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दिल्ली की सीमाओं पर धरना खत्म करने को लेकर बंटे किसान संगठन, जानें किसकी क्या राय है?

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Farmers Protest News: कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब साल भर से दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसानों का धरना खत्म करने को लेकर संयुक्त किसान मोर्चे में दो राय उभर कर सामने आई है. पंजाब के कई किसान संगठन आंदोलन की जीत के बाद धरना खत्म करने के पक्ष में हैं, वहीं कई किसान संगठन एमएसपी कानून और मुकदमों की वापसी समेत अन्य मांगों को लेकर धरना जारी रखना चाहते हैं. वापसी के पक्ष वाले आम सहमति बनाने की कवायद कर रहे हैं. रणनीतियों को अंतिम रूप देने के लिए 1 दिसंबर और 4 दिसम्बर को किसान संगठनों की अहम बैठक होनी है.

पंजाब के 32 संगठनों की कल हुई बैठक में आम सहमति बनी कि संसद से कृषि कानूनों की वापसी के साथ ही आंदोलन की जीत हो चुकी है. एमएसपी कानून बनने की प्रक्रिया में समय लगेगा इसलिए सरकार को एक समयसीमा देकर वापस लौटना चाहिए. सूत्रों के मुताबिक 32 में से 20-22 करीब आधे संगठन वापसी चाहते हैं, जबकि करीब 8-10 संगठन बाकी मांगें मनवाने तक रुकने के पक्ष में हैं. हालांकि पंजाब के जोगिंदर सिंह उगराहां और सरवन सिंह पंढेर हरियाणा के गुरनाम चढूनी जैसे बड़े किसान नेता धरना जारी रखने के पक्ष में हैं. इनके संगठन के किसान बड़ी संख्या में सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर बैठे हैं.

सूत्रों की मानें तो घर वापसी के लिए दबाव बनाने वाले पंजाब के संगठनों में ज्यादा संख्या उनकी है जो आगामी विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाना चाहते हैं.

घर वापसी चाहने वाले संगठनों लगता है कि दिल्ली की सीमाओं पर साल भर से जारी धरने को खत्म करने का यह सही समय है. कीर्ति किसान यूनियन के नेता राजेन्द्र सिंह के मुताबिक, “आंदोलन जारी रहेगा, हम चाहते हैं कि आंदोलन का स्वरूप बदला जाए. एमएसपी पर देशव्यापी आंदोलन की जरूरत है.” लेकिन भारतीय किसान यूनियन पंजाब के अध्यक्ष हरेंद्र सिंह लक्खोवाल ने एबीपी न्यूज से कहा कि एमएसपी कानून पर कमिटी के एलान और मुकदमों की वापसी के बिना हम धरना खत्म नहीं करेंगे.

अब घर वापसी के इस प्रस्ताव पर 1 दिसम्बर को उन 40 नेताओं की बैठक होगी जो सरकार के साथ वार्ता में शामिल थे. इसके बाद 4 दिसम्बर को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक होगी. अंतिम फैसला संयुक्त किसान मोर्चा को करना है. चूंकि आंदोलन में सबसे ज्यादा भागीदारी पंजाब की है ऐसे में माना जा रहा है कि दिल्ली की सीमाओं पर जारी धरना जल्द खत्म हो सकता है. लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा की कोर कमिटी के 9 नेताओं में से 8 तत्काल वापसी के खिलाफ हैं.

साफ तौर पर पेंच फंसा हुआ है और नजरें सरकार के फैसले पर हैं. कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसानों की घर वापसी से पहले संयुक्त किसान मोर्चा की दो बड़ी मांगें हैं- एमपीसी पर कानून और मुकदमों की वापसी.

एमएसपी कानून के लिए कमिटी गठित करने का एलान खुद प्रधानमंत्री कर चुके हैं. पंजाब के संगठनों का मानना है कि कानून बनाने की प्रक्रिया में समय लगता है. सरकार को एक समय सीमा देकर घर वापस लौटना चाहिए. अंदरूनी बात यह भी है कि पंजाब में ज्यादातर किसान पहले से ही एमएसपी का लाभ हासिल कर रहे हैं. लेकिन राकेश टिकैत जैसे किसान नेताओं की राय है कि एमएसपी कानून बनने तक वापसी ठीक नहीं है. ज्यादातर संगठनों की राय है कि प्रधानमंत्री के एलान के मुताबिक एमएसपी कानून को लेकर कमिटी गठित होने और उसमें किसान संगठनों की भागीदारी तय होने तक दिल्ली मोर्चे पर जमे रहना चाहिए.

संयुक्त किसान मोर्चा आंदोलन के दौरान मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा और मुकदमों की वापसी की मांग भी कर रहा है. पंजाब के जिन किसानों की मौत हुई उनके परिजनों के लिए पंजाब सरकार 5 लाख के मुआवजे और एक सदस्य को सरकारी नौकरी का एलान कर चुकी है, लेकिन पंजाब के बाहर जैसे हरियाणा के जिन किसानों की मौत हुई उनके परिजनों को मुआवजा नहीं मिला है. मुआवजे की तरह ही किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर दर्ज हुए मुकदमे पंजाब सरकार वापस ले चुकी है, लेकिन बाकी राज्यों में ऐसा नहीं हुआ है. इसके अलावा दिल्ली में भी किसान नेताओं पर मामले दर्ज हैं खास तौर पर लालकिला हिंसा मामले में. योगेंद्र यादव ने कहा कि कोई आंदोलन मुकदमों की वापसी से पहले खत्म नहीं हो सकता.

भले ही धरना खत्म करने को लेकर किसान संगठनों के बीच दो राय है लेकिन किसान नेता इसे फूट नहीं मान रहे. किसान सभा पंजाब के महासचिव मेजर सिंह पुन्नावाल के मुताबिक शुरू से ही अलग-अलग संगठनों की अलग-अलग राय रही है. लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा का फैसला सभी मानते हैं और आगे भी मानेंगे. देखना होगा कि 4 दिसम्बर को संयुक्त किसान मोर्चा क्या एलान करता है.

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