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ऐसा था काबुल से करीब 200 भारतीयों के सुरक्षित स्वदेश लौटने के पीछे भारतीय वायुसेना का खास मिशन

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Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से करीब 200 भारतीय नागरिकों के सुरक्षित स्वदेश लौटने के पीछे भारतीय वायुसेना का खास मिशन था. इस एयरलिफ्ट से जुड़ी जानकारियां अब बाहर आनी शुरू हो गई हैं. भारतीय वायुसेना की स्काई-लॉर्ड स्क्वाड्रन ने इस मिशन को अंजाम दिया था और इसके लिए अमेरिका से लिए दो सी-17 ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट्स का इस्तेमाल किया गया था. 

जानकारी के मुताबिक अफगानिस्तान में जैसे ही हालात बिगड़ने शुरू हुए थे, उसी वक्त ही सरकार के निर्देश पर भारतीय वायुसेना अलर्ट हो गई थी. वायुसेना ने दिल्ली के करीब हिंडन एयरबेस पर तैनात स्काई-लॉर्ड स्क्वाड्रन को काबुल में फंसे भारतीयों को सुरक्षित लाने की जिम्मेदारी सौंपी. स्कॉई-लॉर्ड स्क्वाड्रन में दुनिया के सबसे बड़े मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट्स में से एक, सी-17 ग्लोबमास्टर तैनात हैं. भारत ने वर्ष 2013 में अमेरिका से कुल 11 ऐसे मालवाहक जहाज खरीदे थे. 14 अगस्त को वायुसेना को जानकारी मिली कि काबुल से कम से कम 200 भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालना है. इन भारतीयों में काबुल में भारत के राजदूत आर. टंडन, एंबेसी स्टाफ और उनके परिवार सहित आईटीबीपी के करीब 100 जवान शामिल थे. 

करीब 200 भारतीयों को अफगानिस्तान से एयरलिफ्ट करने के लिए वायुसेना ने अपने दो सी-17 विमानों को जिम्मेदारी सौंपी. विमानों को सख्त हिदायत दी गई कि काबुल जाने के लिए पाकिस्तान की एयरस्पेस इस्तेमाल नहीं करनी है क्योंकि पाकिस्तान की एयरस्पेस इस्तेमाल करने के लिए वायुसेना को पाकिस्तानी वायुसेना से इजाजत लेनी पड़ती. ऐसे में वायुसेना का ऑपरेशन ‘कॉम्प्रेमाइज’ होने की संभावना थी. तालिबान को भी इसकी भनक लग सकती थी. भारत नहीं चाहता था कि किसी भी कीमत पर तालिबान को इस ऑपरेेशन की भनक लगे क्योंकि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी पिछले कुछ समय से लगातार इस तरह की खबरें फैला रही थी कि भारत के मिलिट्री विमान तालिबान के खिलाफ अफगान सरकार की मदद के लिए गोला बारूद और हथियार भेज रही है. ऐसे में पूरे मिशन को बेहद गोपनीय रखा गया था.

ईरान के एयरस्पेस से अफगानिस्तान में दाखिल

15 अगस्त को जब पूरा देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा था, तब हिंड़न एयरबेस से भारतीय वायुसेना के दोनों सी-17 ग्लोबमास्टर गुजरात के रास्ते अरब सागर से होते हुए ईरान के एयरस्पेस से अफगानिस्तान में दाखिल हुए. लेकिन उससे पहले ही काबुल एयरपोर्ट पर लोगों के हूजुम, हंगामें और अफरातफरी की खबरें मिलना शुरू हो गई थी. वे तस्वीरें और वीडियो भी आने शुरू हो गए थे जिसमें अमेरिकी मिलिट्री एयरक्राफ्ट के काबुल एयरपोर्ट के रनवे से टेकऑफ करते वक्त लोग आगे-पीछे भाग रहे थे और कुछ टायर्स और विंग्स पर लटके हुए थे. आसमान से लैंडिंग-गियर पर लटके लोगों के गिरते हुए वीडियो भी सामने आ रहे थे. ये भी अमेरिका का सी-17 ग्लोबमास्टर विमान था. बाद में जानकारी सामने आई कि इसमें करीब 650 लोग सवार थे. अमेरिका के इस विमान में ठूंस-ठूंस कर लोग भरे हुए थे.

वहीं भारतीय वायुसेना ने इस मिशन की कोई भी जानकारी आधिकारिक तौर से साझा नहीं की थी, लेकिन बहुत मुमकिन है कि भारत ने अमेरिका से भी इस मिशन के लिए मदद ली होगी क्योंकि शुरुआती अफरातफरी के बाद यूएस मिलिट्री ने काबुल एयरपोर्ट को अपने कब्जे में ले लिया था और एटीसी यानी एयर-ट्रैफिक कंट्रोल भी अमेरिकी सेना के अधिकारी कर रहे थे.

