नयी दिल्ली, सुप्रीमकोर्ट ने बृहस्पतिवार को रिपब्लिक मीडिया समूह से कहा कि टेलीवजन रेटिंग प्वाइंट्स (टीआरपी) में हेराफेरी मामले में मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज मामले में बंबई हाईकोर्ट जायें। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हमें हाईकोर्टों में भरोसा रखना चाहिए।’ जस्टिस धनंजय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस इन्दु मल्होत्रा और जस्टिस इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान भी हाईकोर्ट काम करता रहा है और मीडिया समूह को वहां जाना चाहिए।
इस मीडिया हाउस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने इस मामले में चल रही जांच को लेकर आशंका व्यक्त की। इस पर पीठ ने कहा, ”आपके मुवक्किल का वर्ली (मुंबई) में कार्यालय है? आप बंबई हाईकोर्ट जा सकते हैं। हाईकोर्ट द्वारा मामले को सुने बगैर ही इस तरह से याचिका पर विचार करने से भी संदेश जाता है। हाईकोर्ट महामारी के दौरान भी काम कर रहा है।’ उसने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि हाल के समय में पुलिस आयुक्तों के इंटरव्यू देने का चलन हो गया है। साल्वे ने इस पर हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस ले ली।
यह है मामला
मुंबई पुलिस ने टीआरपी घोटाले में एक मामला दर्ज किया है और उसने रिपब्लिक टीवी के मुख्य वित्त अधिकारी एस सुन्दरम को जांच के लिये तलब किया है। मुंबई के पुलिस आयुक्त ने दावा किया था कि रिपब्लिक टीवी सहित 3 चैनलों ने टीआरपी के साथ हेराफेरी की। पुलिस के अनुसार यह गोरखधंधा उस समय सामने आया जब टीआरपी का आकलन करने वाले संगठन बार्क ने हंसा रिसर्च समूह के माध्यम से इस बारे में एक शिकायत दर्ज करायी। शीर्ष अदालत में यह याचिका रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के स्वामित्व वाली आर्ग आउटलायर मीडिया प्रा.लि. ने दायर की थी और इसमें पुलिस द्वारा जारी सम्मन निरस्त करने का अनुरोध किया गया था। इससे पहले, मुंबई पुलिस ने शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दाखिल करके रिपब्लिक मीडिया समूह की याचिका खारिज करने का अनुरोध किया था।
मुंबई पुलिस की दलील
मुंबई पुलिस ने दलील दी थी कि याचिकाकर्ता कथित टीआरपी रेटिंग्स के साथ हेराफेरी की जांच निरस्त कराने के लिये संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) का सहारा नहीं ले सकते हैं। पुलिस का कहना था कि कानून के तहत किसी भी अपराध की जांच के मामले में इस अनुच्छेद की आड़ नहीं ली जा सकती है।
पुलिस का कहना था कि उसके द्वारा दर्ज प्राथमिकी में अगर कोई मामला बनता है तो उस पर इस समय फैसला नहीं किया जा सकता है। पुलिस के अनुसार इस मामले में जांच अभी जारी है और ऐसी कोई विशेष परिस्थिति पैदा नहीं हुयी है कि इस न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इसमें हस्तक्षेप करना पड़े।