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विदेशी ऑर्डर मिलने से जिंदा हुई 700 साल पुरानी कश्मीर की ये आर्ट, कोरोना के चलते तबाह हो गया

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Jammu Kashmir News: कोविड महामारी के चलते प्रभावित हुई कश्मीर की एक आर्ट एक बार फिर से जिंदा हो गई है. क्रिसमस से पहले कुछ विदेशी ऑर्डर मिलने के बाद 700 साल पुरानी पेपरमैशी आर्ट को नया जीवन मिला है. यूरोप और अमेरिका से आये नए आर्डर के चलते क्रिसमस के लिए बनाये जाने वाले खास प्रकार के आइटम की मांग बढ़ गयी है. श्रीनगर के पुराने शहर के रहने वाले 60 वर्षीय नासिर अहमद खान के अनुसार, जहां पिछले कुछ महीनो में अंतरराष्ट्रीय बाजार के ऑर्डर के लिए मिनिएचर सांता क्लॉस, सितारे, गेंद और अन्य क्रिसमस वस्तुओं के लाखों आइटम भेजे जा चुके हैं. अब स्थानीय बाजार के लिए सामान तैयार किया जा रहा है. 

पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है यह कागज

खान ने आगे बताया, “क्रिसमस के चलते सजावटी वस्तुओं को पहले ही अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में भेज दिया गया है, जहां ये आइटम लोग बहुत प्यार से खरीदते हैं और इनका इस्तेमाल क्रिसमस ट्री को सजाने में होता है. हमारे सामान की मांग अब इसलिए ज्यादा है कि यह “कागज़” से बनता है और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचता”. उन्होंने कहा कि पेपरमैशी का सामान पेपर पल्प से बनाया जाता है. पर्यावरण के अनुकूल होने के कारण उन्हें तैयार खरीदार मिल जाते हैं और उत्सव से ठीक पहले, क्रिसमस बल्ब, घंटियां, छोटे सांता क्लॉस, बारहसिंगा, हैंगिंग स्टार्स और चांद के शोपीस ज्यादा बिकते हैं.  

कश्मीर में केवल 0.28 प्रतिशत ही ईसाई आबादी है. इसलिए क्रिसमस पर पेपर से बने ज्यादातर सामान अंतराष्ट्रीय बाजारी में बेचे जाते हैं, क्योंकि इनका कोई स्थानीय खरीदार नहीं होता है. सबसे ज्यादा मांग अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और अन्य देशों से आती है. क्रिसमस के ऑर्डर दो साल बाद आए हैं, क्योंकि पहले धारा 370 को हटाए जाने के कारण खराब हालात और उसके बाद कोरोना महामारी ने कारोबार को चौपट कर दिया था.

धारा 370 और कोविड-19 ने निर्यात को प्रभावित किया

नए ऑर्डर आने के बावजूद भी काम वैसा नहीं है, जैसा 2019 से पहले हुआ करता था. कारोबार में करीब 70 फीसदी की कमी आई है. द कश्मीर चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अनुसार पिछले तीन वर्षों सालों से निर्यात और हस्तशिल्प व्यवसाय बुरे दौर से गुजर रहा है. इस वर्ष भी सिर्फ 600 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है, जबकि पहले यह 1700 करोड़ रुपये का हुआ करता था. इसी कारण पिछले कुछ सालो में बड़ी संख्या में इस कारोबार से जुड़े लोग अपना काम छोड़ गए हैं. इससे पहले कश्मीर में हजारों परिवार पेपरमैशी के प्रोडक्ट्स से अपनी आजीविका चलाते थे. विदेशी ऑर्डर आने से इस कला से जुड़े लोगों में व्यवसाय के फिर से चलने की उम्मीद जगी है.

बिना सरकारी मदद के इस कला से जुड़े लोगों का इस आर्ट को जिंदा रख पाना मुमकिन नहीं है. खान ने कहा कि “कारीगर सुबह 9 बजे से रात 10 बजे तक काम करते हैं, लेकिन वह जो पैसा कमाते हैं, वह काम के लंबे घंटों के मुताबिक नहीं होता. क्रिसमस से थोड़ा पहले कारोबार बढ़ने के बावजूद, कारीगर हर रोज 200-250 रुपये ही कमाते हैं”.

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