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इंसानों और जंगली जानवरों के बीच टकराव बन सकता है ‘टाइगर’ कि आबादी के लिए खतरा

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Human-Tiger Conflict:  दुनियाभर में 29 जुलाई के दिन ‘विश्व बाघ दिवस’ (International Tiger Day) मनाया जाता है. भारत में टाइगर की बढ़ती आबादी के साथ ही उनके रख रखाव और रहने के लिए देश भर में टाइगर रिजर्व की व्यवस्था को लेकर भी लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है. बढ़ती संख्या के साथ ही बाघों का इंसानों की आबादी से संपर्क बढ़ता जा रहा है. इंसान और जंगली जानवरों के बीच उपज रहे इस टकराव के चलते महाराष्ट्र में इस साल 44 लोग टाइगर का शिकार हुए हैं. अकेले चंद्रपुर में ही टाइगर के हमले में मरने वाले लोगों की संख्या 31 है.

 

वहीं इस बीच इंसानों द्वारा टाइगर के शिकार की भी कई घटनाएं सामने आई हैं. बता दें कि साल 2014 में देश में 2,226 टाइगर थे. जिनकी संख्या 2018 में बढ़कर 2,967 हो गई. लेकिन अब एक बार फिर इनके और इंसानों के बीच टकराव के चलते इनकी आबादी पर खतरा मंडराने लगा है.

 

चंद्रपुर-गढ़चिरौली में टाइगर और लेपर्ड के शिकार हुए 34 लोग 

 

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई है. यहां इस साल 1 जनवरी से अब तक 44 लोग टाइगर या लेपर्ड के हमले में अपनी जान गंवा चुके हैं. इनमें से 34 यानी मौत के लगभग 93 प्रतिशत मामले चंद्रपुर-गढ़चिरौली जिलों से सामने आए हैं. इस से पहले साल 2020 में भी टाइगर या लेपर्ड के हमले में महाराष्ट्र में 88 लोगों की मृत्यु हुई थी.

 

चीफ कंसरवेटर ऑफ फ़ॉरेस्ट, एनआर प्रवीण के अनुसार, “चंद्रपुर जिले में पिछले सात महीनों में 31 लोगों की मौत हुईं है. जो कि 2020 में यहां टाइगर या लेपर्ड के हमले में मारे गए लोगों की कुल संख्या (33) से ज्यादा है. इस साल के अंत तक ऐसी और भी घटनाएं हो सकती हैं जिनसे इंकार नहीं किया जा सकता.”

ऑल इंडिया टाइगर एंड लेपर्ड एस्टिमेशन-2018 के अनुसार, महाराष्ट्र में साल 2014 में टाइगर की संख्या 190 थी. जो कि साल 2018 तक बढ़कर 312 हो गई. वर्तमान की बात करें तो यहां इस समय टाइगर की कुल आबादी 350 है. साथ ही यहां लेपर्ड की संख्या 1,690 है. इसलिए इंसानों के साथ लगातार हो रहे इनके टकराव को रोकने के लिए ठोस एक्शन प्लान की जरुरत है. 

राज्य में बड़ा राजनीतिक मुद्दा है इंसानों और जंगली जानवरों का ये टकराव 

इंसानों और जंगली जानवरों का ये टकराव एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी बना हुआ है. साल 2013 से अब तक यहां इस समस्या पर अलग-अलग सरकारों ने एक्स्पर्ट्स और अधिकारियों की तीन उच्च-स्तरीय समितियों का गठन कर दिया है. वाइल्डलाईफ बोर्ड मेंबर, बांडु धोत्रे के अनुसार, “हाल ही में स्टेट वाइल्डलाईफ बोर्ड की समिति ने इस मामले को लेकर अपनी रिपोर्ट जमा की है लेकिन अब तक उस पर कोई भी ऐक्शन नहीं लिया गया है.” 

ग्रीन प्लैनेट सोसायटी, चंद्रपुर के अध्यक्ष, सुरेश चोपणे के अनुसार, इंसानों और जंगली जानवरों के बीच उपज ये टकराव जल्द ही इन संरक्षित जानवरों की आबादी के लिए खतरा बन सकता है. अपने बचाव या ग़ुस्से में लोग इन टाइगर या लेपर्ड को मार सकते हैं जो की इनकी प्रजाति के विलुप्त होने का कारण बन सकता है. 

WWF और UNEP भी दे चुके हैं चेतावनी 

WWF और UNEP की ताजा रिपोर्ट में भी भारत में इंसानों और जंगली जानवरों के टकराव के चलते नई चुनौतियों की चेतावनी दी गई है. रिपोर्ट के अनुसार, ” भारत की जनसंख्या दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा है वहीं यहां दुनिया में सबसे ज्यादा टाइगर के साथ साथ एशियन एलिफ़ेंट, एक सिंग वाले गैंडे, एशियाटिक शेर और जंगली जानवरों की अन्य दुर्लभ प्रजातियों की भी बड़ी आबादी मौजूद है. इंसानों और जंगली जानवरों के बीच तालमेल बनाए रखने के लिए भारत को जल्द से जल्द इस समस्या के उपाय खोजने होंगे.”

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