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24 साल की उम्र में पहली हत्या, पढ़ें- मुख्तार अंसारी ने कैसे रखा अपराध में कदम

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UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव हो और कुख्यात अपराधी मुख्तार अंसारी की चर्चा ना हो, ऐसा कैसे हो सकता है. वो एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरा है और प्रचार का जिम्मा उसके समर्थक संभाल रहे हैं. मुख्तार 2005 से जेल में है और पिछले तीन विधानसभा चुनाव वह सलाखों के पीछे रहते हुए लड़ा है. मुख्तार की जिंदगी 2005 मऊ दंगे के बाद से ही जेल में कट रही है.

मुख्तार पहली बार सुर्खियों में 1987 में आया, जब उसने साइकिल स्टैंड के विवाद को लेकर सच्चिदानंद राय की हत्या कर दी थी. सच्चिदानंद राय वो शख्स था जिसने मुख्तार अंसारी को आश्रय दिया था. हालांकि बाद में मुख्तार इस मामले में बरी हो गया था.

क्रिकेट खेलने और गुलेल चलाने का था शौक

3 जून 1963 को जन्मा मुख्तार अंसारी क्रिकेट खेलने का शौकीन था. वह इंटरस्टेट खेला करता था. कॉलेज के जमाने में ही वह साधु सिंह के गैंग में शामिल हो गया. क्रिकेट के साथ-साथ वह गुलेल चलाने में भी माहिर था. मुख्तार ने अपराध की दुनिया में कदम 80 के दशक में रखा. 

तब देश तेजी से बदल रहा था. नई-नई फैक्ट्रियां लगाई जा रही थी. यूपी सरकार पूर्वांचल के विकास को लेकर कई प्रोजेक्ट्स मंजूर किए. इसी प्रोजेक्ट्स के ठेका लेने को लेकर पूर्वांचल की धरती पर खून बहने लगे. मुख्तार अंसारी इसी की उपज था.  मुख्तार मखुनी सिंह के गैंग से मिल गया. साल 1980 में इस गैंग की साहिब सिंह के गैंग से गाजीपुर के सैदपुर में एक प्लॉट को लेकर बवाल हुआ. साहिब सिंह के गैंग में वाराणसी का बृजेश सिंह शामिल था. बृजेश सिंह का मुख्तार अंसारी से कट्टर दुश्मनी थी. साल 1990 में ब्रजेश सिंह ने अपना गैंग बना लिया.

गाजीपुर के सभी ठेके उसने अपने कंट्रोल में ले लिए. कोयला, रेलवे कंस्ट्रक्शन, माइनिंग, शराब और पब्लिक वर्क जैसे 100 करोड़ के कॉन्ट्रैक्ट के काम को लेकर अंसारी और ब्रजेश सिंह गैंग के बीच कई बार खूनी खेल हुआ. 1987 में सच्चिदानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार पूर्वांचल का बड़ा नाम बन चुका था. साल 1988 में तिवारीपुर के राम नारायण राय की हत्या में भी मुख्तार नामजद अभियुक्त बनाया गया. हिरासत में बंद कुख्यात सुभाष सिंह की हत्या में उसका नाम आया. उसके बाद अपराध जगत में वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर और मऊ में मुख्तार का राज चलने लगा.

यहां से मुख्तार अंसारी बना खौफ का दूसरा नाम

मुख्तार को अब तक उत्तर प्रदेश और उसके आसपास के लोग ही जानते थे. लेकिन 2005 में सलाखों के पीछे रहते हुए उसने जो कृत्य किया उसके बाद उसकी पहचान देशभर में हो गई. बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में उसका नाम आया था. यूपी की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट पर मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफजाल अंसारी का प्रभाव माना जाता था. 1985 से लगातार ये सीट अंसारी परिवार के कब्जे में रही. लेकिन 2002 में बीजेपी के उम्मीदवार कृष्णानंद राय ने अफजाल अंसारी को हराकर उस सीट पर जीत हासिल की थी. तभी से कृष्णानंद राय दबंग विधायक मुख्तार अंसारी के निशाने पर आ गए थे.

29 नवंबर 2005 का दिन था. बीजेपी विधायक कृष्णनंद राय गाजीपुर के भांवरकोल ब्लॉक के सियाड़ी गांव में आयोजित एक क्रिकेट प्रतियोगिता का उद्घाटन कर घर वापस लौट रहे थे. तभी बसनिया चट्टी के पास घात लगाए बैठे हमलावरों ने कृष्णानंद राय के काफिले पर एके-47 से हमला कर दिया था. इस हमले में 500 राउंड फायरिंग की गई थी. इस दौरान कृष्णानंद राय सहित कुल 7 लोगों को गोलियों से भून दिया गया था. 

इस हत्याकांड के दौरान मुख्तार अंसारी जेल में बंद था. लेकिन फिर भी इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड उसे ही माना गया. इस मामले की जांच भी हुई लेकिन गवाहों और सबूतों के अभाव में कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को इस केस में बरी कर दिया था.

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