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समाजवादी पार्टी जल्दी शुरू करेगी ब्राह्मण सम्मेलन, कहीं इसकी वजह BSP तो नहीं?

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नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी ने अब अपना ब्राह्मण सम्मेलन 22 के बदले 5 अगस्त से ही शुरू करने का फैसला किया है. हाईकोर्ट के चक्कर से बचने के लिए नाम दिया गया है प्रबुद्ध सम्मेलन. ब्राह्मणों का पहला जमावड़ा बलिया में होगा. पार्टी की तरफ से कहा गया है जनेश्वर मिश्र की उस दिन जयंती है, इसीलिए 5 अगस्त से ब्राह्मण सम्मेलन करना तय हुआ है. पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी सहमति दे दी है. वे खुद ब्राह्मण सम्मेलन में तो नहीं जाएंगे लेकिन समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण नेताओं को इस जाति के लोगों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी दी गई है.

तय समय से पहले ही ब्राह्मण सम्मेलन करने का मामला इतना सीधा नहीं है. इसका कनेक्शन अखिलेश यादव के कट्टर विरोधी मायावती से है. जिनकी पार्टी हफ्ते भर से ब्राह्मणों को अपना बनाने में जुटी है. इस काम में लगे हैं बहिन जी के सबसे करीबी और पार्टी के ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्र. अयोध्या में भगवान रामलला के दर्शन पूजन और सरयू मैया की आरती से उन्होंने प्रबुद्ध सम्मेलन शुरू किया. अयोध्या, अंबेडकरनगर, प्रयागराज, कौशांबी, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और अमेठी में ऐसे सम्मेलन हो चुके हैं. जबकि दूसरे चरण का सम्मेलन सतीश मिश्र ने मथुरा से शुरू करने का ऐलान किया है. अयोध्या भगवान राम की नगरी और मथुरा भगवान कृष्ण की नगरी. बीएसपी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर है.

समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण नेताओं को लगा कि 22 अगस्त से ब्राह्मण सम्मेलन करने से कहीं देर न हो जाए. कहीं ऐसा न हो कि पंडित बिरादरी के लोग बीएसपी के हाथी पर सवार हो जाएं. ऐसे में बात बिगड़ सकती है. इसीलिए तय हुआ कि महीने भर के इंतजार में खेल खराब हो सकता है. फिर सबने यही कहा कि कार्यक्रम पहले शुरू कर लिया जाए. इसके लिए एक बहाना ढूंढा गया जनेश्वर मिश्र के जन्म दिन का. समाजवादी पार्टी ने उस दिन राज्य के हर तहसील में साइकिल यात्रा करने का भी फैसला किया है.

सोशल इंजीनियरिंग

बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्र घूम-घूम कर ब्राह्मणों से बीजेपी से अपमान का बदला लेने की अपील कर रहे हैं. उनका दावा है कि योगी सरकार में ब्राह्मणों के साथ अन्याय हुआ है. मायावती ने ब्राह्मण और दलित वोटों के बूते ही 2007 में बहुमत की सरकार बनाई थी. वे चौथी बार यूपी की सीएम बनी थीं. उससे पहले वे तीन बार दूसरी पार्टियों के सहयोग से सत्ता में आई थीं. ब्राह्मण और दलित को एक साथ लाकर सत्ता में आने के मायावती के प्रयोग की देश भर में बड़ी चर्चा हुई थी. इसे बहिन जी का सोशल इंजीनियरिंग कहा गया था.

यूपी के चुनावी संग्राम में ब्राह्मण वोट को लेकर जबरदस्त मारामारी मची है. विपक्ष ये माहौल बनाने में जुटा है कि योगी सरकार से ब्राह्मण नाराज हैं. इसी नाराजगी के बहाने अखिलेश यादव और मायावती में इस बिरादरी के लोगों को रिझाने में होड़ मची है. मुकाबला दिलचस्प हो गया है. यूपी में करीब 10% ब्राह्मण वोटर हैं. हाल ही में हुए मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार में यूपी से एक ब्राह्मण नेता को भी मंत्री बनाया गया है. कांग्रेस से लाकर जितिन प्रसाद को भी मान सम्मान दिया जा रहा है लेकिन तय तो जनता को करा है कि आखिर वे किया पार्टी का मान रखेंगे.

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