राष्ट्रीय

सरकार अगले साल खत्म कर सकती है फ्यूल सब्सिडी, कभी सरकारी खजाने पर 1.64 लाख करोड़ आता था बोझ

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]

[ad_1]

नई दिल्ली: केंद्र सरकार अगले वित्त वर्ष में फ्यूल सब्सिडी खत्म कर सकती है. कभी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान फ्यूल सब्सिडी पर 1.64 लाख करोड़ रुपये खर्च होता था. वित्त वर्ष 2020-21 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौरान ये खर्चा घटकर 12,231 करोड़ रुपये हो गया है. 

तेल कंपनियों ने 2012-13 के दौरान 1.64 लाख करोड़ रुपये की सबसे अधिक अंडर-रिकवरी (पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री पर नुकसान) की सूचना दी थी. इसके बाद यूपीए सरकार को 1.03 लाख करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा था, जबकि अपस्ट्रीम तेल कंपनियों को 60,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा और बाकी 1029 करोड़ रुपये ओएमसी द्वारा वहन किया गया.

2013-14 के वित्तीय वर्ष में फ्यूल सब्सिडी बिल 1.47 लाख करोड़ रुपये था, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता में आई थी. मोदी सरकार ने जो पहली चीजें कीं, उनमें से एक थी 19 अक्टूबर 2014 से डीजल की कीमत को नियंत्रणमुक्त करना. साल 2014-15 में एक झटके में फ्यूल सब्सिडी लगभग आधी घटकर 77,073 करोड़ रुपये रह गई. 77,073 करोड़ रुपये में से, सरकार को 32,067 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा, जबकि बाकी अपस्ट्रीम तेल कंपनियों और ओएमसी ने वहन किया.

मनमोहन सिंह सरकार ने साल 2010 में पहले ही पेट्रोल की कीमत को नियंत्रण मुक्त कर दिया था, इसलिए नरेंद्र मोदी सरकार को बाद के सालों में घरेलू रसोई गैस और मिट्टी के तेल की सब्सिडी वहन करनी पड़ी.
डीजल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने के बाद, 2015-16 के वित्तीय वर्ष के लिए अंडर-रिकवरी आधे से अधिक गिरकर 34,307 करोड़ रुपये हो गई. 2016-17 के लिए अंडर रिकवरी 27,300 करोड़ रुपये, 2017-18 के लिए 28,684 करोड़ रुपये, 2018-19 के लिए 43,814 करोड़ रुपये, 2019-20 के लिए 26,621 करोड़ रुपये थी.

एलपीजी पर सब्सिडी की स्थिति
सरकार के अनुसार, मई 2020 से दिल्ली जैसे कुछ बाजारों में एलपीजी उपभोक्ताओं की सब्सिडी शून्य है. जून में खत्म होने वाली पहली तिमाही में सरकार ने केवल 33 करोड़ रुपये की एलपीजी सब्सिडी ग्राहकों के बैंक अकाउंट में भेजी. इससे संकेत मिलता है कि फ्यूल सब्सिडी व्यवस्था जल्द ही खत्म हो सकती है. ऐसे ही पीडीएस केरोसिन सब्सिडी की राशि 2019-20 में 1883 करोड़ रुपये थी, जो 2020-21 में शून्य हो गई.

ये कहा जा सकता है कि सरकार फ्यूल सब्सिडी व्यवस्था को खत्म करने में सक्षम है. उपभोक्ताओं को पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और मिट्टी के तेल के लिए सबसे अधिक कीमत चुकानी पड़ती है. हालांकि कच्चे तेल की कीमत यूपीए सरकार की तुलना में एनडीए शासन में कम रही. 

यूपीए शासन के दौरान कच्चे तेल की कीमत 2011-12 में उच्चतम स्तर पर 111 डॉलर प्रति बैरल थी. 2012-13 और 2013-14 के दौरान भी कीमतर 100 डॉलर से ऊपर रही. 2014-15 में एनडीए शासन के दौरान कच्चे तेल करीब 84 डॉलर प्रति बैरल हो गया. इसके बाद कच्चा तेल 2015-16 में 46 डॉलर प्रति बैरल, 2016-17 में 47.5 डॉलर प्रति बैरल, 2017-18 में 56 डॉलर प्रति बैरल, 2018-19 में 70 डॉलर प्रति बैरल, 2019-20 में 60 डॉलर प्रति बैरल और 2016 में 45 डॉलर प्रति बैरल हो गया.

ये भी पढ़ें-
Investment Tips: गोल्ड या शेयर मार्केट, कहां करें निवेश जो मिले ज्यादा फायदा, यहां पढ़ें इस सवाल का जवाब

रिलायंस जियो ने एयरटेल के साथ स्पेक्ट्रम एग्रीमेंट पूरा किया, इसी साल 1004 करोड़ का हुआ था सौदा

[ad_2]

Source link

Aamawaaz

Aam Awaaz News Media Group has been known for its unbiased, fearless and responsible Hindi journalism since 2018. The proud journey since 3 years has been full of challenges, success, milestones, and love of readers. Above all, we are honored to be the voice of society from several years. Because of our firm belief in integrity and honesty, along with people oriented journalism, it has been possible to serve news & views almost every day since 2018.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button