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यंग लुक की वजह से कईं फिल्में छोडऩी पड़ीं: शरमन जोशी

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रंग दे बसंती, गोलमाल और 3 इडियट्स जैसी सुपरहिट फिल्मों का हिस्सा रहे शरमन जोशी आजकल थोड़े अलग तरह के रोल तलाश रहे हैं। बकौल शरमन उन्हें उनके यंग लुक के चलते तमाम फिल्में नहीं मिल पाईं। अपनी फिल्म काशी: इन सर्च ऑफ गंगा के प्रमोशन के सिलसिले में दिल्ली आए शरमन ने कुछ खास बातचीत की :
आप इन दिनों अलग-अलग जॉनर की फिल्मों में काम कर रहे हैं। ऐसे में क्या आपका कुछ अलग करने का प्लान है?
हर ऐक्टर की कोशिश होती है कि वह कुछ अलग करे। इसी तरह मैं भी कुछ डिफरेंट करना चाहता हूं। आप किसी एक जॉनर का ऐक्टर बनके नहीं रह सकते। अगर आप कुछ अलग करना चाहते हैं, तो आपका रियलिस्टिक होना भी जरूरी है। मैं सबसे पहले यह देखता हूं कि फिल्म किसी भी जॉनर से हो, लेकिन स्क्रिप्ट अच्छी होनी चाहिए। कैरक्टर अलग करने के लिए स्क्रिप्ट नहीं ढूंढी जाती। फिल्म काशी मुझे ऐसे मोड़ पर मिली, जब मैं कुछ नया करना चाहता था और इस फिल्म में मुझे वह सब कुछ मिला, जो मैं करना चाहता था। आने वाले समय में मेरे कैरक्टर में कई और वैरिएशन दिखने लगेंगे। दरअसल, मैं उम्र में बड़ा हूं, लेकिन दिखता यंग हूं। हालांकि अब मुझमें फिजिकली मैच्योरिटी बढ़ी है। पहले डायरेक्टर मुझे मैच्योर रोल देना चाहते थे, तो भी नहीं दे सकते थे, क्योंकि मेरी कुछ लिमिटेशन थीं। उस समय मैं काफी यंग दिखता था। गोलमाल और थ्री इडियट जैसी फिल्मों के लिए मैं उस वक्त परफेक्ट था। अब मैं खुद को आइने में देखता हूं, तो सोचता हूं कि बड़ा लग रहा है बंदा।

