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मुंबई। रिजर्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में खुदरा मुद्रास्फीति 4.8 प्रतिशत के स्तर पर रहेगी। उसका अनुमान है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के कारण खाद्य वस्तुएं महंगी हो सकती है।
रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की तीसरी मौद्रिक नीति समीक्षा में जुलाई-सितंबर तिमाही के लिए खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान 4.6 प्रतिशत रखा है। खुदरा मुद्रास्फीति के अगले वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में बढ़कर 5 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान जताया गया है।
रिजर्व बैंक ने तीसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा, ‘‘मुद्रास्फीति परिदृश्य कई बातों से प्रभावित हो सकता है। पहला, केंद्र सरकार ने 2018-19 के लिये सभी खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन उत्पादन लागत का कम-से-कम 150 प्रतिशत तय करने का फैसला किया है। इसका खाद्य मुद्रास्फीति पर सीधा प्रभाव पड़ेगा और इससे सकल मुद्रास्फीति भी प्रभावित होगी।
रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने मुद्राफीति बढ़ने की संभावनाओं के मद्देनजर केंद्रीय बैंक की अल्पकालिक ब्याज दर (रेपो दर) 0.25 प्रतिशत बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया है। इससे बैंकों से कर्ज लेना महंगा हो सकता है।
केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘‘…महंगाई दर वित्त वर्ष 2018-19 की दूसरी तिमाही में 4.6 प्रतिशत तथा दूसरी छमाही में 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वहीं वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में इसके 5 प्रतिशत पर पहुंच जाने के आसार हैं।
आवास किराया भत्ता (एचआरए) के प्रभाव को छोड़कर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई दर दूसरी तिमाही में 4.4 प्रतिशत, दूसरी छमाही में 4.7-4.8 प्रतिशत तथा अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 5 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के बारे में आरबीआई ने कहा कि इसको लेकर अनिश्चितता है और वास्तविक प्रभाव सरकार की खरीद गतिविधियों की प्रकृति तथा पैमाने पर निर्भर करेगा। आरबीआई ने कहा, ‘‘दूसरा, मानसून का अबतक का प्रदर्शन खाद्य मुद्रास्फीति के लिहाज से मध्यम अवधि में बेहतर लग रहा है।