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पंजाब की सियासी पिच पर राजनीति का क्लाइमेक्स जारी, कांग्रेस के ‘चुनावी मैच’ को सिद्धू ने ‘फंसाय

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Raj Ki Baat: सियासत भी कभी-कभी क्रिकेट की तरह पल-पल रंग बदलती है. कभी कुछ बड़े आसमानी शॉट्स मैच का रुख बदलते हैं तो कभी विकेट चटकाकर पासा पलट दिया जाता है. वैसे ही सियासत में तमाम विपरीत हालात में लिए गए साहसिक या लीक से अलग हटकर फैसले राजनीतिक तापमान और वातावरण को बदल देते हैं. पंजाब में पिछले कुछ समय से ऐसा ही सियासी क्रिकेट क्लाईमेक्स से पहले खेला जा रहा है. कभी नवजोत सिंह सिद्धू को मिली पार्टी की अगुवाई तो कैप्टन अमरिंदर की हुई विदाई और रुसवाई भी. अब नाइटवाचमैन बनाकर भेजे गए रणजीत सिंह चन्नी को सत्ता की मलाई मिली, दलित कार्ड का बड़ा ट्रंप कार्ड खेल कांग्रेस ने बिखरती पारी संवारने की कोशिश की, लेकिन सिद्धू के आत्मघाती शॉट ने कांग्रेस के लिए मैच फिर से फंसा दिया.

इस पूरे घटनाक्रम की खास बात है कि इसमें तीनों कालखंड यानी भूत, भविष्य और वर्तमान का मिश्रण है. अतीत की नींव पर वर्तमान के लीक से हटकर लिए फैसलों से भविष्य की लिखी जा रही इबारत का फलसफा भी है. मगर कठिन मोड़ पर लिए गए जिस फैसले से कांग्रेस को बढ़त मिलनी थी, नवजोत सिंह सिद्धू की हमेशा गेंदबाज और अंपायर के सिर के ऊपर से सिक्सर मारने की आदत ने कांग्रेस का मैच फिर फंसा दिया. पंजाब में चुनावी क्रिकेट में सिद्धू ने इस बार अंपायर से ही नहीं, बल्कि चयनकर्ता यानी पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी को भी नाराज कर लिया है. चन्नी ने सिद्धू को मना तो लिया है, लेकिन पार्टी आलाकमान का भरोसा फिलहाल अब सिद्धू पर नहीं रहा.

राज की सबसे बड़ी बात हम आपको बताएं, उससे पहले भूत, वर्तमान और भविष्य के बिंदुओं को जोड़ती इस घटनाक्रम पर नजर फिराते हैं. अतीत में जाएं तो कैप्टन अमरिंदर को अकालियों के खेमे से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कांग्रेस में लाईं थीं. राजीव गांधी से उनकी मित्रता थी. उसके बाद से पंजाब में कांग्रेस के कैप्टन लगातार अमरिंदर ही रहे. अभी जब कैप्टन के खिलाफ असंतोष बढ़ा और अलोकप्रियता बढ़ने की खबरें आईं तो पंजाब कांग्रेस के सभी विधायकों से एक-एक करके राहुल-प्रियंका ने मुलाकात की. कैप्टन के खिलाफ ही विधायकों में माहौल था.

कांग्रेस ने चुनाव से पहले कैप्टन की विदाई का मन तो बना लिया था, लेकिन विकल्प खोजना चुनौती थी. नवजोत सिंह सिद्धू को प्रियंका गांधी ने अपनी जिद पर राहुल और सोनिया की मर्जी के खिलाफ न सिर्फ लिया, बल्कि प्रदेश अध्यक्ष बनवाया. इसके पीछे प्रशांत किशोर यानी पीके का दिमाग भी था. प्रियंका की कोशिश अपनी दादी की तरह इतिहास दोहराने की थी. मगर सिद्धू को पाकिस्तान परस्त बताकर कैप्टन ने उनका रास्ता फिलहाल ब्लाक कर दिया. इन परिस्थितियों में कांग्रेस नेतृत्व ने चन्नी को दलित चेहरे के रूप में पेश कर पंजाब की सियासत का एक बड़ा कदम उठाया.

चन्नी को दलित चेहरे के रूप में सीएम बनाकर कांग्रेस ने सिद्धू का भी सीएम बनने का सपना तोड़ दिया. राज की बात ये है कि अब दलित चेहरे की जगह सिद्धू को चेहरा बनाना कांग्रेस के लिए संभव नहीं. जाहिर है कि जिस तरह का माहौल पूरे देश में है, उसमें कांग्रेस चन्नी को सीएम बनाने के इस बड़े फैसले को भुनाने की कोशिश करेगी. ऐसे में सिद्धू को समझ आ गया कि कांग्रेस अगर जीती भी तो वह सीएम तो नहीं बन सकते. लिहाजा उन्होंने चन्नी को सीएम बनाने का क्रेडिट लिया.

शुरू में तो सिद्धू हावी दिखाई पड़े, लेकिन चन्नी ने दिल्ली दरबार का चक्कर मारने के तुरंत बाद सिद्धू के अरमानों की चवन्नी बना दी. चन्नी ने जिस तरह से फैसले लेने शुरू किए, उससे सिद्धू को और धक्का लगा. कुशल या अनुशासित राजनीतिज्ञ तो सिद्धू हैं नहीं. उन्होंने इस्तीफे का कार्ड खेलकर कांग्रेस की पूरी कोशिश को धक्का पहुंचा दिया. राज की बात ये भी है कि कैंपेन कमेटी का चेयरमैन भी अब सीएम ही होगा.

खुद को पहले किंग समझ रहे सिद्धू ने किंगमेकर से ही संतोष किया. मगर चन्नी के फैसलों पर तुरंत सिद्धू ने इस्तीफा भेजकर कांग्रेस आलाकमान को सकते में डाल दिया. इस बार दिल्ली में सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी भी सख्त हो गए. राज की बात यही है कि सिद्धू ने प्रियंका का भरोसा फिलहाल तो को ही दिया है. राज की बात ये कि सिद्धू का फोन अभी तक प्रियंका ने नहीं लिया है. चन्नी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का मन बना चुकी कांग्रेस ने उन्हीं पर इसका फैसला छोड़ दिया. फिलहाल सिद्धू को चन्नी मना तो ले गए हैं, लेकिन अब ये तय है कि जीत हो या हार, अब सिद्धू अपनी महत्वाकांक्षा के शिखर से फिसलकर फिर नीचे आ गए हैं.

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