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चुनाव से पहले यूपी की सियासत में सिकंदर और चंद्रगुप्त मौर्य की एंट्री, जानें क्या है वजह

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Uttar Pradesh Chunaav: यूपी में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. लेकिन चुनाव में मुद्दे बन रहे हैं जिन्ना से लेकर सरदार पटेल तक. लेकिन अब तो जिन्ना, पटेल से होते हुए मामला सिकंदर और चंद्रगुप्त मौर्य के बीच युद्ध तक जा पहुंचा है. आइए आपको बताते हैं कि यूपी की सियासत में आखिर चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का क्या काम है.
 
हाल ही में सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक बयान दिया और कहा, ‘एक समय था जब चंद्रगुप्त मौर्य का सामना सिकंदर से हुआ. इतिहास ने अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य को महान नहीं बताया. चंद्रगुप्त मौर्य से जो हारा था उस सिकंदर को महान बताया…इतिहासकार इस पर मौन हैं’. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चंद्रगुप्त मौर्य के साथ सिकंदर की जिस लड़ाई का जिक्र कर रहे थे वो कभी हुई ही नहीं थी. चंद्रगुप्त मौर्य से सिकंदर के सेनापति सेल्युकस की जंग हुई थी, जिसमें उसे हार का सामना करना पड़ा था

क्यों पलटे इतिहास के पन्ने

यूपी का चुनाव 2022 में होगा लेकिन वोट के लिए जज्बातों की जड़ें इतिहास में इतनी गड़ी हैं कि 2300 साल पीछे तक चली गईं. रविवार को लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौर्य कुशवाहा सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे और उनके एजेंडे में था पिछड़ों का मान सम्मान. वो सम्मान जो मुख्यमंत्री के मुताबिक हजारों सालों से उनसे छीना जा रहा है. बस यही बताने के लिए मुख्यमंत्री ने इतिहास के पन्ने पलट दिए. लेकिन विपक्ष ने मुख्यमंत्री के इतिहासबोध पर पलटवार कर दिया. इस पर ओवैसी ने ट्वीट किया कि हिन्दुत्व गलत इतिहास की फैक्ट्री है. चंद्रगुप्त और सिकंदर की कभी जंग नहीं हुई. शिक्षा व्यवस्था में सुधार क्यों जरूरी है ये इसका एक अच्छा उदाहरण है.अच्छे स्कूल न होने से बाबा लोग अपने फायदे के लिए तथ्यों से खिलवाड़ कर रहे हैं. बाबा को शिक्षा की कद्र नहीं है और ये दिख रहा है.

यूपी चुनाव से पहले बीजेपी पिछड़ी जातियों के अलग-अलग समुदायों के सम्मेलन कर रही है. 2017 के चुनाव में बीजेपी को पिछड़ों का जबरदस्त समर्थन मिला था.इस बार के चुनाव में समाजवादी पार्टी भी पिछड़ा वोटों में सत्ता की चाबी ढूंढ रही है. ऐसे में इन वोटों को जोड़ना बीजेपी के लिए बड़ा चैलेंज साबित हो रहा है. इसलिए अतीत के जरिए योगी आदित्यनाथ सम्मान की बात भी कर रहे हैं और ध्रुवीकरण वाला दांव भी चल रहे हैं. इतिहास के महानायक अतीत पर गर्व करने का मौका देते हैं…लेकिन चुनावी राजनीति में इनकी एंट्री इनके काम के चलते नहीं बल्कि इनके नाम के चलते होती है. क्योंकि इनकी जाति और धर्म से सधता है वोट का गणित.

क्या है सिकंदर और चंद्रगुप्त की कहानी

2300 साल पुराना इतिहास आज यूपी के चुनाव में सरगर्मी पैदा कर रहा है. ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर को हराया था. क्या दोनों में कभी युद्ध हुआ भी था.  इतिहास के पन्ने बताते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य का सामना यूनानी आक्रमण से हुआ तो था लेकिन सिकंदर से नहीं बल्कि सिकंदर के सेनापति सेल्युकस से. सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व में हुआ था. सिकंदर ने 30 साल की उम्र में 326 ईसापूर्व में सिंधु के राजा पोरस से युद्ध किया था. इस युद्ध में पोरस की हार हुई. लेकिन पोरस को जब सिकंदर के सामने पेश किया गया तो सिकंदर ने पूछा कि बताओ पोरस, तुम्हारे साथ कैसा सलूक किया जाए.

 कहते हैं कि पोरस ने जवाब दिया कि जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करते हैं. इस जवाब से खुश होकर सिकंदर ने पोरस का राज्य तो लौटा दिया लेकिन इसकी कीमत पर पोरस को सिकंदर की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी. दो साल बाद 32 साल की उम्र में सिकंदर की मौत हो गई. सिकंदर सिंधु नदी को पार नहीं कर सका. बाद में उसके सेनापति सेल्युकस ने जब दोबारा हमला किया तो उससे चंद्रगुप्त मौर्य का मुकाबला हुआ. इस युद्ध में सेल्युकस की हार हुई. बाद में सेल्युकस ने अपनी बेटी हेलन की शादी चंद्रगुप्त मौर्य से करवाकर संधि की. 

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर को हराया था. चूंकि सेल्युकस सिकंदर का ही सेनापति था, इसलिए आम तौर पर चंद्रगुप्त और सेल्युकस के बीच की लड़ाई को चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर की लडाई के रूप में पेश कर दिया जाता है. जबकि चंद्रगुप्त और सेल्युकस के युद्ध के समय तक सिकंदर की मौत हो चुकी थी.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सवाल उठाया कि सिकंदर को महान कहा जाता है लेकिन चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक को महान नहीं कहा जाता. लेकिन ऐसा है नहीं. अशोक के साथ महान बहुत सम्मान और गर्व के साथ लगता है. राजनीति की दुनिया में इतिहास को अपनी सुविधा के लिए इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन कई बार जुबान फिसलती है तो इतिहास के अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है. 

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