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अफगनिस्तान में मुश्किलों से जूझती हैं महिलाएं, जानें बीते 20 सालों में वहां कैसे रहे उनके हालात

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Afghanistan Before Taliban: अफगानिस्तान पर एक बार फिर तालिबानियों का कब्जा हो गया है. सोशल मीडिया पर एक के बाद एक सामने आ रहे वीडियो को देखकर ऐसा लग रहा है कि वहां के लोग डर के साए में जी रहे हैं. हर तरफ भय का माहौल व्याप्त है. सैंकड़ो अफगानी नागरिक अपने वतन छोड़कर दूसरे देश में शरण ले चुके हैं तो वहीं अभी भी वहां के कई लोग देश छोड़कर दूसरे देश में बस जाना चाहते हैं.

विदेशी कामगार तो हर हाल में अफगानिस्तान छोड़कर वतन वापसी चाहते हैं. अफगानिस्तान के कई शहरों पर तालिबानियों के कब्जे के बाद ऐसा लग रहा है जैसे हर जगह अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है. सोशल मीडिया पर सामने आ रहे वीडियो को देखकर ऐसा लग रहा है कि अब अफगानियों के लिए आजादी महज एक शब्द बनकर रह गया हो.

फैशन हब जैसा दिखता था अफगानिस्तान

पुरानी तस्वीरें और वीडियो देखने के बाद ऐसा लगता है कि एक समय था जब फैशन के मामले में अफगानिस्तान किसी यूरोपीय देश से कम नहीं था. महिलाएं अपनी पसंद की ड्रेस पहनकर सड़कों पर बिंदास घूमती थीं. लेकिन अब तालीबानियों के शासन आने के बाद वहां महिलाओं के साथ क्या सलूक होगा ये भी साफ दिखने लगा है.

अफगानिस्तान में महिलाओं की आजादी को लेकर एक भविष्यवक्ता की तरह बात करते हुए अफगानी रिफ्यूजी शोएब कहते हैं कि वहां लडकियों और महिलाओं की जिंदगी किसी जहन्नुम से कम नहीं है. हम यहां आकर खुश हैं मगर अपने छूटे हुए परिवार की चिंता भी सता रही है.

अफगानिस्तान के हालत को लेकर शोएब के कंठ से फूटे शब्द बता रहे हैं कि आने वाले दिनों में वहां की स्थिति कैसी होगी. शोएब के लफ्ज बता रहे हैं कि मानव प्रवास का एक प्राचीन केंद्रबिंदु रहा अफगानिस्तान मौजूदा हालात में किस दौर में पहुंच चुका है.

रेंगटे खड़े कर देते हैं रुबीना के शब्द

रुबीना की शब्दों को सुनने के बाद तो ऐसा लगता है कि वह मानों शोएब की बातों पर मुहर लगा रही हो. महिलाओं को लेकर तालीबानी आतंकियों के रुख को लेकर जब रुबीना बात करती हैं तो न सिर्फ उनके बल्कि सामने वालों के भी रेंगटे खड़े हो जाते हैं.

रुबीना जब अफगानी महिलाओं की दर्द को बयान करती है तो सुनकर बस आनंद बक्षी के लिखे शब्द याद आते हैं- ‘दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है.’ वह बताती हैं कि तालिबानी आतंकियों ने लडकियों की जिंदगी नर्क बना दी है. पढ़ने की इजाजत नहीं है. वह लोग विधवा महिलाओं से जबरन शादी रचाते हैं और नाबालिग लडकियों को अगवा कर निकाह करते हैं.

रुबीना बस अल्लाह से दुआ करती है कि तालीबानी वहां की महिलाओं के साथ कुछ भी ऐसा न करें. वह कहती हैं कि तालिबानियों का कोई भरोसा नहीं, कब किसे मार दें. कब किसके बच्चे को उठा ले जाएं.

‘अत्याचार से परेशान थे आसिफ’

अफ़गानों की इस भूमि के हालत क्या हैं ये आसिफ की बातों से साफ हो जाता है. आसिफ कहते हैं कि मैं वहां तालिबानी अत्याचार से वो परेशान हो गया था. उनके निशाने पर खासकर बच्चे और लडकियां होती हैं. आसिफ कहते हैं कि वो कभी नहीं चाहते कि बच्चे और लड़कियां आधुनिक शिक्षा हासिल कर सकें.

आसिफ की बातें सुनकर शरीर में सिहरन भी होती है और मन में गु्स्सा भी आता है. वह कहते हैं कि तालीबानी घरों में जबरन घुसकर बच्चों को उठा ले जाते हैं और अगर किसी ने इसने पूछ लिया कि क्या करोगे बच्चों को ले जाकर तो इनका जवाब होता है कि इन्हें बंदूक चलाना सिखाएंगे.

जरा कल्पना कीजिए कि 21वीं सदी में दुनिया पढ़-लिखकर चांद पर जाने की सोच रही है तो ऐसे वक्त में तालीबानी अपने देश के बच्चों को माउस नहीं ट्रिगर दबाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं. 

(सभी लोग अफगानिस्तान से विस्थापित होकर भारत पहुंचे हैं और देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे हैं. सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इनका नाम बदल दिया गया और कहां रह रहे हैं इसे गुप्त रखा गया है.)

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