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चुनावी यात्रा में जानें मेरठ का हाल, सियासत से लेकर उद्योग और एक्सप्रेसवे को लेकर जनता के विचार

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UP Election 2022 Meerut Chunav Yatra: एक ऐसा जिला जो दिल्ली से सटा तो है, लेकिन हमेशा उसकी दूरी का अहसास उससे करवाया जाता रहा है. हालांकि इस बार दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे ने दूरी को कम कर दिया है. लेकिन क्या इससे लोगों की ज़िंदगी पर कोई असर पड़ा है? मेरठ की चुनावी यात्रा नें इस सवाल का जवाब भी ढूंढने की कोशिश हुई साथ ही ये भी पूछा गया कि यहां के लोग क्या सोच रहे हैं और किसे जिता रहे हैं.

दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे को लेकर क्या बोले लोग?

दिल्ली मेरठ एक्सप्रेसवे ने दोनों शहरों के बीच की दूरी को कम कर दिया है. पहले आमतौर पर 2 से ढाई घंटे का समय लगता था पर अब मात्र एक घंटे में पूरा हो जाता है और कभी कभी तो उससे कम समय लगता है. बारिश, धूप, हो या आंधी-तूफान, ये रास्ता एकदम सही चलता है. यानि की एक्सप्रेसवे का सबसे ज़्यादा फायदा अगर किसी को हो रहा है तो वो मेरठ के लोगों को, जिन्हें पहले घंटों जाम में फंसना पड़ता था, लेकिन अब यह तस्वीर बदल गई है.

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी यह बखूबी जानती है कि अपनी डबल इंजन की सरकार की बात करना कितना जरूरी है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिल्ली से मेरठ आए थे और उसकी जो तस्वीरें आईं वो सबने देखीं. बात सिर्फ एक रास्ते और एक्सप्रेसवे की नहीं है, बल्कि बात उस ज़िंदगी में तब्दीली की है, जो यहां के लोग अब महसूस भी कर रहे हैं.

उमेश जो कि ड्राइवर हैं और इस एक्सप्रेसवे पर गाड़ी भी चलाते हैं, उन्होंने कहा, “पहले रास्ते में बहुत गड्ढे थे, बहुत जाम लगता था. अब तो पहले से बहुत अच्छा हो गया है. अब कोई चिंता नहीं रहती है. अब माइलेज भी अच्छा आता है. बस थोड़ा स्पीड नियंत्रण में चलना होता हैं. बहुत अच्छे हो गए हैं रास्ते. गड्ढे भी नहीं हैं तो अब हम बेफिक्र हो कर चलाते हैं गाड़ी. पहले यहां जाम बहुत लगता था, जिसके कारण बहुत समय लग जाता था.”

दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे या नेशनल एक्सप्रेसवे भारत का सबसे चौड़ा 96 किमी लंबा नियंत्रित एक्सप्रेसवे है. जो भारत में गाजियाबाद में डासना के ज़रिए दिल्ली को मेरठ से जोड़ता है. राष्ट्रीय राजमार्ग 9 (NH-9) के डासना तक के 8 लेन पुराने खंड को 14 लेन (भारत में सबसे चौड़ा एक्सप्रेसवे) तक चौड़ा किया गया है. एक्सप्रेसवे का चौथा चरण डासना से मेरठ तक एक नए संरेखण पर बनाया गया है. मेरठ बाईपास को जोड़ने वाला छह लेन वाला खंड. निजामुद्दीन ब्रिज और डासना के बीच 28 किमी की दूरी एनसीआर के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में से एक है.

हस्तिनापुर से कांग्रेस उम्मीदवार क्या बोलीं?

हस्तिनापुर का इतिहास बड़ा है. इस बार वहां के इतिहास में अर्चना गौतम का नाम भी जुड़ गया है. वह कांग्रेस की उम्मीदवार हैं, लेकिन काम की बजाय अपने पिछले काम की पहचान के साथ आगे बढ़ रही हैं. उन्हें बिकिनी गर्ल के नाम से जाना जाता है. उनकी तस्वीरें वायरल हो जाती हैं. कांग्रेस की उम्मीदवार ने अपने पिछले दिनों के बारे में बताते हुए कहा कि लोग मुझे गली देते थे.

