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संसदीय समिति की सिफारिश: कोविड जैसे हालात में मजदूरों के खाते में पैसे डाले सरकार

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नई दिल्ली: श्रम मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने सरकार से कोरोना के चलते लॉक डाउन जैसे हालात पैदा होने पर मज़दूरों को सीधा पैसे देकर मदद करने की सिफ़ारिश की है. ‘ संगठित और असंगठित क्षेत्र में बढ़ती बेरोज़गारी पर कोरोना का प्रभाव ‘ विषय पर समिति ने अपनी रिपोर्ट मंगलवार को संसद में पेश किया. समिति में रिपोर्ट में कहा कि भारत के कुल 46.5 करोड़ मज़दूरों में से क़रीब 42 करोड़ यानि क़रीब 90 फ़ीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का है. 

समिति का मानना है कि अपनी संरचना और मौसमी रोज़गार के चलते असंगठित क्षेत्र पर कोरोना की सबसे ज़्यादा मार पड़ी है लिहाज़ा इस क्षेत्र के मज़दूरों को मदद की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की मदद के लिए समिति ने लंबे समय के साथ साथ त्वरित उपाय करने की बात कही है. इसी सिलसिले में समिति ने सरकार से कोरोना जैसी विपदा के समय मज़दूरों के खाते में सीधा पैसा ट्रांसफर करने की सिफ़ारिश की है. 

समिति ने सरकार की खिंचाई भी की 
बीजेडी सांसद भर्तृहरि महताब की अध्यक्षता वाली समिति ने कोरोना की पहली लहर के दौरान पैदल घर लौटते प्रवासी मज़दूरों की हालत को लेकर सरकार को फ़टकार लगाई है. समिति के मुताबिक़ घर लौटते प्रवासी मज़दूरों की मदद करने में सरकार ने बहुत देर लगाई जिससे उनकी हालत और दयनीय होती चली गई. समिति ने इस बात पर आश्चर्य जताया है कि जब पूरा देश पैदल घर लौटते प्रवासी मज़दूरों का हृदय विदारक दृश्य देख रहा था तब सरकार ने ऐसे लोगों के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने के लिए क़रीब दो महीने का इंतज़ार किया. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि 9 जून 2020 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्देश आने के बाद ही सरकार जागी और राज्य सरकारों से आंकड़े जुटाने को कहा गया जो श्रम मंत्रालय की शिथिलता बताने के लिए काफ़ी है. रिपोर्ट के मुताबिक़ कोरोना की पहली लहर में लगाए गए लॉक डाउन के दौरान क़रीब 1.15 लाख प्रवासी मज़दूर घर लौटे. इनमें सबसे बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश की रही जहां के क़रीब 32 लाख प्रवासी मज़दूर अपने घर वापस लौटे. इसी तरह अन्य राज्यों के अलावा बिहार ( 15 लाख ) और बंगाल ( 13.5 लाख ) के मज़दूर अपने राज्य वापस लौटे. 

मज़दूरों का डेटाबेस अबतक क्यों नहीं हुआ तैयार?
समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई है कि बार बार ताकीद करने के बावजूद असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का डेटाबेस तैयार करने में सरकार ने इतनी देर कर दी है. समिति का मानना है कि कोरोना जैसे हालात में इस तरह के डेटाबेस का इस्तेमाल मज़दूरों की मदद के लिए हो सकता है. समिति ने सरकार को चेताया है कि इस काम में इतनी देरी बर्दाश्त के बाहर है. हालांकि सरकार ने समिति को आश्वासन दिया है कि इस साल 15 अगस्त तक मज़दूरों का डेटाबेस तैयार कर लिया जाएगा. 

कोरोना के दौरान कितने लोग हुए बेरोज़गार ? 
वैसे समिति के पास सरकार ने वो सबसे अहम आंकड़ा नहीं दिया है जिसके लिए समिति ने अपना काम शुरू किया था. यानि कोरोना काल में बेरोज़गार हुए लोगों की संख्या और उनका स्वरूप. रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार ने देश में बेरोज़गारी दर की गणना के लिए वर्ष 2017 से एक नया फार्मूला शुरू किया है. सरकार ने समिति को जानकारी दी है कि नया फॉर्मूला वास्तविकता के ज़्यादा नज़दीक है और इसलिए ज़्यादा भरोसेमंद भी है. हालांकि श्रम मंत्रालय के मुताबिक़ नए फॉर्मूले के तहत अबतक कोरोना के दौरान बेरोज़गारी का आंकड़ा जुटाया जा रहा है और ये वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट में ही आएगा. 

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