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क्या यूपी में बीजेपी की नैय्या पार लगाएंगे निषाद ? जानिए निषादों की क्या है मांग

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UP Election 2022: यूपी विधानसभा चुनाव में जीत का परचम लहराने के लिए बीजेपी सियासी समीकरणों को मजबूत करने में जुटी है. बीजेपी निषाद समाज की अहमियत को समझ चुकी है लिहाजा चुनाव से पहले निषाद पार्टी के साथ हाथ मिलाया है. लेकिन चुनावी मैदान में उतरने से पहले बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपनी मांगों को लेकर दबाव बना रही है. निषाद हिंदू धर्म से संबंधित एक जाति है, जो बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाई जाती है. उत्तर प्रदेश में निषाद शब्द 17 ओबीसी समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें यूपी की पहले की समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा अनुसूचित जाति की स्थिति के लिए प्रस्तावित किया गया. हालांकि यह प्रस्ताव जो वोटबैंक की राजनीति से संबंधित है और अतीत में बनाया गया, इस पर अदालतों ने रोक लगा दी.

यूपी में निषाद समाज का वोट 18 फीसदी

2011 की जनगणना के आधार पर उत्तर प्रदेश में निषाद समाज का वोट करीब 18 फीसदी है. 165 उत्तर प्रदेश विधान सभा सीट निषाद बाहुल्य हैं जिसमें प्रत्येक विधानसभा में 90 हजार से एक लाख तक वोटर हैं और बाकि विधानसभा में 25 हजार से 30 हजार तक वोटर है. भदोही सदर में करीब 65 हजार निषाद समाज का वोट है. जनपद भदोही के विधानसभा जौनपुर में 125000 निषाद मथुआ समाज का वोट हैं. औराई विधानसभा जनपद भदोही में 85000 निषाद मथुआ समाज का वोट हैं. वही हंदीआ विधानसभा 95,000 निषाद समाज का वोट है.

नौका विहार और मछली पकड़ना मुख्य व्यवसाय

निषाद विभिन्न समुदायों को निरूपित करते हैं, जिनके पारंपरिक व्यवसाय जल-केंद्रित रहे हैं, जिनमें रेत ड्रेजिंग, नौका विहार और मछली पकड़ना शामिल है. 1930 के दशक के बाद से इन समुदायों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले विभिन्न जाति संगठनों ने इन सभी समुदायों को छत्र शब्द “निषाद” के तहत एकजुट करने के केंद्रीय उद्देश्य के साथ सम्मेलन आयोजित करना शुरू कर दिया. पहले इन समुदायों को “सबसे पिछड़ी जाति” के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन सामाजिक-आर्थिक स्थिति में वे अनुसूचित जातियों के अधिक करीब थे. 

राष्ट्रीय निषाद संघ, निषाद कल्याण सभा, महाराजा निषादराज गुह्य स्मारक समिति जैसे संगठन उत्तर प्रदेश में स्थित कुछ संगठन थे जो इन जाति समूहों को एकजुट करने के लिए कई एकता रैली (एकता सम्मेलन) की मेजबानी कर रहे थे. केवट वे थे जिन्होंने भगवान राम को अपनी नाव पार कराने में मदद की थी. निषाद पार्टी के नाम पर यह समुदाय अब एकजुट होकर अपनी पूरी ताकत दिखा रहा है. इसके साथ ही यह देखने का भी प्रयास किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में 18-20 प्रतिशत वोट देने वाला यह समुदाय इस चुनाव में क्या करेगा. 

निषादों के लिए आरक्षण और नदी का मुद्दा

एबीपी न्यूज ने ज्ञानपुर विधानसभा इलाके में पहुंचकर निषाद समाज के लोगों से जाना कि इस बार चुनाव में उनकी क्या रणनीति है?  ज्ञानपुर इकलौती सीट जहां एक निषाद विधायक है. यहां के लोगों का कहना था कि जो कोई भी निषाद की नाव पर बैठता है वो निश्चित रूप से पार हो जाएगा. लोगों ने कहना था कि हम उन लोगों को गले लगाएंगे जो हमारी समस्याओं का समाधान करेगा. लोगों ने कहा कि बीजेपी को याद रखना चाहिए कि निषादों ने राम और निषाद पार्टी ने 2017, 2014, 2019 में मदद की थी. अब अगर हमने मदद की है, तो हमारे सभी सामाजिक मुद्दों को हल करने में भी सहूलियत मिले ताकि सम्मानजनक जीवन जी सके.

निषाद समाज के लोगों ने डॉ. संजय कुमार निषाद की तारीफ की और कहा कि उनके नेतृत्व में समस्याओं का समाधान किया जा रहा है. कुछ लोगों ने कहा कि हम मछुआरों का सबसे बड़ा मुद्दा आरक्षण और नदी का है और इसी को लेकर हमलोग बीजेपी के साथ हैं. अगर बीजेपी हमारे मुद्दे का समाधान करती हैं तभी हम उनके साथ रहेंगे नहीं तो हम डॉ. संजय कुमार निषाद ने नेतृत्व में काम करेंगे. जो वो कहेंगे वही काम करेंगे. जब जागो तब सवेरा , निषाद समुदाय को ऐसा लगता है कि अब जागे हैं तो अभी सवेरा है. लेकिन नदी का बहाव किस तरफ है और कौन पार लगेगा ये समय बताएगा. फ़िलहाल बस कुछ महीनों का ही इंतज़ार है.

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