उन्होंने कहा, “शुरुआत में सोशल मीडिया पर लोग मुझे गालियां देते थे और बहुत सी चीजें हुई हैं और इसके अलावा इसका गलत इस्तेमाल किया गया है, लेकिन यहां के लोग और मैं इसके खिलाफ कार्रवाई भी कर सकते थे. मैं इसे आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब कोई लड़की कुछ कहती है तो दुनिया उसे समझ नहीं पाती है. उन्हें लगता है कि महिला इसे प्रचार के लिए कर रही है. अगर आप एक व्यक्ति को बंद कर देंगे तो 70 से अधिक लोग बातें कहने के लिए आगे आएंगे. इसलिए काम करना और चीजों को साबित करना बेहतर है.”

अर्चना गौतम ने बताया कि, “जब मैं राजनीति में आई तो मुझे नहीं पता था कि यह बात इतना बड़ा मुद्दा बन जाएगी. अब जब यह मुद्दा बनाया गया है, मैं समाज की वर्तमान विचार प्रक्रिया को देख रही हूं. अगर मेरे साथ ऐसा हो रहा है तो दूसरी महिलाओं के साथ भी ऐसा हो सकता है. मैं देख रही हूं कि इस दौरान भारत बहुत आगे बढ़ गया है. भारतीय आगे बढ़ गए हैं तो विचार प्रक्रिया भी आगे क्यों नहीं बढ़ रही है?” बीते शुक्रवार दोपहर मेरठ की हस्तिनापुर (एससी) सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर अर्चना गौतम ने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया. 

अर्चना ने कहा, “मैं कांग्रेस का समर्थन कर रही हूं क्योंकि जिस तरह से प्रियंका दीदी महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम कर रही हैं, उन्होंने जो मुद्दे उठाए हैं. वह 40% टिकट दे रही हैं महिलाओं को इसलिए मुझे लगता है कि वह युवाओं और महिलाओं के बारे में सोच रही हैं. उन्हें आगे बढ़ने में मदद कर रही हैं क्योंकि ऐसा किसी और पार्टी ने नहीं किया है. मेरे कार्यकर्ता मेरे समर्थन में हैं. कुछ लोग हैं..देखिए मुझे लगता है कि टिकट सभी चाहते हैं और कुछ लोगों को टिकट नहीं मिलता इसलिए वे भी दुखी थे, लेकिन लोग अब मेरे साथ हैं और वे कह रहे हैं कि अर्चना ठीक है तुम लड़ो और हम तुम्हारे साथ हैं.”

मैं बिकिनी गर्ल नहीं थी मुझे बनाया गया- अर्चना

अर्चना गौतम ने कहा, “मैं बिकिनी गर्ल नहीं थी, उन्होंने मुझे बना दिया और नाम मेरे साथ जुड़ गया, जो गलत है क्योंकि आप किसी लड़की के चरित्र को इस नाम से नहीं जोड़ सकते. खासकर वह नाम जो आपने दिया है. यह गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए था. मैं 2018 में मिस बिकिनी इंडिया बनी और 2014 में मैं मिस यूपी बनी. 2018 मैं मिस कॉस्मो वर्ल्ड थी, इसलिए मैंने कुछ अतिरिक्त नहीं किया. दूसरों ने जो किया है वही मैंने किया है. तो उस चीज़ ने मुझे बिकिनी गर्ल का टैग दिया है जो गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए था. मेरा नाम अर्चना गौतम है,  मुझे उसी नाम से बुलाओ.”

चुनावी मैदान में अर्चना का सामना मौजूदा बीजेपी विधायक दिनेश खटीक से है, जिन्हें तीन महीने पहले योगी आदित्यनाथ सरकार में राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया है. सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार पूर्व विधायक योगेश वर्मा और बसपा के संजीव जाटव हैं.

मेरठ के कैंची मार्केट की हालत क्या है?

मेरठ के कैंची बाज़ार की हालत खस्ता है. कैंची बनाने का काम करने वाले तनवीर सैफ़ी ने बताया, “जब से चाइना का माल आया है, उसमें लगभग 50% हमारा कारोबार ख़त्म हो गया है. छोटे उद्योग तो बिल्कुल ही ख़त्म ही गए हैं. बहुत बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और इसमें लगभग पचास हज़ार लोग लगे हुए हैं. हमारा ये कारोबार 300 साल पुराना. 300 सालों से हम गुणवत्ता को बनाए हुए हैं. गुणवत्ता के ऊपर जी रहे हैं. बाक़ी जो चाइना ने बाज़ार में माल डाला है, उससे तो हम ख़त्म हो जाते अगर हम विविधता और गुणवत्ता नहीं बनाते.”

