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क्या भारत में कोरोना की तीसरी लहर उतनी घातक नहीं होगी जितनी पहली और दूसरी थी?

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Coronavirus Third Wave: भारत में कोरोना की क्या तीसरी लहर उतनी घातक नहीं होगी जितनी कि पहली और दूसरी थी? जानकारों के मुताबिक ऐसा हो सकता है. उनके मुताबिक हाल में भारत में हुए आईसीएमआर और एम्स-WHO के सीरो सर्वे के मुताबिक 67% ज्यादा आबादी सीरो पॉजिटिव पाई गई थी यानी एंटीबॉडी थी. साथ ही बड़ी आबादी को वैक्सीन लग चुकी है. ऐसे में अगर वायरस में बहुत ज्यादा म्युटेशन नहीं होगा तो तीसरी लहर उतनी घातक नहीं होने की संभावना है.

हाल ही में आईसीएमआर का चौथा सीरो सर्वे आया. जिसके मुताबिक 67.6% लोग अब तक कोरोना वायरस के संक्रमण के दायरे में आ चुके हैं. शहरी और ग्रामीण इलाकों में बराबर सीरो पॉजिटिविटी है. साथ ही बड़ों और बच्चों में बराबर संक्रमण पाया गया है. वहीं देश की 40 करोड़ से ज्यादा आबादी पर अभी भी संक्रमण का खतरा है. ये सीरो सर्वे देश के 21 राज्यों के 70 जिलों में हुआ है, जहां इसे पहले के तीन सीरो सर्वे किए गए थे. इस सर्वे से साफ है कि भारत के दो तिहाई आबादी में सीरो प्रिवलेंस यानी एंटीबॉडी पाई गई है.

बच्चों पर ज्यादा खतरा नहीं

ऐसा ही एक सीरो प्रिवलेंस सर्वे WHO और एम्स दिल्ली ने किया था. जिसके नतीजे भी कुछ ऐसे ही थे. दिल्ली एम्स औए वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के सीरो प्रिवलेंस स्टडी के अंतरिम नतीजों के मुताबिक भारत में बड़ी उम्र वालों की तरह ही बच्चे भी कोरोना से संक्रमित हुए हैं. जिसमें ज्यादातर बच्चों में संक्रमण होने पर किसी तरह के लक्षण नहीं दिखे. स्टडी के मुताबिक अगर कोरोना की संभावित तीसरी लहर आती है तो बच्चों पर ज्यादा खतरा नहीं होगा. ये सीरो प्रिवलेंस स्टडी दिल्ली, बल्लभगढ़ (फरीदाबाद), गोरखपुर, भुवनेश्वर और अगरतला में की गई है. इसमें शहरी और ग्रामीण दोनों इलाके शामिल हैं. 4509 लोगों को स्टडी में शामिल किया गया. जिसमें से 2811 सीरो पॉजिटिव पाए गए यानी 62.3% सीरो पॉजिटिविटी दर है. 

इन दोनों सर्वे के आधार पर जानकरों का कहना है कि कोरोना की अगर कोई तीसरी लहर आती है तो वो पहली और दूसरी लहर की तरह घातक नहीं होगी. जानकारों के मुताबिक इसकी तीन बड़ी वजह हैं-
– पहली, दो तिहाई आबादी में एंटीबॉडी मिली है यानी संक्रमण हो चुका है और उसके खिलाफ एंटीबॉडी है.
– दूसरी, वैक्सीनेशन चल रहा है और 51 करोड़ लोगों को पहली डोज लग चुकी है और जल्द दूसरी डोज भी लग जाएगी.
– कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर.

जानकरों की मानें तो अगर तीसरी लहर आती है और इस दौरान वायरस में कोई बहुत ज्यादा बदलाव होता है तो ही वो घातक होगी, जैसे कि दूसरी लहर थी. जिसमें डेल्टा वेरिएंट ने करीब 80 फीसदी आबादी को संक्रमित कर दिया था. पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट सुनीला गर्ग के मुताबिक जिन राज्यों में सीरो प्रिवलेंस कम था, वहां कुछ केस बढ़ सकते है क्योंकि अभी भी बड़ी आबादी संक्रमण के दायरे से बाहर थी लेकिन वो इतनी घातक नहीं होगी.

अभी भी जिन राज्यों में सीरो प्रिवलेंस कम था जैसे असम, केरल, हिमाचल प्रदेश यहां केस आ रहे है लेकिन उस तरह नहीं जैसे अप्रैल या मई में आ रहे थे. लेकिन इस बीच हमे लगातार मास्क और कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर का पालन करना होगा क्योंकि ये नहीं होने पर स्तिथि बदल सकती है.

भारत में चौथे सीरो सर्वे के तहत-

– कुल 28,975 लोगों पर सर्वे किया गया.

– इसमें 6-9 साल के 2892, 10 से 17 साल के 5799, 18 साल से ज्यादा उम्र के 20984 लोग शामिल किए गए. 

– आयु वर्ग के हिसाब से सीरो प्रिवलेंस की बात करें तो 6 से 9 साल में 57.2 प्रतिशत, 10 से 17 साल की उम्र में 61.6 प्रतिशत, 18 से 44 में 66.7 प्रतिशत, 45 से 60 साल की उम्र की बात करें तो 76.7 प्रतिशत और 60 साल के ऊपर आयुवर्ग में 76.7 प्रतिशत संक्रमण पाया गया.