जानकारी के मुताबिक, 15 अगस्त की शाम तक भारत का एक ग्लोबमास्टर तो काबुल एयरबेस पर लैंड कर गया, लेकिन एक ने नहीं किया. आखिर ये किस कारण से नहीं कर पाया इस बारे में साफ-साफ जानकारी सामने नहीं आई है. कुछ लोगों को मानना है कि दूसरा ग्लोबमास्टर हंगामे के चलते लैंड नहीं कर पाया, जबकि कुछ का कहना है कि सुरक्षा कारणों से दूसरे को काबुल के बजाए ताजिकिस्तान के ऐनी एयरबेस पर ‘बैक-अप प्लान’ के लिए लैंड कराया गया. ऐनी एयरबेस अफगानिस्तान की सीमा के करीब ही है.

सोवियत संघ के समय में ऐनी यूएसएसआर वायुसेना का बेहद महत्वपूर्ण एयरबेस था. लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद इस एयरबेस का ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया जाता था. हालांकि इस बात का कभी भी आधिकारिक तौर से खुलासा नहीं किया गया है लेकिन ये माना जाता है कि इस ऐनी एयरबेस को फिर से सुचारू रूप से चलाने के लिए भारत ने इसके इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी निवेश किया है. गौरतलब है कि ताजिकिस्तान के फखरूर एयरबेस पर भी भारत का काफी हद तक नियंत्रण रहता है. ये एयरबेस भी अफगानिस्तान की सीमा के बेहद करीब है. यहां भारतीय सेना का एक फील्ड-हॉस्पिटल भी तैनात रहता है.

अमेरिकी सेना के कब्जे में एयरपोर्ट

16 अगस्त की सुबह 40 लोगों को लेकर पहला सी-17 ग्लोबमास्टर काबुल एयरपोर्ट से रवाना हो गया. तब तक काबुल एयरपोर्ट के रनवे को अमेरिकी सेना ने अपने कब्जे में ले लिया था. वहां के सभी ऑपरेशन्स भी अमेरिकी सेना संभाल रही थी. हालांकि, एयरपोर्ट के बाहर की सुरक्षा तालिबान के लड़ाके कर रहे थे. पहला ग्लोबमास्टर विमान सुबह 11.30 बजे गुजरात के जामनगर पहुंचा और शाम छह बजे दिल्ली के करीब हिंडन एयरबेस. लेकिन इस विमान की पूरी जानकारी बेहद गुप्त रखी गई थी क्योंकि दूसरे ग्लोबमास्टर से अफगानिस्तान में भारत के राजदूत सहित करीब 150 लोगों को वापस लौटना बाकी था.  

16 अगस्त की देर शाम दूसरा ग्लोबमास्टर भी ऐनी एयरबेस से काबुल एयरपोर्ट पहुंच गया. ये विमान सिविल रनवे के बजाए मिलिट्री बेस पर पहुंचा. देर रात ही राजदूत आर.टंडन, एबेंसी के स्टाफ और आईटीबीपी के 100 जवान काबुल एयरबेस पहुंच गए. ये सभी रास्ते में तालिबानी लड़ाके के नाकों से किसी तरह गुजरते हुए वहां तक पहुंचे थे. ये सभी अलग-अलग रास्तों से वहां पहुंचे थे. 

17 अगस्त की सुबह करीब 6.30 बजे भारतीय वायुसेना के ग्लोबमास्टर करीब 150 भारतीयों को लेकर गुजरात के जामनगर के लिए निकल गया. लौटते वक्त भी इस विमान ने ईरान की एयरस्पेस का इस्तेमाल किया. पाकिस्तान एयरस्पेस का इस्तेमाल नहीं किया. करीब 11.30 बजे ये विमान जामनगर पहुंचा, जहां भारत ने आधिकारिक तौर से इस एयरलिफ्ट के बारे में पूरी जानकारी दी. शाम छह बजे ये विमान हिंडन एयरबेस पहुंच गया. भारतीय वायुसेना ने आधिकारिक तौर से इस मिशन के बारे में कोई जानकारी साझा नहीं की है. सूत्रों की मानें तो अफगानिस्तान में अभी भी वायुसेना का मिशन जारी है. ऐसे में जब तक मिशन पूरा नहीं हो जाता, तब तक मिशन से जुड़ी जानकारी साझा नहीं की जा सकती.

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