मेरठ की कैंची, इसकी धार और इसकी रफ़्तार के कसीदे पूरे दुनिया में पढ़े जाते हैं, लेकिन अब मेरठ की इस कैंची को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है. ऐसी मान्यता रही है कि 300 साल पहले यहीं पर इसका आविष्कार किया गया, कपड़े काटने के लिए इस्तेमाल हुआ और उसके बाद लोहे और पीतल की कैंची ने अपना वर्चस्व पूरे विश्व में बनाया. एक कारख़ाने में काम तो लगातार जारी है, लेकिन पहले से अब स्तिथि में परिवर्तन आ गया है. एक और कारीगर ने बताया कि चुनौती तो चाइना की कैंची की वजह से है और दूसरा जीएसटी से. GST 18% है. इस वजह से कारोबार नीचे है बिल्कुल. 

पिछले कुछ दशकों में ये परिवर्तन तो आया है, लेकिन बिक्री पर भी उतना ही असर पड़ा है. क्योंकि एक दिन में मेरठ में दस हज़ार कैंचियां बन जाती हैं और इस दस हज़ार कैंची की बिक्री भी होती है, लेकिन चीन ने इसमें बाज़ी मार ली है. वास्तव में मेरठ की कैंची की यही ख्याति भारत में कई दशकों से है. हिंदी पल्प फिक्शन प्रकाशनों और क्रिकेट बैट निर्माण इकाइयों के साथ, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजधानी से 100 किलोमीटर दूर स्थित इस हलचल भरे शहर में कैंची बनाना शायद सबसे पुराने शिल्पों में से एक है. कैंची की कीमतों के बारे में यहां के लोगो का कहना हैं कि बीसियों तरह की कैंची है इसके अंदर. इसके लोगों ने बताया कि यहां 150 रुपये से लेकर 700 रुपये तक में कैंची मिलती है.

कैंची बनाना एक विरासत का हिस्सा है. सदियों से मेरठ की कैंची, या तो ऑर्डर पर बनाई जाती है या खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों को आपूर्ति की जाती है. हालांकि, पिछले कुछ सालों से कैंची बाजार को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ रहा है. इसमें लगभग 600 इकाइयां हैं, जिनमें लगभग 70,000 शिल्पकार कार्यरत हैं, जो खराब परिस्थितियों में काम करते हैं. इन मिनी-फैक्ट्रियों में बार-बार बिजली कटौती होती है और इनमें कोई वेंटिलेशन नहीं होता है. यहां कई शिल्पकार दैनिक आधार पर कटौती और चोटों का सामना करते हैं. ग्राइंडर मशीनों पर काम करने वाले कुछ लोग लोहे के धूल के कणों में सांस लेते हैं और सांस की समस्या से पीड़ित होते हैं.

मेरठ की कैंची को 2013 में डब्ल्यूटीओ जीआई (भौगोलिक संकेतक) टैग से सम्मानित किया गया था. हालांकि, शिल्पकारों का कहना है कि इसने मांग बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया है. न ही कोई सरकारी सहायता मिली है. शिल्पकार भी सूक्ष्म/लघु-उद्यमों के रूप में कोई ऋण लेने में असमर्थ रहे हैं. इन मुद्दों ने सामूहिक रूप से दो विडंबनापूर्ण स्थितियों को जन्म दिया है. एक अंधकारमय भविष्य के डर से जो शिल्पकार कार्यशालाओं के मालिक हैं वे नहीं चाहते कि युवा पीढ़ी इस व्यवसाय को अपनाए.

