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शिवराज सिंह चौहान के लिए उपचुनावों में क्या है जीत के मायने

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मध्य प्रदेश के चार उपचुनावों में आए परिणाम ने एक बार फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी में नई ऊंचाई दे दी. एक लोकसभा और तीन विधानसभा में हुए ये चुनाव शिवराज सिंह ने अपने उम्मीदवार और फिर उनके लिए किए गए ज़बरदस्त प्रचार के दम पर जीते.

खंडवा लोकसभा में बीजेपी की बढ़त पिछले चुनाव के मुकाबले कम रही मगर एक सामान्य नए उम्मीदवार को मैदान में उतार कर बीजेपी ने सहानुभूति से चुनाव जीतने के बजाय अपने दम ख़म और संगठन के दम पर जीतने की सोची और उनको जीत मिली.

आदिवासी इलाकों में बीजेपी सरकार की नीतियों और योजनाओं की जीत है- शिवराज

पिछला चुनाव बीजेपी के प्रत्याशी ने पौने तीन लाख के अंतर से जीत था तो इस चुनाव में वो लीड घटकर अस्सी हज़ार के आसपास आ गई. विधानसभा के तीन चुनावों में शिवराज सिंह चौहान सबसे बड़ी जीत अलीराजपुर जिले की जोबट सीट पर मान रहे हैं. यहां बीजेपी ने कांग्रेस की दो बार की विधायक सुलोचना रावत को अपने पाले में लाकर उतारा और और स्थानीय कार्यकर्ताओं के शुरुआती विरोध के बाद भी चुनाव जीता.

शिवराज कहते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी लम्बे अंतर से पीछे थी मगर उस अंतर को पाट कर छह हज़ार वोटों से जीतना आसान नहीं था. वो कहते हैं की आदिवासी इलाकों में बीजेपी सरकार की नीतियों और योजनाओं की जीत है ये. मगर इसमें शिवराज के लगातार दौरों की बात भी की जाएगी उन्होंने चुनाव शुरू होने से पहले इन इलाकों में ध्यान दिया लगातार दौरे किए और विधानसभा के गावों में रात रुक कर जनता का भरोसा भी जीता. 

कांग्रेस अपनी परंपरागत सीट गवां बैठी

पृथ्वीपुर की उस सीट को भी बीजेपी ने जीता जिसे कांग्रेस पहले दिन से ही जीता मानकर चल रही थी. पूर्व विधायक बृजेंद्र सिंह राठौर का बेटा नितेंद्र राठौर भी यहां बीजेपी के आगे जीत नहीं पाया और पंद्रह हज़ार से ज़्यादा के अंतर से कांग्रेस अपनी परंपरागत सीट गवां बैठी. अब ये आरोप बीजेपी पर कांग्रेस लगाए की ये दोनों सीटों पर बीजेपी ने पार्टी के बाहर के प्रत्याशियों को लाकर जीता मगर चुनाव में जो मायने रखता है वो है जीत तो इस जीत के आगे सब बेमानी है मगर शिवराज सिंह को चोट लगी सतना जिले की रैगांव सीट पर जहां उनकी प्रत्याशी प्रतिमा बागरी हार गई. कांग्रेस ने बीजेपी से ये सीट छीन कर किसी तरह चुनावों में इज्जत बचाई. 

इस तरह पूरा चुनाव तीन एक पर सिमट कर शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता और दबदबा को बता गया की चुनाव जीतने के लिए बीजेपी के पास इतने सालों बाद भी शिवराज सिंह से बेहतर कोई नेता नहीं हैं. इसलिए उनके मुख्यमंत्री पद से बदले जाने की अटकलें लगाने वाले अब कुछ दिन तक फिर अपना विश्लेषण बंद रखेंगे. उधर कांग्रेस को फिर सोचना होगा की बीजेपी की गहरी जड़ों को किस तरह वो उखाड़ कर मध्यप्रदेश में अपनी वापसी का रास्ता बनाएं.

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