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उद्योग जगत ने केंद्रीय बैंक के कदम की सराहना की

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नयी दिल्ली: उद्योग जगत ने भारतीय रिजर्व बैंक के नीतिगत दर रेपो को बरकरार रखने की सराहना की है. उसका कहना है कि इससे कंपनियों और ग्राहकों के बीच भरोसा बढ़ेगा. गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति को लेकर नरम रुख अपना रखा है. उसने प्रमुख नीतिगत दर रेपो में कोई बदलाव नहीं किया और रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर चार प्रतिशत पर बरकरार रखा.

उद्योग जगत ने की रिजर्व बैंक के पहल की सराहना

अर्थव्यवस्था  कोविड-19 संकट से अभी तक पूरी तरह नहीं उबर पाई है. इस लिहाज से आरबीआई ने मुद्रास्फीति के ऊपर आर्थिक वृद्धि को तरजीह दी. उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स (पीएचडीसीसीआई) के अध्यक्ष संजय अग्रवाल ने कहा कि कुछ उत्पादों के मामले में उच्च मुद्रास्फीति के बावजूद केंद्रीय बैंक ने यथास्थिति बनाये रखी है. 

अग्रवाल ने कहा, ‘‘कोविड-19 के प्रभाव के बीच आर्थिक वृद्धि को पटरी पर लाने और बनाये रखने से कंपनियों और ग्राहकों के बीच भरोसा बढ़ेगा. यह उत्साहजनक है कि आरबीआई ने महामारी के कारण कठिन समय के बावजूद वित्त वर्ष 2021-22 के लिये जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर का अनुमान 9.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है.’’

उन्होंने ने कहा, ‘‘हम बैंकों से आग्रह करते हैं कि रेपो दर में पिछले वित्त वर्ष के दौरान हुई कटौती का लाभ उद्योग, कारोबारियों और ग्राहकों को दे. इससे मांग को गति मिलेगी और आर्थिक वृद्धि में तेजी आएगी.’’ उद्योग मंडल एसोचैम ने बताया कि वृद्धि को प्राथमिकता देने और मौद्रिक नीति की नरमी का आरबीआई को पूरा श्रेय मिलना चाहिए.

केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दर रेपो को बरकरार रखा

उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही से मुद्रास्फीति नरम होगी. इसका कारण यह है कि उस समय तक आपूर्ति से जुड़ी सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी. साथ ही मानसून ठीक गति से बढ़ रहा है. इसका खाद्य मुद्रास्फीति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. उद्योग मंडल के अनुसार नीतिगत दर रेपो को 4 प्रतिशत के न्यूनतम पर बरकरार रखकर आरबीआई और सरकार ने स्पष्ट किया है कि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये साथ मिलकर काम कर रहे हैं.

फिक्की ने कहा कि ऐसे समय जब मौद्रिक नीति के सामान्य रास्ते पर लौटने की उम्मीद थी, आरबीआई का निर्णय राहत देने वाला है. उद्योग मंडल ने कहा कि पिछले साल घोषित समाधान रूपरेखा- एक के तहत वित्तीय मानदंडों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समय सीमा छह महीने तक बढ़ाने से दबाव झेल रही कंपनियों को राहत मिलेगी. फिक्की के अनुसार, हालांकि जिस तरीके से कोविड स्थिति उभरी है, कुछ ज्यादा दबाव वाले क्षेत्रों को वित्तीय मानदंडों को पूरा करने के लिये और लंबी अवधि की जरूरत हो सकती है.

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