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हमारे दौर के प्रसिद्व इतिहासकार रामचंद्र गुहा की गांधी पर हाल में आयी किताब गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत आगमन और गोलमेज सम्मेलन तक, 1914 से 1931, खंड 1, कई मायनों में ऐसी किताब है जो गांधी के जीवन के अनेक पहलुओं पर नये सिरे से रोशनी डालती है. इसकी वजह ये है कि गुहा ने इस किताब को लिखने के लिये साठ से ज्यादा आर्काइब, सौ खंडो में मौजूद गांधी वांगमय के साथ ही गांधी के आखिरी दिनों में उनके सचिव रहे प्यारेलाल नायर के पास से मिली सामग्री जिसे हाल ही में सार्वजनिक किया गया है उसका भी उपयोग इस किताब के लिये किया है. किस्सागोई शैली में गांधी के जीवन के सीमित कालखंड पर लिखी गयी ये किताब प्रारंभ से आखिर तक रोचकता बनाये रहती है.
ये किताब गांधी के दक्षिण अफ्रीका से मुंबई आने की घटना से प्रारंभ होकर 1931 में गोलमेज सम्मेलन में गांधी की शिरकत तक की कथा कहती है. दक्षिण अफ्रीका में दो दशक बिताने के बाद जब गांधी मुंबई के समुद्र तट पर उतरे तो 45 साल के थे और उनके दक्षिण अफ्रीका में किये गये काम की ख्याति भारत तक पहुंच चुकी थी. यही वजह थी कि मुंबई के बंदरगाह पर उनके स्वागत के लिये हजारों लोगों की भीड थी. जिसके कारण वो अपनी गाडी तक मुश्किल से पहुंच पाये और उनकी गाडी के पीछे भी लोगों की भीड भागती रही.
मुंबई से लेकर अपने गुजरात तक आयोजित अनेक स्वागत समारोहों के बाद गांधी के सामने चुनौती थी कि भारत की तीस करोड आबादी के बीच कैसे और क्या काम शुरू किया जाये. केपटाउन से लौटते वक्त गांधी लंदन में रूके थे और अपने राजनीतिक गुरू गोपाल कृष्ण गोखले से भेंट की थी. गोखले ने उनको कुछ साल तक किसी भी सार्वजनिक आंदोलन से दूर रहने और सिर्फ यात्राएं करने की सलाह दी थी. ऐसे में गांधी ने रेल गाडी के तीसरे दर्जे के डिब्बे में यात्राएं की. यात्राओं की मुश्किलों के कई प्रभाव पैदा करने वाले रोचक किस्से किताब में हैं.
गांधी अपने दक्षिण अफ्रीका के प्रयोग भारत में नये सिरे से करना चाहते थे ऐसे में अहमदाबाद में साबरमती आश्रम कैसे खोला किसने उसको खोलने में मदद की ओर जब गांधी ने आश्रम में अछूत परिवार को चुनौती की तरह रखा तो फिर क्यों आश्रम की मदद बंद हो गयी और किसने फिर गांधी को तेरह हजार की नकद राशि देकर बंद होते आश्रम को नया जीवन दिया. गुहा ने इसका अच्छा विवरण दिया है. किताब में गांधी के अपने बेटों कस्तूरबा और आध्यात्मिक पत्नी या बौद्विक विवाह वाली सरला देवी चौधरानी के संबंधों पर विस्तार से लिखा है.
सरला देवी के साथ गांधी के संबंधों पर आमतौर पर ज्यादा जानकारी नहीं मिलती मगर गुहा ने इस बारे में गहनता से लिखा है और बताया है कि गांधी किस कदर सरला देवी के प्रभाव में थे और उनके साथ अपने आध्यात्मिक विवाह की बात सार्वजनिक करना चाहते थे. जिस पर उनको सी राजगोपालाचारी ने रोका और उनको जिम्मेदारी का अहसास कराया कि इस कदम से उनका संतत्व तो नप्ट होगा ही उनकी अगुआई में चल रहे आजादी के आंदोलन का जहाज भी डूब जायेगा. गांधी के नेहरू परिवार से संबंधों पर भी ये किताब नये तरीके से कहती है.
गुहा लिखते हैं कि गांधी की नेहरू को आगे करने की योजना के पीछे देश के युवाओं का वामपंथ को लेकर बढ रहे रूझान को रोकना भी था. आकर्षक व्यक्तित्व और ओजस्वी वक्ता जवाहरलाल नेहरू उन दिनों युवाओं में बहुत लोकप्रिय और गांधी उनको कांग्रेस से जोडकर भविप्य की कांग्रेस गढ रहे थे.
करीब साढे चार सौ पन्नों की इस किताब में गांधी के जीवन उनके अपने वालों के साथ ही उनकी ओर से चलाये आंदोलनों का विस्तृत ब्यौरा है. गांधी के आंदोलनों को विदेशी पत्रकार और प्रेस कैसे देखते थे उनके बारे में क्या राय रखते थे अमेरिकी प्रेस गांधी से डरता था तो इंग्लैड का आधा प्रेस गांधी का प्रशंसक था. किताब का आखिरी अध्याय में लंदन में हुये गोलमेज सम्मेलन में शिरकत करने गये गांधी की इंग्लैंड और यूरोप की उस दौर से जानी मानी विदेशी हस्तियों से मुलाकात का अच्छा ब्यौरा है. चार्ली चैप्लिन, जार्ज बनार्ड शा, जार्ज पंचम अलबर्ट आइंस्टाइन रोमया रोलां और मुसोलिनी की गांधी के भेंट के ब्यौरे से पता लगता है कि गांधी उस दौर की कितनी बडी अंतरराप्टीय शख्सियत थे.
गांधी वो हस्ती हैं जिन पर पिछले सालों में बहुत लिखा गया है और लगातार लिखा भी जा रहा है. लिखने की इस भीड में रामचंद्र गुहा का गांधी पर लिखा अलग स्थान रखता है उसकी वजह है उनके विस्तृत शोध गहन अध्ययन और लेखन की शैली. किताब में सुशांत झा का अनुवाद सरल और प्रवाह भरा है. जिससे लगता नहीं कि ये अंग्रेजी में लिखी किताब है. किताब का हर पन्ना कोई नयी कहानी कहता है जो गांधी के बारे में अनसुना और अनकहा था. एक बेहतर किताब के लिये पेंगुइन और हिंद पाकेट बुक्स को हिंदी के पाठकों का आभार तो बनता है.
किताब का नाम- गांधी
लेखक- रामचंद्र गुहा
कीमत- 499 रूप्ये
प्रकाशक- हिंद पाकेट बुक्स, पेंगुइन रैंडम हाउस
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