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जेल अधिकारियों की मिलिभगत से चलाया गया 200 करोड़ का एक्सटॉर्शन रैकेट, अब कार्रवाई तय

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Delhi Crime News: जेल के अंदर से 200 करोड़ रुपये का एक्सटॉर्शन रैकेट चलाने के मामले में अब जेल के 9 अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई होनी सुनिश्चित है. तिहाड़ जेल प्रशासन ने दिल्ली सरकार से सिफारिश की है कि इन नौ संदिग्ध अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाए. ये सिफारिश इंटरनल इंक्वायरी के बाद की गई है.

सुकेश चंद्रशेखर पर आरोप है कि उसने रोहिणी जेल के अंदर बंद रहते हुए एक्सटॉर्शन रैकेट चलाया, जिसमें उसने रैनबैक्सी के पूर्व प्रमोटर्स की पत्नी से 200 करोड़ रुपये वसूले. इस मामले में रोहिणी जेल के अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने सुकेश चंद्र शेखर को जेल के अंदर सुविधाएं उपलब्ध करवाई, जिनकी मदद से उसने इस एक्सटॉर्शन के धंधे को अंजाम दिया. इस मामले में जेल प्रशासन पहले ही 6 अधिकारियों/कर्मचारियों को निलंबित भी कर चुका है. इस मामले में दिल्ली पुलिस जेल के एक डिप्टी सुपरिटेंडेंट और 1 असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट को पहले ही गिफ्तार भी कर चुकी है.

सुकेश चंद्रशेखर मामले में तिहाड़ जेल प्रशासन की तरफ से 9 संदिग्ध जेल अधिकारियों और कर्मचारियों की इंटरनल इंक्वायरी की गई. इसके बाद दिल्ली सरकार के गृह विभाग से इन संदिग्ध अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने की सिफारिश की गई है.

इस विषय पर जब तिहाड़ जेल के डीजी संदीप गोयल से बात की तो, उन्होंने ऑन कैमरा बात करने से इंकार कर दिया. हालांकि ऑफ कैमरा बात करते हुए उन्होंने बताया कि जब ये मामला सामने आया तो जेल प्रशासन की तरफ से इसमें इंटरनल इंक्वायरी की गई. इंक्वायरी के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इस पूरे मामले में जेल के इन नौ अधिकारियों की लापरवाही स्पष्ट नजर आ रही है. इस वजह से हमने विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है. जिस तरीके से सुकेश चंद्रशेखर बैरक के अंदर से एक्सटॉर्शन के धंधे को चला रहा था. उसमें जेल अधिकारियों की लापरवाही साफ दिखती है. डीजी संदीप गोयल से जब हमने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के बारे में पूछा तो उन्होंने यह बात भी कही की सीसीटीवी फुटेज में यह दिख रहा है कि सुकेश चंद्रशेखर के बैरक को पर्दे से ढका हुआ है, जो चादर है उसको पर्दे की तरह इस्तेमाल किया गया है.

तिहाड़ जेल के पूर्व पीआरओ सुनील गुप्ता, का कहना है कि सुकेश चंद्रशेखर का जो मामला है उसमें आरोप बेहद ही संगीन है. जेल के अंदर बैठकर 200 करोड़ रुपये का एक्सटॉर्शन रैकेट चलाना कोई मामूली बात नहीं है. जिस तरीके से ये बात सामने आ रही है कि जेल के कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत से काम चल रहा था तो उसमें शक की गुंजाइश बहुत कम है, क्योंकि जेल के अंदर किसी कैदी को बैरक में मोबाइल फोन की सुविधा उपलब्ध करवाना बगैर किसी वरिष्ठ अधिकारी की मर्जी के संभव नहीं है. दिल्ली सरकार और जेल प्रशासन चाहे तो ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा सकता है. जो गजेटेड अधिकारी होते हैं, अगर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करनी होती है, तो जेल प्रशासन दिल्ली सरकार के गृह विभाग को लिखता है. मैंने 35 साल तिहाड़ जेल में नौकरी की है. हमारे सामने इतना बड़ा केस नहीं आया, जिसमें जेल अधिकारियों की मिलीभगत से एक्सटॉर्शन रैकेट चलाया जा रहा हो. जेल सुपरिटेंडेंट की मर्जी के बगैर जेल में किसी भी कैदी को सुविधा देना मुमकिन नहीं.

उन्होंने कहा कि हमने जेल में वीआईपी सुविधा सुनी है, उसमें कैदी को अच्छा खाना, रहने की बेहतर सुविधा और मिलाई की सुविधा उपलब्ध कराना शामिल होता है, लेकिन इस मामले में बैरक के अंदर आईफोन से एक्सटॉर्शन कॉल करने की सुविधा उपलब्ध कराए जाने और उसकी एवज में जेल के अधिकारियों और कर्मचारियों को हर महीने लाखों रुपये की रिश्वत देने के गंभीर आरोप हैं. ये तो सुपर वीआईपी कैटेगरी को भी पार कर गए.

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