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गलवान घाटी में शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू सहित 5 सैनिकों को कल वीरता मैडल से किया जाएगा सम्मानित

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Gallantry Awards: लद्दाख में गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प में शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू को कल यानी मंगलवार को वीरता मेडल महावीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया जाएगा. महावीर चक्र भारत का दूसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार है. उनके साथ गलवान घाटी में ऑपरेशन स्नो-लैपर्ड के दौरान चीनी सेना के साथ हुई हिंसक झड़प में वीरगति को प्राप्त हुए चार अन्य सैनिकों को भी वीर चक्र दिया जाएगा. वहीं, सोमवार को हुए अलंकरण समारोह में विंग कमांडर (अब ग्रुप कैप्टन) अभिनंदन सहित अन्य वीर सैनिकों को बहादुरी मेडल से सम्मानित किया गया.

इसी साल गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर कर्नल संतोष बाबू के अलावा ऑपरेशन स्नो-लैपर्ड के लिए गलवान घाटी में अदम्य साहस और बहादुरी के लिए पांच अन्य सैनिकों को वीर चक्र दिए जाने की घोषणा की गई थी. इनमें से चार को मरणोपरांत दिया गया था. जिन चार सैनिकों को मरणोपरांत वीर चक्र दिया गया है, उनमें नायब सूबेदार नूदूराम सोरेन (16 बिहार), हवलदार के. पिलानी (81 फील्ड रेजीमेंट), नायक दीपक कुमार ( आर्मी मेडिकल कोर-16 बिहार), सिपाही गुरजेत सिंह (3 पंजाब) शामिल हैं. इसके अलावा हवलदार तेजेंद्र सिंह (3 मीडियम रेजीमेंट) को भी चीनी सैनिकों से हैंड-टू-हैंड फाइट करने, साथी-सैनिकों को दुश्मन के खिलाफ एकजुट करने और चीनी सैनिकों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए वीर चक्र दिए जाने की घोषणा की गई थी.

ऑबर्जेवेशन पोस्ट स्थापित करने की दी गई थी जिम्मेदारी

सेना के प्रशस्ति-पत्र के मुताबिक, 15 जून 2020 को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में ऑपरेशन स्नो-लैपर्ड के दौरान बिहार रेजीमेंट (16 बिहार) के कर्नल बिकुमाला संतोष बाबू को कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) के तौर पर ऑबर्जेवेशन-पोस्ट स्थापित करने की जिम्मेदारी दी गई थी. दुश्मन सैनिकों की हिंसक और आक्रामक कार्रवाई के सामने भी वह स्वंय से पहले सेवा की सच्ची भावना का उदारण देते हुए दुश्मन के भारतीय सैनिकों के पीछे धकलेने के प्रयास का विरोध करते रहे. गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वह झड़प में अपनी आखिरी सांस तक नेतृत्व करते रहे.

सेना के मुताबिक, दुश्मन के खिलाफ विशिष्ट-बहादुरी, अनुकरणीय और दक्ष नेतृत्व सहित कर्तव्य पथ पर सर्वोच्च बलिदान के लिए कर्नल संतोष बाबू को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया है. बता दें कि वीर चक्र भी युद्ध के समय या फिर अशांति काल में दुश्मन के खिलाफ अनुकरणीय साहस के लिए दिया जाता है. महावीर चक्र और वीर च्रक भी परमवीर चक्र की तरह शांति काल में नहीं दिए जाते हैं.

मई 2020 में ऑपरेशन स्नो लेपर्ड शुरू किया था

भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीनी सेना की आक्रामकता के खिलाफ पिछले साल मई 2020 में ऑपरेशन स्नो लेपर्ड शुरू किया था. उसी दौरान गलवान घाटी में हुई हिंसा के दौरान भारतीय सेना की बिहार रेजीमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू सहित 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे. चीनी सेना को भी इस संघर्ष में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. हालांकि, चीन ने कभी हताहत हुए सैनिकों के आंकड़े का खुलासा नहीं किया, लेकिन चीन ने इसी साल अपने पांच सैनिकों को गलवान घाटी की हिंसा के लिए वीरता मेडल से सम्मानित किया था. इनमें से चार को मरणोपरांत सम्मानित किया गया था. 

सेना के प्रशस्ति-पत्र के मुताबिक, नायक दीपक सिंह हालांकि आर्मी मेडिकल कोर (एएमसी) से ताल्लुक रखते थे और ऑपरेशन स्नो-लैपर्ड के दौरान 16 बिहार रेजीमेंट के साथ तैनात थे. 15 जून की रात को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से हुई झड़प में दीपक सिंह भी घायल हुए थे, लेकिन घायल होने के बावजूद उन्होनें करीब 30 सैनिकों का उपचार किया और फिर देश के लिए सर्वोच्च-बलिदान दे दिया. उनके इस अनुकरणीय साहस और कार्य के लिए वीर चक्र से नवाजा गया है.

आमने-सामने की लड़ाई में भारतीय सैनिक भारी पड़ गए

सेना ने जो वीर सैनिकों के लिए प्रशस्ति-पत्र जारी किया है, उसमें साफ तौर से लिखा है कि चीनी सैनिकों ने घातक और तेजधार हथियारों से हमला किया था, लेकिन आमने-सामने की लड़ाई में भारतीय सैनिक उन पर भारी पड़ गए. नायब सूबेदार नूडूराम सोरेन, हवलदार के. पिलानी और हवलदार तेजेंद्र सिंह के नेतृत्व और बहादुरी के चलते ही भारतीय सैनिकों ने अपनी जमीन नहीं छोड़ी (जहां ऑबर्जेबेशन पोस्ट बना रहे थे).

वीर चक्र से नवाजे गए सिपाही गुरतेज सिंह के बारे में लिखा गया है कि दुश्मन सेना की सैनिकों की तादाद ज्यादा होने और घातक हथियारों से लैस होने के बावजूद उन्होनें अदम्य वीरता, जबरदस्त साहस और असाधारण युद्ध-कौशल के जरिए हैंड टू हैंड कॉम्बेट यानी हाथ की लड़ाई में दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए. बता दें कि गुरतेज सिंह ने कई चीनी सैनिकों की गर्दन को अपने हाथ से तोड़ डाला था. घायल होने के बावजूद उन्होनें अपने साथी सैनिकों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया, जिससे कई सैनिकों की जान बची, लेकिन खुद उन्होनें देश के लिए जान न्योछावर कर दी.

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