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राजीव गांधी जब 15 अगस्त 1985 को लाल किले की प्रचीर से पहली बार भाषण देने पहुंचे थे तो दुनिया की नजर भारत पर थी, जो ये सोच रही थी कि भारतीय राजनीति अलग कोई सोचने वाला मिला है. जब पहली बार राजीव गांधी लाल किले की प्रचार से देश को संबोधित कर रहे थे तो उनके पास सिर्फ इंदिरा गांधी का नाम था जबकि चुनौतियां काफी थीं.
जवाहर लाल नेहरू से भी ज्यादा बड़ी जीत के साथ राजीव गांधी सत्ता में आए थे. इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी राजनीति में आए और देश के प्रधानमंत्री बने. वह देश के सबसे युवा और गांधी परिवार से प्रधानमंत्री बनने वाले तीसरे सदस्य थे. राजीव गांधी ने जब देश की कमान संभाली थी उस वक्त वह सिर्फ 40 साल के थे.
साल 1985 में राजीव गांधी लाले किले की प्राचीर से देश को संबोधित करने के दौरान वह शुरुआती पांच-सात मिनट अपने नाना जवाहर लाल नेहरू और मां इंदिरा गांधी के बारे में ही बातें करते रहे थे. वह पहले भाषण में बार-बार इंदिरा गांधी का ही नाम लेते रहे. उनके पास इंदिरा की विरासत थी और सुफ-सुथरी पूंजी का कवच. उन्होंने कि देश की तरक्की के रास्ते पर चलने और 38 वर्षों की उपलब्धियों के बारे बताते हुए कहा था कि नेहरू और इंदिरा की योजनाओं के चलते आज देश विकसशील देशों की श्रेणी में आगे खड़ा है.
राजीव के पीएम बनने के बाद पहला साल सूखा
राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मॉनसून के दगा देने के चलते देश में भयानक अकाल पड़ा था. उस वक्त उन्होंने देश के अलग-अलग इलाकों को दौरा किया. स्वतंत्रता दिवस पर उनके भाषणों में बेरोजगारी और गरीबी के लिए चिंता साफ दिखती थी. लेकिन लोगों के दिलों में यह बात थी कि उनका नेता जरूर कोई न कोई रास्ता निकाल लेगा. चुनौतियां बनी रही लेकिन राजीव हर साल लोगों को नौकरियों की दुहाई देते रहे.
राजीव ने 1987 में लाल किले कि प्रचार से कहा था कि युवकों में एक निराशा कभी-कभी दिखलाई देती है. देश के करोड़ों युवक काम ढूंढ नहीं पाते है. रोजगार नहीं पाते हैं. हमारी कोशिश है कि ढांचे में जो कमजोरियां हैं उनको दूर करने का काम किया जाए.
पहले भाषण में ‘सत्ता की दलाली’ का इस्तेमाल
राजीव गांधी ने लाल से अपने पहले ही भाषण में सत्ता की दलाली जैसे शब्दों का इस्तेमाल का था और कहा था कि सत्ता के दलालों को टिकने नहीं दिया जाएगा. इससे उनका इशारा साफ था कि सत्ता संरक्षित दलाली उनकी सरकार में नहीं चलेगी. लेकिन, उनकी सरकार के रक्षा मंत्री वीपी सिंह ने ही बोपोर्स तोप की खरीद में दलाली का मुद्दा उठाया और उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया. इसके बाद वीपी सिंह ने कांग्रेस छोड़ते हुए जन मोर्चा गठन कर बाद में जनता दल बनाया.
1986 के अपने भाषण के दौरान उन्होंने न सिर्फ भारत को संबोधित किया बल्कि उन विविधताओं के बारे में बात कि जिनसे भारत बनता है. उन्होंने कहा था- “एक भारतीय होने का मतलब यह नहीं है कि हम केवल देश के निवासी हैं… हमारे पास संस्कृतियों की विविधता है. हम अलग-अलग धर्मों के हैं- हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी और बौद्ध… हम सभी धर्मों और आस्था को सम्मान देते हैं. इसी तथ्य से हमारी ताकत और एकता बढ़ती है. यही एकमात्र रास्ता है जिसका हमें अनुसरण करना चाहिए, क्योंकि हमारी ताकत हमारी विविधता में निहित है.”
लेकिन, बोफोर्स का दाग लगने के बाद और सत्ता गंवाने से महज तीन महीने पहले 1989 में लाल के से भाषण में राजीव गांधी ने कहा था- हमें आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना होगा. हमें दुनिया में विश्व शक्ति बनना होगा लेकिन उन महाशक्ति की तरह नहीं जो अन्य को दबाकर ऊपर उठे हैं. राजीव ने अपने भाषण में कहा- “हमने दुनिया को दिखाया कि चाहे वे कितना भी दबाव डालें हमारा देश उनके दबावे के नीचे नहीं आनेवाला है. आज आजादी के 37 साल के बाद हम गौरव से कह सकते हैं कि हमारा देश हर तरह से आजाद है.”
बोपोर्स डील में दलाली के आरोप ने बढ़ाई राजीव के परेशानी
राजीव गांधी को बोफोर्स तोप घोटाले ने बेचैनी बढ़ा दी क्योंकि सीधा आरोप उनके ऊपर ही लगा था और इसे उठाने वाला कोई और नहीं बल्कि उनके ही रक्षामंत्री वीपी सिंह थे. हालांकि, बोफोर्स तोप घोटाले के आरोपों के बीच 15 अगस्त 1987 को राजीव ने लाले किले से कहा- इन चालीस सालों में देश के किसानों की पैदावार बहुत बढ़ी है. 15 करोड़ टन पर पहुंच चुकी है. साथ में हम देख रहे हैं कि कपास की पैदावार और दाल की पैदावार पर खास ध्यान देने की जरूरत है. राजीव के ऊपर एक तरफ सनसनीखेज आरोप लगे तो दूसरी तरफ वह देश के युवाओं को सपने दिखा रहे थे. लेकिन, उनके इस सपनों को अपनों के ही लगाए आरोप छलनी कर रही थी. राजीव की ईमानदारी कभी बोफोर्स तोप तो कभी स्विस बैंक प्रकरण के चलते घेरे में आ चुकी थी.
लेकिन, बोफोर्स घोटाले के आरोपों के बाद राजीव की छवि पर गहरा असर पड़ा था. उनकी क्लीन की छवि धूमिल हो चुकी थी. हालांकि, राजीव गांधी ने एक बड़ा काम किया. संविधान का संशोधन कर पंचायती राज के सपने को सच किया. इस बीच राजीव ने शाह बाने केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटकर एक बड़ी भूल की थी. आखिरकार 1989 में आखिरी बार लाल किले की सीढ़ियां चलते हुए उनके खिलाफ चुनावी माहौल बन चुका था. उनके पास सिर्फ वादों के अलावा कुछ भी नहीं बचा था. इसके बाद चुनाव में राजीव की सत्ता उनके हाथ से निकल गई.
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