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अफगानिस्तान के हालात पर मॉस्को की बैठक में एक मेज पर होंगे भारत और तालिबान के प्रतिनिधि

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Moscow Format: अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद पहली बार भारत सरकार के प्रतिनिधि और तालिबानी निजाम के नुमाइंदे एक साथ अंतरराष्ट्रीय बातचीत की मेज पर नजर आएंगे. अफगानिस्तान के हालात पर रूस की तरफ से बुलाई गई बैठक में भाग लेने के लिए भारतीय अधिकारी और तालिबानी प्रतिनिधि मास्को पहुंचे हैं.

विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान- ईरान मामलों के प्रभारी संयुक्त सचिव जेपी सिंह और यूरेशिया मामलों के प्रभारी संयुक्त सचिव डॉ आदर्श स्वइका मॉस्को भेजा गया है. बैठक को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव संबोधित करेंगे. अफगानिस्तान पर मास्को फार्मेट की यह तीसरी बैठक है जिसमें भारत समेत 10 देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहेंगे. साथ ही बैठक में तालिबान प्रशासन के उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनाफी भी होंगे.

मॉस्को की इस बैठक के हाशिए पर भारत और तालिबान प्रतिनिधियों के बीच अलग से मुलाकात की संभावना भी बरकरार है। सूत्रों के अनुसार बैठक में भारतीय अधिकारी होंगे और साथ ही तालिबान के प्रतिनिधि भी. लिहाजा अलग से मुलाकात की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है. हालांकि किसी औपचारिक बातचीत का कोई प्रस्ताव नहीं है.

रूस में भारत और तालिबान प्रतिनिधियों के बीच यदि कोई सीधी बातचीत होती है तो यह अगस्त 2021 के बाद दूसरा मौका होगा जब दोनों पक्षों के बीच रूबरू संवाद होगा. इससे पहले 31 अगस्त को दोहा में तालिबान नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई की अगुवाई में एक दल भारत के राजदूत दीपक मित्तल से मिला था. वहीं सितंबर 2021 में तालिबानी प्रशासन के ऐलान के बाद पहली बार भारत और तालिबानी निजाम के प्रतिनिधि एक साथ होंगे.

ध्यान रहे कि अफगानिस्तान पर नियंत्रण और अपनी सरकार के ऐलान के बाद तालिबान अंतराष्ट्रीय मान्यता हासिल करने की कवायद कर रहे हैं. हालांकि अभी भारत समेत किसी भी मुल्नेक ने तालिबान को न तो कोई मान्यता दी है और न ही किसी तरह के औपचारिक राजनयिक संबंधों का ऐलान किया गया है.

रूसी विदेश मंत्रालय के मुताबिक मॉस्को की बैठक में अफगानिस्तान के राजनीतिक व सैन्य हालात पर चर्चा की जाएगी। साथ ही एक समावेशी सरकार के गठन पर की प्रक्रिया पर भी बात होगी. भारत समेत कई देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 के तहत तालिबान की जवाबदेही तय करने पर जोर देते आ रहे हैं. इस प्रस्ताव में अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों की रक्षा, महिलाओं के अधिकार, आतंकवाद पर रोकथाम और एक समावेशी सरकार बनाने पर जोर दिया गया है.

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