– पुरुषों में 65.8 और महिलाओं में 69.2 प्रतिशत संक्रमण पाया गया.

– ग्रामीण इलाकों में 66.7 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 69.6 प्रतिशत लोगों में संक्रमण पाया गया.

– 12 हजार 607 का टीकाकरण नहीं और उनमें 62.3% एंटीबॉडी मिली. 

– 6 से 17 साल में 50 प्रतिशत सीरो पॉजिटिव.

– शहरी और गांव दोनों में सीरो प्रिवलेंस एक समान.

– 40 करोड़ लोगों में अब भी एंटीबॉडी नहीं है.

– दो तिहाई आबादी में एंटीबॉडी पाई गई.

इसी तरह एम्स, नई दिल्ली के नेतृत्व में डब्ल्यूएचओ-एम्स सीरो प्रिवलेंस स्टडी की थी. जिसके अंतरिम नतीजे सामने आए थे. ये सीरो प्रिवलेंस स्टडी दिल्ली, बल्लभगढ़ (फरीदाबाद), गोरखपुर, भुवनेश्वर और अगरतला में की गई है. इसमें शहरी और ग्रामीण दोनों इलाके शामिल है. 4509 लोगों को स्टडी में शामिल किया गया. जिसमें से 2811 सीरो पॉजिटिव पाए गए यानी 62.3% सीरो पॉजिटिविटी दर है. 

इस स्टडी की अंतरिम रिपोर्ट के मुताबिक बड़ों में और बच्चों में संक्रमण लगभग बराबर हुआ है. वहीं शहरी इलाके के अलावा ग्रामीण इलाकों में भी संक्रमण देखने को मिल रहा है. सर्वेक्षण में शामिल ग्रामीण आबादी के आधे से ज्यादा यानी 58.8% में संक्रमण के सबूत मिले है. इस सीरो प्रिवलेंस स्टडी के लिए अलग-अलग इलाकों से लोगों को शामिल किया गया, जिसमें बच्चे भी शामिल है.

– शहरी इलाके में 1001 लोगों पर स्टडी की गई. जिसमें से 748 सीरो पॉजिटिव पाए गए यानी 74.7% सीरो प्रिवलेंस था. इसमें 18 साल से ज्यादा उम्र के 909 थे. जिसमें से 680 सीरो पॉजिटिव पाए गए, जबकि 18 साल से कम उम्र के 92 थे और 68 स्टडी में सीरो पॉजिटिव पाए गए. 

– इसी तरह ग्रामीण इलाकों 3508 लोगों पर स्टडी हुई, जिसमें से 2063 सीरो पॉजिटिव पाए गए है यानी 58.8% सीरो प्रिवलेंस था. इसमें 18 साल से ज्यादा उम्र के 2,900 थे 1,741 सीरो पॉजिटिव थे जबकि 18 साल से कम उम्र के 608 लोगों की स्टडी में 322 सीरो पॉजिटिव थे. 

– दिल्ली के शहरी इलाकों में 1001 लोगों पर स्टडी की गई. जिसमें 18 साल से कम उम्र के 92 थे. जिसमें सीरो पॉजिटिव पाए गए यानी इस आयु वर्ग में सीरो पॉजिटिविटी दर 73.9% है. इसी तरह 18 साल से ज्यादा उम्र के 909 में से 680 सीरो पॉजिटिव पाए गए यानी 74.8%.

– दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में आने वाले फरीदाबाद के बल्लभगढ़ ग्रामीण इलाके में 1099 लोगों पर स्टडी की गई. जिसमें से 626 लोग सीरो पॉजिटिव पाए गए. इसमें 18 साल के कम उम्र के 189 थे. जिसमें से 116 सीरो पॉजिटिव पाए गए यानी 61.4%. वहीं 18 साल से ज्यादा उम्र के 870 में से 512 सीरो पॉजिटिव थे यानी 58.8%. दोनों आयु वर्ग को एक साथ सीरो पॉजिटिविटी 59.3% है.

– भुवनेश्वर ग्रामीण में एक हजार लोगों पर ये स्टडी हुई. जिसमें से 526 यानी 52.6% लोग सीरो पॉजिटिव थे. 18 साल से कम उम्र के 165 में 75 सीरो पॉजिटिव थे. जबकि 18 साल से ज्यादा उम्र के 835 में 451 सीरो  पॉजिटिव पाए गए.

– गोरखपुर ग्रामीण इलाके में 448 लोगों को स्टडी में शामिल किया गया और इसमें से 394 सीरो पॉजिटिव पाए गए यानी 87.9% सीरो पॉजिटिविटी मिली. आयु वर्ग में देखें तो 18 साल से कम उम्र के 108 लोगों में 87 और 18 साल से ज्यादा उम्र के 340 में 307 लोग सीरो पॉजिटिव आए. यानी 18 साल से कम उम्र में सीरो पॉजिटिविटी दर 80.6% और उसे ज्यादा में 90.3% पाया गया.

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