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नेता तोड़ रहे भाषा की मर्यादा, ‘नशे में डूबा हुआ’ बताने से लेकर ‘गोबर दिमाग वाला’ बयान दिया

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Monsoon Session: संसद के मानसून सत्र के दौरान विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच लगातार हंगामा चल रहा है. विपक्ष के इसी हंगामे के चलते संसद की कार्रवाई लगातार स्थगित हो रही है. लेकिन अब नेतागण जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं वह अपने आप में कई तरह के सवाल खड़े कर रहे हैं. बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह यादव ने राहुल गांधी और समूचे विपक्ष के लिए जहां नशे में डूबे होने की बात कही तो वहीं कांग्रेसी सांसद गुरजीत औजला ने गद्दारों की पार्टी जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर दिया.

विपक्ष लगातार पेगासस कथित जासूसी कांड, कृषि कानून और किसान आंदोलन जैसे मुद्दों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहा है और इसकी वजह से सदन की कार्रवाई लगातार स्थगित हो रही है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह यादव ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया उन पर निश्चित तौर पर ही विवाद होना था. हरनाथ सिंह यादव ने अपने बयान में राहुल गांधी के साथ विपक्षी नेताओं के लिए भी उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया.

दिया ये बयान

हरनाथ यादव ने कहा, ‘अब तक चर्चा ये होती थी कि राहुल गांधी उच्च कोटि का नशा लेते हैं और अब ऐसा लगता है कि पूरा विपक्ष वह नशा ले रहा है. इसी वजह से इस तरह की बातें करते हैं और संसद की कार्रवाई को ठप्प किए हुए हैं.’ बीजेपी सांसद हरनाथ यादव ने कहा कि बार-बार विपक्ष के नेता जासूसी की बात कर रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि जासूसी तो देश विरोधियों और आतंकी लोगों के खिलाफ होती है तो आखिर इन लोगों को उससे इतना डर क्यों है? वैसे भी सरकार कहती है कि सरकार ने कोई जासूसी नहीं करवाई लेकिन यह लोग फिर भी हंगामा कर रहे हैं.

हरनाथ यादव के आपत्तिजनक और विवादित शब्दों का जवाब देते हुए कांग्रेसी सांसद गुरजीत ओजला ने कहा कि राहुल को अपनी दादी की शहीदी का नशा है. उनको देश के लोगों के प्यार का नशा है. लेकिन गुरजीत ओजला यहीं नहीं रुके, इसके बाद उन्होंने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया उनको भी आपत्तिजनक और विवादास्पद ही कहा जाएगा.

इन शब्दों का किया इस्तेमाल

कांग्रेसी सांसद गुरजीत ओजला ने इसके बाद अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए विवादास्पद बयान देने वाले नेताओं के लिए गोबर दिमाग वाले जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी कर दिया. साफ है कि राजनीति में आज की तारीख में आरोप-प्रत्यारोप लगाते समय शब्दों की मर्यादा का भी ध्यान नहीं रखा जा रहा और यह सब उसी संसद भवन परिसर में चल रहा है जिसको लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है.

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