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Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव को लेकर पूर्व सीएम और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के आरोपों के बीच बुधवार को उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों का रैकेट है जो चाहता है कि दरबार मूव जारी रहे. मनोज सिन्हा ने कहा, ”दरबार मूव समाप्त हो गया है इससे जम्मू की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा. मैं कहना चाहता हूं कि मैं पिछले साल सात अगस्त को आया था. जब दरबार मूव शुरू हुआ तो 200 ट्रक में फाइल को जम्मू ले जाया गया. जम्मू आने में कितने दिन लगे इसका मैं जवाब नहीं दे पाऊंगा. जिस काम के लिए फाइलें मांगी जाती थी, वह गायब हो जाती थी. बड़ा रैकेट था, वही चाहते हैं कि यह जारी रहे.”
उन्होंने कहा, ”अब ई ऑफिस कर दिया गया है. जम्मू की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए भारत सरकार कदम उठा रही है. सामान्य आदमी और सामान्य व्यापारी के लिए कदम उठाए जाएंगे. लेकिन जिन लोगों ने समझा है कि वो जैसे चाहेंगे वैसे जम्मू कश्मीर चलेगा, मुझे लगता है कि ये उनकी गलतफहमी है. वो राज खत्म हो गया जब केवल भ्रष्टाचार के सहारे जम्मू-कश्मीर के लोगों के जीवन में दिक्कत पैदा करते थे. यहां का पैसा जनता के लिए इस्तेमाल होगा.”
#WATCH Jammu | It’s being said that stopping Darbar Move will affect J&K’s economy…There was a huge racket that wanted it to continue. Now it’s been converted into e-office…For me, Govt money is like “Gau Maas”, every penny will be used for J&K’s benefit: Lt Gov Manoj Sinha pic.twitter.com/OkDGLNoRWC
— ANI (@ANI) September 22, 2021
महबूबा मुफ्ती ने मंगलवार को कहा था कि मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को सेल पर रखा है. बाहर के लोगों को यहां पर काम दिए जा रहे हैं ताकि जम्मू कश्मीर पूरी तरह से कंगाल हो जाए. उन्होंने कहा कि दरबार मूव को खत्म करके इन्होंने हिंदू और मुस्लिम के भाईचारे को तोड़ा है. महबूबा मुफ्ती ने कहा कि जिस तरह से देश भर में हिंदू मुस्लिम के फसाद हो रहे हैं उसी तरह से जम्मू कश्मीर में दरबार मुखी प्रथा को खत्म करके हिंदू मुस्लिम के भाई चीज को तोड़ा गया है.
बता दें कि दरबार मूव के तहत प्रशासनिक काम छह महीने जम्मू से और छह महीने श्रीनगर से होता है और यह प्रथा 1872 में महाराजा गुलाब सिंह ने शुरू की थी. परंपरा को 1947 के बाद भी जारी रखा गया. राजनेताओं का यह मानना था कि ये प्रथा कश्मीर और जम्मू के अलग भाषा और सांस्कृतिक वाले इलाकों में बातचीत के लिए पुल का काम करती है.
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