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Afghanistann News: अफगानिस्तान के काबुल से भारतीय नागरिकों और अफगान सिख हिंदू परिवारों को लेकर भारतीय वायुसेना का सी-17 विमान हिंडन एयर बेस पहुंचा तो पूरे देश ने राहत की सांस ली. लेकिन नागरिकों की निकासी का यह अभियान किसी मुश्किल ऑपरेशन से कम नहीं था. इस अभियान में कई नाटकीय मोड़ आए. ऐसा लगा कि हालात किसी भी क्षण हाथ से बाहर निकल सकते हैं. खास तौर पर तब जबकि भारतीय नागरिकों और अफगान परिवारों को लेकर चल रही 9 बसों को तालिबान के लड़ाके सुरक्षित एयरपोर्ट के दूसरे गेट तक ले जाने के बहाने अपने हेड क्वार्टर ले गए. मगर इस नाजुक वक्त में कुछ लोगों की सूझबूझ खासी कारगर सिद्ध हुई. इनमें भारतीय सेना में सेवाएं दे चुके कुछ पूर्व सैनिक भी शामिल थे. जिन्होंने न केवल अपने लोगों का मनोबल ऊंचा रखा बल्कि तालिबान के साथ किसी विवाद की स्थिति और टकराव की स्थिति टालने का भी प्रयास करते रहे. एक ही लक्ष्य था किसी तरीके से एयरपोर्ट पहुंच अपने मुल्क वापस आना. 22 अगस्त की सुबह भारत आए इस दल में शामिल अनुराग गुरुंग भारतीय सेना की गोरखा रेजीमेंट में डेढ़ दशक तक फौजी रहे हैं. बीते 10 सालों से अफगानिस्तान में काम कर रहे हैं.
एबीपी न्यूज़ के साथ खास बातचीत में अनुराग ने ना केवल अपनी आपबीती सुनाई बल्कि उन हालात को भी बयां किया जिन से निकलकर भारतीय नागरिक और अफगान हिंदू व सिख परिवार भारत पहुंच पाए. अपने साथी पूर्व सैनिकों प्रदीप थापा और हरी के साथ अनुराग कहते हैं कि काबुल के मुश्किल हालात में भारतीय सेना की ट्रेनिंग बहुत काम आई. जहां सिखाया जाता है कि किस तरह विपरीत स्थितियों में भी धैर्य रखना है. कठिन परिस्थितियों में भी रास्ता निकालना है और अपने लोगों को सुरक्षित निकालना है. इस दौरान न केवल अपना धैर्य बनाए रखने की चुनौती थी बल्कि साथ मौजूद महिलाओं बच्चों अन्य नागरिकों की सुरक्षा का भी संकट था. कई घंटे बसों में बैठकर गुजारने पड़े. इस दौरान आसपास हवाई फायरिंग होती रही हजारों की भीड़ मैं भगदड़ होती रही. कई लोगों ने भारतीय नागरिकों के साथ खड़ी बसों में चढ़ने की भी कोशिश की जिन्हें लगता था कि भारत के लोगों के साथ मिलकर वह एयरपोर्ट के अंदर दाखिल हो सकते हैं और अफगानिस्तान से बाहर निकल सकते हैं. अनुराग कहते हैं इस वक्त अफगानिस्तान में और खास तौर पर काबुल शहर में सबसे बड़ा संकट अराजकता का है. कोई नहीं जानता कि किस व्यक्ति की पहचान क्या है. कौन तालिबान है? कौन नहीं? कौन अफगानिस्तानी पाक तालिबान है और कौन पाकिस्तानी तालिबान?
लंबे वक्त से अफगानिस्तान में विभिन्न परियोजनाओं के लिए रिस्क मैनेजमेंट का काम करते रहे अनुराग के मुताबिक भारत के लोगों के लिए सबसे बड़ा खतरा तालिबानी लड़ाकों के साथ मौजूद पाकिस्तानी आतंकी है. यह बात सच है कि काबुल में अचानक से उर्दू बोलने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है. जाहिर तौर पर यह लोग अफगान नागरिक नहीं है. वही मौके का फायदा उठाने के लिए कई असामाजिक तत्व भी सक्रिय हैं. ऐसे में वहां से निकलने में ही भलाई है.
