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पंजाब में हाई प्रोफाइल सीट बनी ‘अमृतसर ईस्ट’, सिद्धू-मजीठिया में कौन बनेगा सिकंदर?

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Punjab Assembly Election 2022: पंजाब विधानसभा चुनाव में अमृतसर ईस्ट की सीट हाई प्रोफाइल सीट बन गई है. यहां से राज्य के दो दिग्गज नेता आमने-सामने हैं. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को चुनौती देने के लिए अकाली दल ने बिक्रम मजीठिया को मैदान में उतारा है. इस सीट पर जो जीतेगा वो सिकंदर बनेगा. दोनों के बीच व्यक्तिगत रंजिश से मुकाबला और दिलचस्प हो गया है.

अमृतसर ईस्ट सीट क्यों है खास

सर्दी के मौसम में भी जैसी सियासी गर्मी पंजाब की अमृतसर ईस्ट सीट पर है वैसी कहीं नहीं. यहां मामला सिर्फ चुनावी नहीं है बल्कि व्यक्तिगत रंजिश का भी है. सिद्धू की ताजा खुन्नस ये है कि उनकी सीट पर उन्हें टक्कर देने के लिए अकाली दल नेता बिक्रम सिंह मजीठिया अपनी सीट मजीठा के अलावा अमृतसर ईस्ट पर भी नामांकन कर चुके हैं. 2012 में नई सीट बनने के बाद से इस सीट पर सिद्धू परिवार का कब्जा है. साल 2017 में नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते तो 2012 नवजोत कौर यानी सिद्धू की पत्नी बीजेपी की टिकट पर चुनाव जीतीं. अब इसी सीट पर मजीठिया टक्कर दे रहे हैं.

मजीठिया से सिद्धू की रंजिश पुरानी

मजीठिया से सिद्धू की रंजिश पुरानी है. सिद्धू खुलकर बोलते हैं मजीठिया ने उनके मंत्री बनने का रास्ता रोका था. हरसिमरत को मंत्री बनाने के लिए सिद्धू ने कहा, “हरसिमरत को केंद्रीय मंत्री बनाने के लिए मुझे चौथी बार अमृतसर से सांसद बनने से रोक दिया गया था. ये शहर गुंडागर्दी नहीं चाहता, लोकतंत्र को डंडा तंत्र बनाना नहीं चाहता.’’ सिद्धू लगातार मीजिठिया पर ड्र्ग्स माफिया से संबंध होने का आरोप लगाते रहे हैं .वहीं मजीठिया सिद्धू के पाकिस्तान कनेक्शन का आरोप लगाते हैं. पिछले दिनों ने मजीठिया ने कहा कि सिद्धू के पाकिस्तानी पीएम इमराख खान के साथ अच्छे संबंध हैं. इमरान चाहे तो सिद्धू को पाकिस्तान वाले पंजाब का मुख्यमंत्री बना दें.

इस लड़ाई में जो जीतेगा उसका बढ़ेगा कद

अब तक ना तो सिद्धू चुनाव हारे हैं और ना ही माझे का जनरल नाम से मशहूर मजीठिया कोई चुनाव हारे हैं. ऐसे में इस लड़ाई में जो जीतेगा उसका कद बढ़ जाएगा और जो हारेगा उसकी सियासी गणित गड़बड़ा जाएगा. लेकिन इस सीट पर ज्यादा दांव पर सिद्धू का ही लगा है क्योंकि वो हारे तो उनका सीएम पद का दावा हवा हो जाएगा. इस बार सिद्धू की चुनौती दोहरी है, क्योंकि उन पर अपनी सीट जीतने के अलावा राज्य में कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदारी है. ऐसे में मजीठिया के मैदान में उतरने से उनकी मुश्किलें और बढ़ गई है.

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