आपके सीच्ल फिल्मों में दोबारा नजर नहीं आने का फैसला आपका होता है या निर्माता का?
हेट स्टोरी 4 के बारे में बात कर रहे हैं, तो मैं आपको बता देता हूं कि एरॉटिक फिल्म में काम करने का मेरा कोई इरादा नहीं था और न ही मुझे इस फिल्म के लिए पूछा गया था। भूषण ने भी मुझे कहा था कि अब आपको इस तरह की फिल्म नहीं करनी चाहिए। अगर हम बात गोलमाल की करें, तो फिल्म को लेकर मेरे मैनेजमेंट और प्रड्यूसर में कोई मिस मैनेजमेंट हुआ था, जिस वजह से बात कभी बनी ही नहीं। आने वाले समय में अगर गोलमाल सीरीज का ऑफर आया, तो मैं जरूर इस बारे में सोचूंगा।
फिल्मों में आने से पहले थिअटर करना, आपके फिल्मी करियर में कितना काम आया?
मेरे लिए सबसे अच्छी बात यह थी कि मेरी शुरुआत थिअटर से हुई और मुझे काम करने का काफी मौका मिला। मैं गुजराती थिअटर करता था और उस टाइम 20 से 25 शो तक कर लेते थे। हमने काफी मेहनत की है, पिछले 10 साल में 1 हजार से ज्यादा शो किए हैं, ये सारा एक्सपीरियंस मेरे काम आया। बहुत से लोग कहते हैं कि मेरा कॉमिक टाइमिंग अच्छा है, उसकी वजह थिअटर ही है।
आजकल किसी फिल्म के लिए अच्छी रिलीज डेट तलाशना बड़ा मुश्किल काम होता है। इस बारे में क्या सोचते हैं आप?
आजकल फिल्म को रिलीज करना या रिलीज के लिए अच्छी डेट ढूंढना, दोनों ही आपके हाथ में नहीं हैं। ढूंढने पर भी अच्छी डेट नहीं मिलती है। आप सोच-समझकर एक डेट सिलेक्ट करते हैं और फिर भगवान से प्रार्थना करने लगते हैं कि बस उस दिन कुछ गलत न हो।
काशी इन सर्च ऑफ गंगा फिल्म के बारे में कुछ बताएं?
इस फिल्म में सस्पेंस, ड्रामा और थ्रिलर सब कुछ है। जैसे की हर थ्रिलर में आखिरी के 20 मिनट काफी अहम होते हैं। वैसे ही इस फिल्म के भी आखिरी के 20 मिनट काफी महत्वपूर्ण हैं। फिल्म के आखिर में मनीष किशोर ने शॉकिंग और सरप्राइजिंग के साथ-साथ लॉजिकल लिखा है। फिल्म की कहानी बहुत ही अनोखी और अच्छी है। फिल्म के डॉयरेक्टर धीरज कुमार कहानी को पर्दे पर अच्छी तरह से लाने में कामयाब रहे हैं।
काशी के घाटों पर शूटिंग करने का अनुभव कैसा रहा?
हमने मर्णिकर्णिका घाट पर शूटिंग की। वहां हमेशा कोई-न-कोई चिता जलती रहती है। हम वहीं घाट पर एक जगह थोड़ी ऊंचाई पर, शूटिंग कर रहे थे। उस दिन इतनी सारी चिताएं देख हमारी यूनिट के लोग अपसेट हो गए थे। कुछ लोग ऐसे भी थे, जो इमोशनली यह सब सह नहीं पा रहे थे और होटल चले गए। हम इसलिए परेशान थे, क्योंकि चिता के जलने से उठने वाला धुआं अजीब सा फील करा रहा था। उस दिन शूटिंग तो किसी तरह पूरी कर ली, लेकिन ऐसे माहौल में अजीब सा फील होता है। उसके बाद हम काशी विश्वनाथ मंदिर गए। इस तरह हमने लाइफ के दो पहलुओं का एक्सपीरियंस किया।
बनारस में खाने-पीने में नया आजमाया?
मैंने बनारस की रबड़ी बेहद चाव से खाई। वरना तो रोजाना होटल में तंदूरी ब्रोकली और फिश टिक्का ही खाता था। लोगों ने बनारस की भांग ट्राई करने को कहा, लेकिन इतनी कहानियां सुनी हैं कि ट्राई करने हिम्मत ही नहीं हुई।
किसी फिल्म के लिए खुद को मानसिक तौर पर कैसे तैयार करते हैं?
फिल्म की स्क्रिप्ट मेरी गाइड लाइन होती है, तो उसके हिसाब से कैरक्टर को देखना पड़ता है। दूसरा डायरेक्टर और राइटर ने किस नजरिए से कैरक्टर को बनाया है, वह भी समझना जरूरी है। और आखिर में मेरा एक अभिनेता होने के नाते कैरक्टर को जानना भी महत्वपूर्ण है। फिल्म काशी की बात करूं, तो इसमे मेरा कैरक्टर बनारस के रंग में रंगा हुआ है और ऐसे में उस स्टाइल और बात करने के अंदाज को समझने के लिए मैंने डायरेक्टर से गुजारिश की कि मैं शूटिंग से 5 दिन पहले बनारस जाना चाहता हूं, ताकि मैं उस माहौल में रहकर वहां के लोगों का बोलने का स्टाइल और बॉडी लैंग्वेज समझ सकूं। कैरक्टर में सबसे बड़ा चैलेंज मेरे लिए उसके बोलने को तरीका था। मैं उस तरीके को बिलकुल नैचरल अंदाज में करना चाहता था। उसके साथ ही चेहरे के एक्सप्रेशन का भी ध्यान रखना होता है।

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