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देश छोड़ने के बाद भी नहीं जा रहा तालिबान का डर, सुनिए भारत आए एक परिवार की खौफनाक दास्तां

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Story of Afghanistan Family: अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद जो तस्वीरें सामने आई हैं, उसने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है. डरे-सहमे हुए लोग किसी तरह जान अपनी बचाकर अफगानिस्तान से भाग रहे हैं. ऐसे ही एक परिवार के साथ जब एबीपी न्यूज़ ने बात की तो उसने अपनी दर्द भरी कहानी बयां की. 40 वर्षीय मेहमत खान अपनी पत्नी और दो बेटियों  के साथ पिछले हफ़्ते काबुल से भारत आए थे. पैसे नहीं होने की वजह से हावड़ा में अपने एक पुराने जानकार के घर शरण ली है. लेकिन हर पल अफगानिस्तान से आ रहे फ़ोन से वे और डर रहे हैं.

हावड़ा का रहने वाला यह परिवार उस डर को भूल नहीं पा रहा है. मेहमत खान अपनी दो बेटियों और पत्नी के साथ किन-किन स्थितियों से गुजरे और कैसे अफगानिस्तान से भागने में सफल रहे, आइए उनकी जुबानी सुनते हैं.

अफगानिस्तान से आए एक परिवार की दर्द भरी दास्तां

मेहमत खान कहते है, “हम पिछले हफ्ते काबुल से एक भारतीय दूतावास के जरिए यहां आए हैं. मैं उसे धन्यवाद देना चाहता हूं, जिसने हमें बाहर निकाला. पिछले हफ्ते जब हम काबुल से बाहर आए तो बहुत कठिन स्थिति थी. बच्चे रोते थे, मैं रोता था. उन्होंने हमारा घर लूट लिया. मैं अपना सारा सामान वहीं छोड़कर यहां आया हूं. हमने बहुत यातना का सामना किया, सबकुछ वहीं छोड़ दिया. हमारे पास रुपये भी नहीं थे. हमारे पास सिर्फ 10,000 रूपये थे जब हम दिल्ली आए, फिर हमने किसी से खर्च करने के लिए कहा और यह भी कहा कि हम कोलकाता जा रहे हैं.

उन्होंने आगे बताया- “काबुल में जो हालत हम देख रहे हैं, तालिबान के लोग हाथ में बड़ी तोपें लिए हुए हैं. वे बड़े लोगों को मार रहे थे और उन्हें भी जिन्होंने अफगानिस्तान का झंडा फहराया था. काबुल में बहुत अत्याचार हो रहा है. हम बहुत कठिन परिस्थिति से बाहर आए. यह बच्ची कल रात और आज रात रो रही थी और कह रही थी कि उसे डर लग रहा है.”

देश छोड़ने के बाद भी नहीं निकल रहा तालिबानियों का डर
मेहमत खान की दो बेटियां हैं, जो तालिबान का नाम सुनते ही रोने लगती है. नौ साल की पशतानी और छः वर्ष की मलालाई की आंखें नम हो जाती है. मलालाई ने पशतूनी भाषा में कहा जिसका अनुवाद उनके पिता कर रहे थे. वह कह रही है कि वह अभी भी तालिबान से डरती है जो काबुल और हमारे घर के सामने आया था. तब हम डर गए थे. नींद में भी ये सब देखकर हम आज भी डरे हुए हैं. जागने के बाद हम सो नहीं पा रहे थे हमें बहुत दर्द हो रहा है. हम बहुत चिंतित हैं.”

पश्तुनी भाषा में पशतानी का अर्थ अभिमान होता है. पशतानी ने सहमी हुई आवाज़ में कहा, “जब हम नींद से उठते हैं तो हम चिंतित होते हैं, हम रोते हैं, हमने तालिबान को देखा है और अब भी रोएंगे, अब भी डरे हुए हैं. ऐसा सिर्फ हमारे साथ ही क्यों हो रहा है, हम पर इतना अत्याचार क्यों हो रहा है?”

रो-रो कर परिवार ने सुनाई खौफनाक दास्तां
पशतूनी ने कहा, “ मैं अभी भी रोऊंगी. तालिबान का नाम सुनकर हम डर जाते हैं. जब हमने तालिबान को वापस देखा तो हम बहुत डरे हुए हैं. अब भी यह बच्चा नींद से वंचित है. देखो वह अभी भी रो रही है. जब भी कोई तालिबान का नाम ले रहा है वह रो रही है. अभी भी मेरा बच्चा मुश्किल स्थिति में है. इस सब के बारे में पढ़ते हैं लेकिन जब हमने लोगों को बंदुक से हत्या करते देखा तो हम डर गए. मैंने वास्तविक जीवन में तालिबान को कभी नहीं देखा था, लेकिन जब हमने उन्हें देखा तो हम बहुत डरे हुए हैं, यहां तक ​​कि अब भी उनके चेहरे से. उसमें से इतने लोग मारे गए, इतने सारे लोग हवाई अड्डे के सामने मारे गए. उसने देखा और अब भी रोती है.”

भारत आने के बाद मिला सुकून
मेहमत खान ने बताया, “ मैं भारत आया, मुझे खुशी हुई कि भारत ने इस तरह हमारी मदद की. लेकिन जब हम कोलकाता आए, अगले दिन हम पर हमला हुआ. 6 लोग थे, जिनमें से एक के हाथ में पिस्टल थी. मैं हावड़ा पुलिस स्टेशन गया और पूछा कि उन्होंने हमें प्रताड़ित किया कि वे कौन हैं? उन्होंने कहा खान भाई, मैं पीछेवालों को ढूंढ रहा हूं, मैं कल फिर गया था कि कुछ तालिबान ने उन्हें पीछे भेज दिया है. उन्होंने कहा कि वह हारून नाम का एक स्थानीय लड़का है, वह आपसे पैसे मांग रहा था. हमने कहा कि हम गरीब लोग हैं, हमारे घर तबाह हो गए हैं. वे हम पर अत्याचार क्यों कर रहे हैं? मैं फिर थाने गया और कहा कि अगर वे कार्रवाई नहीं करते हैं तो मैं दिल्ली और फिर लाल बाजार जाऊंगा. अगर लाल बाजार ने कार्रवाई नहीं की तो हम दीदी ममता के पास जाएंगे. हमें इस तरह क्यों प्रताड़ित किया जा रहा है? वे रात 12 बजे हमारे घर आए.”

अफगानिस्तान वापस नहीं जाना चाहता परिवार
मेहमत खान तालिबान के कब्जे के बाद अब अपना मुल्का अफगानिस्तान वापस नहीं जाना चाहते हैं. तालिबानियों का एक ऐसा खौफ है जो कम नहीं हो रहा है. बच्चों की आंखें और आवाज में कंपकंपी कह रही है कि इस दर्द को बयां करने के लिए शब्द ढूंढना कितना मुश्किल है.

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