मेरठ में एक ही चौराहे पर मिलती हैं 100 से भी ज़्यादा तरह की तिल की मिठाइयां

मेरठ के निवासी अपने मीठे का स्वाद लेने के लिए शहर के प्रसिद्ध ‘रेवड़ी गजक’ खाना पसंद करते हैं. इतना ही नहीं, शहर के दुकानदारों का दावा है कि ये गजक दुनिया भर में सबसे पसंदीदा है. मेरठ के दुकानदारों का कहना है, “यहां सर्दियों का मौसम होता है तो गुड़ और तिल में गर्माहट होती है और यह सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. हम 35-40 तरह की मिठाइयां बनाते हैं. हम ‘गोल गज’, ‘काजू रोल’, ‘मावे रोल’, ‘तिल का लड्डू’, ‘गुड़ का लड्डू’ बनाते हैं. बच्चों के बीच इसकी काफी डिमांड है. उन्हें ये टॉफियां और मिठाइयां बहुत पसंद हैं.”

अगर आप मेरठ में हैं और ‘तिल रेवड़ी’, ‘तिल के लड्डू’ और तिल की मिठाई नहीं खाई है तो सर्दियों का मजा अधूरा रह जाता है. सर्दियों में ऐसा माना जाता है कि तिल खाने से ताकत मिलती है. मेरठ में बुरहानी गेट के आसपास 100 से ज्यादा दुकानें हैं और सभी तिल की दुकानें हैं. एक अन्य दुकानदार ने बताया, “बुजुर्ग लोगों के लिए भी फायदेमंद होता है और आप इसे खा सकते हैं. यह बहुत कोमल है. बिना दांत वाले लोग भी इसे खा सकेंगे.”

शहर की दुकानें नवंबर में मिठाई तैयार करना शुरू कर देती हैं और मार्च तक उनका कारोबार चलता रहता है. स्थानीय बाजारों में गजक की 20 से अधिक किस्में उपलब्ध हैं. चॉकलेट, शहद से लेकर अनानास तक, इस पारंपरिक मिठाई के लिए मेरठ का अपना स्वाद है. दूर दूर से लोग आते हैं यहां कि तिल की मिठाइयों का ज़ायका लेने. बॉलीवुड सितारों में शहर की रेवड़ी गजक भी हिट है. निवासियों की मानें तो बॉलीवुड सितारे रेवड़ी गजक के स्वाद की कसम खाते हैं.

दिल्ली से मेरठ को जोड़ेगी मेट्रो

मेरठ और दिल्ली के बीच की दूरी को कम करने के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार हर संभव प्रयास तो कर रही है, लेकिन उसमें सबसे बड़ी जो जीत हासिल की है, मेरठ ने वो है यह सिस्टम यानि कि भारत की पहली रीजनल रेल बन रही है. जिसे इंटर सिटी, इंटर स्टेट दोनों कहा जा सकता है. 30,000 करोड़ की लागत से बन रही इस रेल की एक खासियत ये है कि इस बार गाड़ी चलेगी 180 प्रति किलोमीटर की रफ़्तार से और वहां होंगे करीब 24 से ज़्यादा रेलवे स्टेशन. जिसके ज़रिये लोगों को एक साथ यानी एक घंटे से भी कम समय लगेगा इस रीजनल ट्रांसमिट रेलवे के ज़रिये.

दिल्ली-मेरठ क्षेत्रीय रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस) एक 82.15 किमी लंबा, निर्माणाधीन अर्ध-हाई स्पीड रेल कॉरिडोर है, जो दिल्ली, गाजियाबाद और मेरठ को जोड़ता है. यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (NCRTC) की क्षेत्रीय रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (RRTS) परियोजना के पहले चरण के तहत नियोजित तीन रैपिड-रेल कॉरिडोर में से एक है.

180 किमी/घंटा की अधिकतम गति के साथ दिल्ली और मेरठ के बीच की दूरी 60 मिनट से भी कम समय में तय की जाएगी. इस परियोजना की लागत 30,274 करोड़ रुपये होगी और इसमें दुहाई और मोदीपुरम में दो डिपो सहित 24 स्टेशन होंगे. 8 मार्च 2019 को भारत के प्रधानमंत्री ने इस कॉरिडोर की आधारशिला रखी थी. एनसीआरटीसी ने मार्च 2023 तक इसे संचालित करने के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को पूरा करने के लिए साहिबाबाद और दुहाई के बीच 17 किमी लंबे प्राथमिकता खंड पर सिविल निर्माण कार्य शुरू किया है. शिलान्यास समारोह के 3 महीने के भीतर नागरिक निर्माण कार्य शुरू किया गया था. संपूर्ण 82 किमी लंबा दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ आरआरटीएस कॉरिडोर हालांकि 2025 तक चालू हो जाएगा.

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