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अपनी धुनों से शब्दों को नए आयाम देने वाले एसडी आवाज से भी बिखेरते थे जादू

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वहां कौन है तेरा, मुसाफ़िर, जायेगा कहां
दम लेले घड़ी भर, ये छैयां, पायेगा कहां
वहां कौन है तेरा …

किसी भी फिल्म में संगीत का रोल बेहद अहम होता है. सिनेमा को हिट बनाने के लिए एक्टिंग के साथ-साथ जो दूसरी सबसे जरूरी चीज होती है.. वह है ‘संगीत’. सिनेमा देखने के बाद भले ही स्टोरी हमें पूरी तरह से याद न रह पाए, लेकिन अगर फिल्म का संगीत शानदार है तो वो हमारे जुबां पर चढ़ जाता है. कुछ ऐसा ही संगीत देते थे- सचिन देव बर्मन यानि एसडी बर्मन. एसडी बर्मन ने फिल्म जगत में न सिर्फ संगीत दिया बल्कि इंडस्ट्री में गायकी का वो अंदाज भी दिया जिसे लोग आज भी याद करते हैं.

संगीत को दिया नया मुकाम

ओ मां… मां…मां… मेरी दुनिया है मां तेरे आंचल में,

मेरे साजन हैं उस पार… मैं मन मार हूं इस पार…

जैसे न जाने कितने सदाबहार गाने एसडी ने ना सिर्फ गाए बल्कि कई गीतों को अपने संगीत में पिरोया भी. एसडी बर्मन ने अपने संगीत से भारतीय सिनेमा को उस मुकाम तक पहुंचाया, जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है. साल 1906 में अक्टूबर महीने के पहले दिन त्रिपुरा के राजपरिवार में जन्मे एसडी के पिता का नाम इशानचंद्र देव बर्मन था. एसडी अपने पिता की दूसरी संतान थे. सचिन देव बर्मन पान खाने के काफी शौकीन थे. इसके अलावा उन्हें फुटबॉल भी बहुत पसंद था.

रेडियो से की करियर की शुरुआत 

सितारवादन के साथ संगीत की दुनिया में कदम रखने वाले एसडी की पढ़ाई कलकत्ता विश्वविद्यालय से हुई. साल 1932 में कलकत्ता रेडियो स्टेशन पर एक गायक के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले एसडी की किस्मत ने ऐसा उछाल मारा कि फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. रेडियो स्टेशन में काम करने के दौरान मिले अनुभव ने उनके करियर में पंख लगा दिए. और इन्हीं पंखों के सहारे उन्होंने बांग्ला और फिर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की ओर उड़ान भरी.

100 से भी ज्यादा फिल्मों में संगीत देने वाले एसडी ने 13 बंगाली फिल्मों के गाने गाए जबकि हिंदी के 14 गानों को उन्होंने अपनी मधुर आवाज दी. ‘गाइड’ फिल्म के गीत- वहां कौन है तेरा.. मुसाफिर.. जायेगा कहां को जब एसडी ने संगीत में पिरोया और उसे अपनी आवाज दी तो सुनने वालों के होश उड़ गए.

कई अवॉर्ड किए अपने नाम

संगीत के कद्रदानों ने उन्हें इतना प्यार दिया कि एसडी ने एक के बाद एक कई अवॉर्ड भी अपने नाम किए. साल 1958 में ‘संगीत नाटक अकादमी’ अवार्ड जीतने वाले एसडी को संगीत में अहम योगदान देने के लिए साल 1969 में ‘पद्म श्री’ से भी सम्मानित किया गया. इतना ही नहीं, एसडी बर्मन ने दो बार नेशनल अवॉर्ड और दो फिल्म फेयर पुरस्कार भी हासिल किए.

सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए

अब तो है तुमसे जिंदगी अपनी

जैसे गीतों को संगीत से सजाने वाले एसडी का आखिरी गाना ‘मिली’ फिल्म के लिए था. इस गाने का नाम था- बड़ी सूनी… सूनी है… ज़िंदगी ये… ज़िंदगी. जब इस गाने का रिहर्सल वो किशोर कुमार के साथ कर रहे थे तभी अचानक उनकी तबियत बिगड़ी और वो कोमा में चले गए. कोमा में जाने के बाद वो फिर कभी लौट के नहीं आए और हमारा दिल उन्हें बस पुकारता रह गया.

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