नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक एनजीओ द्वारा केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के खिलाफ दायर एक अवमानना याचिका पर केंद्र को गुरुवार को एक काउंटर एफिडेविट (प्रति-हलफनामा) दाखिल करने के लिए कहा।
केंद्रशासित प्रदेश में 4 जी स्पीड इंटरनेट पर प्रतिबंधों की समीक्षा के लिए एक विशेष समिति का गठन न करने के मामले में अवमानना याचिका दायर की गई थी। न्यायमूर्ति एन वी रमण की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र से कहा कि वह क्षेत्र में 4 जी इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने के आदेशों की समीक्षा से संबंधित केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा लिए गए फैसले के संबंध में एक हलफनामा दायर करे।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने अवमानना याचिका पर कोई औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया। अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने अदालत के सामने कहा कि कोई अवमानना नहीं की गई है क्योंकि विशेष समिति का गठन पहले ही किया जा चुका है। न्यायमूर्ति रमण ने हालांकि सवाल किया कि सार्वजनिक क्षेत्र में फिर क्यों कुछ नहीं है। शीर्ष अदालत ने केंद्र को एक प्रति-हलफनामे में सब कुछ बताने और एक सप्ताह के भीतर दाखिल करने को कहा।
जब अटॉर्नी जनरल ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि इस क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधि की घटनाओं में वृद्धि हुई है, याचिकाकर्ता (फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स) का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने केंद्रीय गृह मंत्री के साक्षात्कार का हवाला दिया, जिसमें अमित शाह ने कहा था कि धारा 370 निरस्त करने के बाद और 1990 के बाद से आतंकवाद जम्मू एवं कश्मीर में सबसे कम है। वकील ने भाजपा नेता राम माधव के एक लेख का भी हवाला दिया, जो जम्मू-कश्मीर के लिए वातार्कारों में से एक है, लेख में कहा गया कि कई प्रतिबंधों को हटाने का समय आ गया है
[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]