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क्या बजट में रखा जाएगा चुनावी राज्यों का खास खयाल? पिछले सालों के आंकड़े तो यही गवाही देते हैं

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India Budget 2022: देश एक बार फिर चुनावी रंग में रंगा हुआ है, यूपी, पंजाब, उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. पूरा माहौल सियासी है. इसी बीच एक फरवरी को देश का बजट भी पेश होने वाला है. ज़ाहिर है चुनाव से कुछ दिनों पहले आने वाले बजट में थोड़ा बहुत चुनावी टच नज़र आने की संभावना हो सकती है. ऐसी संभावना इसलिए जताई जा रही है क्योंकि साल 2017 में जब इन्हीं पांच राज्यों में चुनाव थे, तब भी बजट में चुनाव का असर साफ दिखा था.

कैसा था साल 2017 का बजट?

  • साल 2017 में देश का कुल बजट करीब 21.46 लाख करोड़ पेश हुआ था
  • इसमें से 10 लाख करोड़ तो सीधे किसानों के कर्ज के लिए रखे गए थे
  • 3.96 लाख करोड़ रुपए इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए दिए गए थे
  • और गांवों के विकास के लिए करीब 1.87 लाख करोड़ रुपए दिए गए 

यानी बजट का एक बड़ा हिस्सा किसान, बुनियादी ढांचे का विकास जिसमें सड़क, बिजली, पानी जैसी सुविधाएं होती हैं और गांवों के विकास के लिए दिया गया. यानी इसकी वजह से पांचों ही राज्यों में लोगों को कुछ ना कुछ मिला. ऐसा ही पिछले साल अप्रैल-मई में केरल, तमिलनाडु, असम और पश्चिम बंगाल के चुनाव को ध्यान में रखते हुए किया गया था. इसीलिए ऐसा लग रहा है कि इस बार के बजट में भी ऐसा किया जा सकता है.

इससे पहले जब भी किसी चुनाव से पहले आम बजट पेश किया गया तो उस चुनावी राज्य को ध्यान में रखकर कई घोषणाएं की जाती रही हैं. ऐसा ही तब भी देखा गया था जब पिछले साल बंगाल में विधानसभा चुनाव होने थे और उससे पहले जब आम बजट पेश किया गया तो उसमें बंगाल से जुड़ी हुई कई योजनाओं की घोषणा भी की गई थी, जिसपर विपक्ष ने हमलावर रूप से इसको चुनावी बजट भी करार दिया था.

साल 2021 के उस बजट में बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु पर खासा ध्यान दिया गया था:-

  • बंगाल और असम के चाय बागान कामगारों के लिए 1 हजार करोड़ दिए गए
  • केरल में हाईवे निर्माण के लिए 65 हजार करोड़ दिए गए
  • तमिलनाडु में कई इकॉनोमिक कॉरिडोर बनाने का एलान किया गया

इसीलिए संभावना जताई जा रही है कि इस बार भी बजट में ऐसी घोषणाएं हो सकती हैं, जिनमें पांचों राज्यों में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखा जा सकता है. खासतौर पर विकास की परियोजनाओं पर ज्यादा जोर दिया जा सकता है. इसके जरिए मोदी सरकार ये बताने की कोशिश भी करेगी कि इन चुनावी राज्यों में सरकार किस तरह से विकास की परियोजनाओं को आगे बढ़ा रही है. इसके अलावा मेट्रो और रेल के विस्तारीकरण पर भी जोर दिया जा सकता है.

उत्तर प्रदेश से इस बार चुनावी संग्राम शुरू हो रहा है और यहां पहले चरण की वोटिंग 10 फरवरी को होनी है. यानी उससे 9 दिन पहले बजट आएगा. इसका मतलब ये हुआ कि बजट में जो घोषणाएं की जाएंगी, उन्हें लोगों के ज़ेहन में बिठाया जाएगा. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या बजट के बाद जिन राज्यों में चुनाव होते हैं, उन चुनावों पर बजट का कोई असर पड़ता भी है.

  • पिछले 15 साल की बात करें तो बजट के बाद 42 बार चुनाव हुए
  • 13 चुनाव में फायदा हुआ, फायदा उठाने वालों में 9 बार बीजेपी और 4 बार कांग्रेस रही
  • वहीं 18 चुनाव, जो बजट के बाद हुए उनमें नुकसान उठाना पड़ा, नुकसान उठाने में 15 कांग्रेस और 3 बार बीजेपी रही
  • जबकि बजट के बाद 11 बार हुए चुनावों पर बजट का कोई असर नहीं दिखा 

यानी ये कहा जा सकता है कि फायदा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है. कम से कम आंकड़ों को देखने के बाद तो यही पता चलता है, लेकिन तब भी सत्ताधारी पार्टियां इस बात का खयाल रखती हैं कि बजट बाद किस-किस राज्य में चुनाव हैं. उसी हिसाब से बजट भी तय किया जाता है. आज जब आर्थिक सर्वे पेश किया गया उसमें भी इसकी झलक मिली.

आर्थिक सर्वे में खासतौर पर एग्रीकल्चर, इंडस्ट्रियल, और इनवेस्टमेंट की उपलब्धियां गिनाई गईं:-

  • सर्वे में बताया गया कि एग्रीकल्चर सेक्टर की विकास दर 3.6 फीसदी से बढ़कर 3.9 फीसदी हो सकती है
  • इंडस्ट्रियल सेक्टर में विकास दर 11.8 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई
  • वहीं सर्विस सेक्टर की ग्रोथ रेट 8.2 फीसदी रहने की बात सर्वे में कही गई
  • इसके अलावा बताया गया कि रिटेल इन्वेस्टर्स की कमाई बढ़ी है, NSE में व्यक्तिगत निवेशकों का हिस्सा बढ़कर 44.7 फीसदी हो गया है 

अर्थशास्त्री डॉ. अनिल कुमार ने कहा, “मेरा मानना है कि विकास का लाभ समाज के हर वर्ग को मिलता है. अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर में इन्वेस्टमेंट, अच्छी कनेक्टीविटी लाते हैं तो उसका लाभ हर सेक्टर को, हर राज्य में रहने वाले लोगों को मिलता है.”

अब देखना ये है कि इस बार बजट में चुनावी राज्यों के लिए क्या घोषणाएं की जाती हैं, और उनका कितना असर चुनावों पर होता है.

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