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एससी-एसटी वर्गों के लोगों के लिए जज बनने के मापदंड हो आसान : सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली ,23 जनवरी,  मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने केरल में निचली अदालतों में आरक्षित वर्ग से एक भी जज के चयन नहीं होने पर मंगलवार को चिंता जाहिर की। दरअसल केरल हाईकोर्ट को आरक्षित वर्ग से एक भी ऐसा उम्मीदवार नहीं मिला जो निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारी के लिए निर्धारित न्यूनतम अंक हासिल कर पाया हो।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्रारंभिक परीक्षा में पास होने के लिए न्यूनतम 35 फीसदी अंक और मुख्य परीक्षा में पास होने के लिए 40 फीसदी अंक निर्धारित किए गए थे। सिर्फ तीन परीक्षार्थी इंटरव्यू तक पहुंच पाए और इनमें से कोई भी न्यायिक अधिकारी के पद के योग्य नहीं पाया गया। न्यायिक अधिकारी के 45 पदों के लिए 2700 से ज्यादा परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी थी और उसमें सामान्य वर्ग के सिर्फ 31 उम्मीदवार ही चयनित हो पाए। मुख्य न्यायाधीश गोगोई और जस्टिस एलएन राव और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में हाईकोर्ट को पास होने के लिए न्यूनतम अंकों को कम कर देना चाहिए। शायद 35 फीसदी से 30 फीसदी, परिस्थिति के अनुसार। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि केरल जैसे राज्य में न्यायिक अधिकारी के पद के लिए 45 उम्मीदवार नहीं मिल सके।
सामान्य परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए जहां जिन सेवाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के अनुपात में कम था, मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ष्न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व देने के लिए हाईकोर्ट आरक्षित वर्गों के लिए पास करने के न्यूनतम अंक को कम कर सकता है। नहीं तो आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार कभी परीक्षा पास ही नहीं कर पाएंगे और उनके लिए सुरक्षित रखे गए पद हमेशा खाली रह जाएंगे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अन्य सेवाओं में भर्ती के लिए आरक्षित वर्गों के लिए न्यूनतम अंकों को कम किया जाता है, और उचित कदम उठाने के लिए हाईकोर्ट उचित कदम उठाने के लिए इस पहलू की जांच कर सकता है। पिछले साल हाईकोर्ट से कानून मंत्रालय को मिले आंकड़ों से पता चलता है कि अधीनस्थ न्यायपालिका में अनुसूचित जातियों से 14 फीसदी से कम जज और अनुसूचित जनजाति से करीब 12 फीसदी जज हैं। अनुसूचित जातियों के लिए न्यायिक अधिकारियों के पदों का प्रतिशत उनकी आबादी से कम था, जो 2011 की जनगणना के अनुसार 16.6 फीसदी है। अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या से अधिक है, जो भारत की जनसंख्या का 8.6 फीसदी है। अधीनस्थ न्यायपालिका में 28 फीसदी जज महिला न्यायिक अधिकारी हैं।

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