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बहुमत के बाद भी गोवा में सरकार बनाने से क्यों चूक गई कांग्रेस, लुईजिन्हो फलेरियो ने किया खुलासा

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Goa Politics: गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता लुईजिन्हो फलेरियो (luizinho faleiro) ने सोमवार को विधायक पद से और कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. माना जा रहा है कि वे ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से जुडेंगे, जो अगले साल होने जा रहे गोवा विधानसभा के चुनाव लड़नेवाली है. जाते-जाते फलेरियो ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक भावनात्मक खत लिखा और बताया कि कैसे 2017 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना पायी.

गोवा में 4 फरवरी 2017 को चुनाव नतीजे आये थे. नतीजों के मुताबिक 40 सीटों वाली गोवा विधान सभा में कांग्रेस को 17 सीटें मिलीं जबकि बीजेपी को 13. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन फिर भी सत्ता दूसरे नंबर की पार्टी यानी बीजेपी के पास गयी. बीजेपी के मनोहर पर्रिकर फिर एक बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. चुनावी सफलता हासिल करने के बावजूद भी सरकार बना पाने में कांग्रेस कैसे असफल रही इस पर फलेरियो ने अपने खत में रोशनी डाली है.

गोवा विधानसभा में बहुमत हासिल करने के लिये 21 विधायकों का समर्थन चाहिये. फलेरियो के मुताबिक कांग्रेस के पास अपने 17 विधायक थे. इसके अलावा कांग्रेस समर्थित एक निर्दलीय विधायक भी जीत गया था. 4 अन्य विधायकों का समर्थन भी कांग्रेस को मिल रहा था. इस तरह से कांग्रेस के पास सरकार बनाने के लिये पर्याप्त विधायक थे. फ्लैरियो के मुताबिक, वे राज्यपाल के पास सरकार बनाने का दावा पेश करने को तैयार थे, लेकिन ऐसा करने से उन्हें पार्टी के ही एक शख्स ने रोक दिया.

कौन था ये शख्स? फ्लैरियो ने अपने खत में उसका नाम नहीं लिया है, सिर्फ लिखा है कि एआईसीसी के गोवा डेस्क इंचार्ज ने उन्हें दावा पेश करने से रोका. इन डेस्क इंचार्ज का कहना था कि जब तक 24 विधायकों के समर्थन का भरोसा नहीं मिलता तब तक दावा नहीं पेश करना चाहिये. भले ही फ्लैरियो ने खत में उस डेस्क इंचार्ज का नाम न लिया हो, लेकिन ये सभी जानते हैं कि उस वक्त कांग्रेस में गोवा के प्रभारी दिग्विजय सिंह थे जो कि पणजी में डेरा जमाये बैठे थे.

दूसरी तरफ कांग्रेस के इस ढुलमुल रवैये को देखते हुए बीजेपी ने मौके पर चौका मारने की कोशिश की. बीजेपी की तरफ से नितिन गडकरी गोवा के प्रभारी थे. दिग्विजिय सिंह ने जहां एक तरफ अपने आप को होटल में ही समेट रखा था तो वहीं गडकरी लगातार एक जगह से दूसरी जगह घूम रहे थे और बीजेपी के लिये विधायकों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे थे. गडकरी के प्रयासों से तीन-तीन सीटें जीतने वाली महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी और गोवा फॉर्वड इस शर्त पर बीजेपी सरकार को समर्थन देने को तैयार हो गयीं कि मनोहर पर्रिकर को मुख्यमंत्री बनाया जाये. इसके बाद 3 निर्दलीय विधायकों ने भी बीजेपी को सरकार को समर्थन देने का ऐलान किया.

इस तरह से कम सीटें जीतने के बावजूद भी मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार गोवा में बन गयी और कांग्रेस देखते रह गयी. पर्रिकर ने मुख्यमंत्री बनने से पहले बतौर राज्य सभा सदस्य अपने विदाई कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह को धन्यवाद भी दिया था कि आपने ने गोवा में रहते हुए भी कुछ नहीं किया इसलिये बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिला है.

कांग्रेस के लिये साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी राह आसान नहीं नजर आ रही. एक ओर फ्लैरियो जैसे नेता पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं तो दूसरी ओर ऐसी पार्टियों की भरमार होने वाली है जो गोवा में कांग्रेस के पारंपरिक सेकुलर वोट बैंक में सेंध लगा सकती हैं. तृणमूल कांग्रेस तो चुनाव लड़ेगी ही, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी राज्य में अपना खाता खोलने के लिये पूरा जोर लगा रही है.

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