तालिबान लड़ाकों के साथ अपने एनकाउंटर की कहानी बयां करते हुए गुरुंग बताते हैं कि उन्हें अपने साथ ले गए तालिबानियों ने किसी तरीके की कोई बदसलूकी नहीं की. बल्कि सहयोग ही किया. तालिबानी लड़ाकों का एक दल भारतीय नागरिकों की बसों को एस्कॉर्ट कर रहा था. उन्होंने अचानक कहा कि हम आपको दूसरे गेट की तरफ से लेकर चलते हैं. किसी के पास कोई चारा नहीं था.
हालांकि गुरुंग के अनुसार गेट की तरफ जाने के रास्ते में ही तालिबानी लड़ाकों ने काफिले का रुख एयरपोर्ट की बजाए दूसरी तरफ मोड़ दिया. यह साफ तौर पर खतरे की घंटी थी. जाहिर है एक फौजी दिमाग इसको लेकर फौरन चौकन्ना हो गया. गुरुंग के अनुसार उन्होंने पीछे की बसों में मौजूद अपने साथियों को संदेश दिया कि तालिबानी लड़ाके गाड़ियों को एयरपोर्ट के दरवाजे की बजाय किसी दूसरे स्थान की तरफ लेकर जा रहे हैं. इसी दौरान लोगों ने भारत सरकार को भी इस बारे में सूचना दे दी. कुछ ही देर में काबुल से लेकर दिल्ली तक सक्रिय हो गया.
हालांकि तालिबानी लड़ाके इस दल को कहीं और नहीं बल्कि अपने स्थानीय मुख्यालय में लेकर गए थे. दल में मौजूद प्रदीप थापा के अनुसार वहां पहुंचते ही महिला और पुरुषों को अलग अलग कर दिया गया. साथ ही तालिबानी लड़ाकों न सबसे लाइन लगाने के लिए कहा. यह सभी लोगों के लिए चिंतित करने वाली घटना थी. खास तौर पर ऐसे में जबकि साथ में महिलाएं और बच्चे हो. जब तालिबान लड़ाकों ने लोगों से उनके पासपोर्ट मांगना शुरू किया तो कई लोग घबरा कर रोने भी लगे. मगर ऐसे में अपने आप को नियंत्रित रखना और हालात के बीच रास्ता निकालना ही समाधान है. लिहाजा तय किया गया कि कुछ लोग तालिबान के लड़ाकों के साथ बातचीत करते रहेंगे ताकि सही स्थिति का पता लगता रहे. वहीं कुछ अन्य लोग अपने दल के लोगों को समझाते रहेंगे ताकि उनका मनोबल ना टूटे और हालात नियंत्रण से बाहर ना हो. इस दौरान तालिबानी लड़ाकों ने लोगों को पानी पिलाया, उनके खाने का इंतजाम भी किया. वहीं तालिबान ने लोगों के पासपोर्ट की जांच कर लोगों को लौटा दिया.
अनुराग गुरुंग के मुताबिक उन्होंने और उनके साथियों ने तालिबान कमांडर को बताया कि वो भारतीय सेना के पूर्व सैनिक हैं और अफगानिस्तान में काम कर रहे थे. जिसके जवाब में तालिबान कमांडर ने भारत से मिली मदद परियोजनाओं का भी ज़िक्र किया. हालांकि गुरुंग इस बात से इंकार नहीं करते कि इस घटना के पीछे तालिबान लड़ाकों का मकसद सोचे समझे तरीके से छवि सुधार का सन्देश भी हो सकता है क्योंकि वह लगातार यह कह रहे थे कि हम भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहते हैं. साथ ही इस बात पर भी जोर दे रहे थे कि पेशेवर लोगों को यहां से जाने की जरूरत नहीं है और उन्हें यही काम करना चाहिए. जबकि ज़मीनी हालात यह हैं कि अधिकतर लोग वहां से मुल्क छोड़कर जा रहे हैं.
वतन वापसी के लिए भारत सरकार और भारतीय वायु सेना का शुक्रिया अदा करते हुए पूर्व सैनिक प्रदीप थापा कहते हैं किसी 17 विमान में कदम रखते ही ऐसा लगा मानो अपने मुल्क पहुंच गए. आना की इसके पहले महिलाओं और बच्चों के साथ 5 दिन तक अनिश्चितता, अराजकता और अव्यवस्था के बीच गुजारना बेहद कठिन चुनौती थी.
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