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पश्चिमी यूपी में बीजेपी का विनिंग फॉर्मूला तोड़ने की कोशिश में अखिलेश यादव, जानिए पूरा समीकरण

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Uttar Pradesh Assembly Election 2022: अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का विजय रथ अब पश्चिम यूपी की सड़कों को नाप रहा है, उनके बगल में बैठे हैं RLD के सर्वेसर्वा जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary). यहां सीधा मुकाबला BJP से है, इसलिए निशाने पर सीएम योगी (CM Yogi) हैं. इस सियासी वाकयुद्ध में अखिलेश जयंत की जोड़ी एक और दांव चल रही है. ये दांव है आंबेडकरवाद का है, जिसका जिक्र दोनों किसी न किसी बहाने रोज कर रहे हैं. अंबेडकरवादियों को निमंत्रण देने के मजह 24 घंटे बाद अखिलेश ने फिर संविधान का जिक्र करते हुए बाबा साहब अंबेडकर को याद किया. उनका वार बीजेपी पर था, लेकिन निशाने पर अंबेडकरवादी थे. बीजेपी भी अखिलेश के इस दांव को अच्छी तरह समझ रही है.

यूपी में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के नाम की  राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा मायावती हैं, जिनके सियासी वजूद की नींव SC वोटर पर टिकी है. अखिलेश बार-बार अंबेडकरवादियों को पीली चिट्ठी देकर उन्हें समाजवादी खेमें में खींचने की कोशिश कर रहे हैं. अखिलेश ने ये दांव अभी से नहीं शुरु किया है, बल्कि इसकी जमीन वो काफी दिनों से तैयार कर रहे हैं. 14 जनवरी को जब लखनऊ में स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में शामिल कराया, उस वक्त भी अखिलेश ने अंबेडकरवाद का नारा बुलंद किया था.

दोनों खेमों में सेंधमारी की कोशिश

अखिलेश अंबेडकरवाद के नाम एक नई सोशल इंजीनियरिंग करने की कोशिश कर रहे है. उनका ये दांव बीजेपी और मायावती दोनों के खेमे में सेंधमारी का है. क्योंकि अंबेडकरवादी कहकर अखिलेश जिस वर्ग को लुभा रहे हैं, दरअसल पिछले कुछ चुनावों से यूपी में वो वर्ग बीजेपी और बीएसपी के बीच बंटा हुआ है. अखिलेश को इस चुनाव में बार-बार अंबेडकरवादी याद आ रहे हैं. दरअसल अंबेडकरवादी का मतलब है SC वोट. इस वोटबैंक की ताकत का अंदाजा यूपी की राजनीति में मायावती के कद से लगाया जा सकता है, जिसकी नींव अंबेडकरवादी वोटों पर टिकी है. इसलिए पहले इस वोटबैंक की ताकत समझिए.

यूपी में कुछ इस तरह बंटा ये वोटबैंक

यूपी का जातीय गणित

सवर्ण +  OBC   +  SC  + मुस्लिम
19%       41%        21%   19%

OBC और SC का बंटवारा

OBC               SC
यादव        10%             जाटव        11%
गैर यादव    31%            गैर जाटव    10%

माना जाता है कि OBC का 10 फीसदी यादव वोटबैंक अखिलेश के साथ मजबूती से खड़ा है और 11 फीसदी जाटव वोट मायावती के साथ है. असल लड़ाई OBC के गैर यादव और SC के गैर जाटव वोट की हैं. 2014 से गैर यादव OBC और गैर जाटव SC बीजेपी के खेमे में है. ये बीजेपी का जीत का फॉर्मूला है.

बीजेपी का मौजूदा ‘जीत का फॉर्मूला’

अगड़ी जातियां + गैर यादव OBC+ गैर जाटव 
19%     +  31%    +  10%  = 60%

अखिलेश का दांव

अखिलेश बीजेपी के इस वोटबैंक को तोड़ने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं. बीजेपी के गैर यादव वोट बैंक को तोड़ने के लिए वो पहले ही फील्डिंग सजा चुके हैं. गैर यादव OBC पर अखिलेश ने दांव लगाया है. 

11 पार्टियों के साथ गठबंधन बनाया है
गठबंधन राजभर, पटेल, मौर्य, जाट, कुर्मी वोट पर असर रखने वाली पार्टियों से है 
गठबंधन के सहारे बीजेपी से गैर यादव OBC वोट खींचने की कोशिश

अब अखिलेश को ये लग रहा है कि 11 सहयोगी दलों से मिलकर वो बीजेपी के गैर यादव वोट बैंक की दीवार को तोड़ने में कामयाब हो जाएंगे. इसके बाद बीजेपी के किले की दूसरी दीवार है, गैर जाटव SC, जिसके लिए उन्हें आंबेडरवादी की याद आ रही है, लेकिन इस सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब अखिलेश और मायावती का गठबंधन हुआ तो अखिलेश को जबरदस्त नुकसान हुआ.

अखिलेश-मायावती गठबंधन का नतीजा
          2014 लोकसभा   2019 लोकसभा
           (अलग-अलग)        (गठबंधन)
-BSP    0                            10
-SP      5                             5

अखिलेश मायावती का गठबंधन कागजी  समीकरण पर तो बेहद मजबूत नजर आता है, लेकिन 2019 के नतीजे बताते हैं कि इससे मायावती को फायदा मिला था, लेकिन अखिलेश को कुछ भी हासिल नहीं हुआ. अब एक बार फिर अखिलेश SC वोटबैंक को लुभा रहे हैं, लेकिन बैकडोर से.

पश्चिम यूपी में पिछले दो दिनों से प्रचार में जुटे अखिलेश की जुबान पर बार-बार बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का नाम आ रहा है, जबकि यूपी में आंबेडकर के नाम की राजनीति का चेहरा मायावती है. अखिलेश 2019 में मायावती के साथ गठबंधन करके एक बुरी हार का सामना भी कर चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि अखिलेश आंबेडकर के नाम पर कौन सी राजनीति को परवान चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. वो क्या अपना कोई नया समीकरण बना रहे हैं या फिर दुश्मन का समीकरण बिगाड़ने में लगे है.

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