोरोना पर हुई लोकसभा में बहस पर आज स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया देंगे जवाब

Source link

Aamawaaz

Aam Awaaz News Media Group has been known for its unbiased, fearless and responsible Hindi journalism since 2018. The proud journey since 3 years has been full of challenges, success, milestones, and love of readers. Above all, we are honored to be the voice of society from several years. Because of our firm belief in integrity and honesty, along with people oriented journalism, it has been possible to serve news & views almost every day since 2018.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button