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68 सीटों पर सीधा असर, 35 पर खेल बिगाड़ने का माद्दा, पंजाब में ऐसा है डेरों का रुतबा

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Punjab Assembly Election: पंजाब में चुनावी फसल कटने में अब ज्यादा वक्त नहीं रह गया है. 20 फरवरी को 117 विधानसभा सीटों के लिए वोट पड़ेंगे और 10 मार्च को पता चल जाएगा कि मुख्यमंत्री की गद्दी किसके हाथ लगी है. अगर आप सोचते हैं कि पंजाब की सियासत सिर्फ पार्टियों या जातीय समीकरण पर टिकी है तो ऐसा नहीं है. सूबे की राजनीति में डेरों का अच्छा खासा प्रभाव है. 

सिख धर्म के अलावा पंजाब में विभिन्न धार्मिक संप्रदाय हैं, जिन्हें डेरा कहा जाता है. इन्हें अक्सर संस्थागत धर्म का गरीब चचेरा भाई कहा जाता है. ये डेरे उदार सांस्कृतिक परंपरा की उपज हैं और बहुलता के अस्तित्व और धार्मिक पहुंच के प्रतीक रहे हैं. ऐतिहासिक नजरिए से देखें तो इनके उभरने को सिख धर्म के उभार से जोड़ा गया. इसके बाद जो नामी डेरे अस्तित्व में आए वो थे-नानकपंथी, सेवापंथी, निर्मल, उदासी इत्यादि. लेकिन ये समकालीन डेरे सिख धर्म की कोई शाखा नहीं हैं. डेरे लंबे समय से पंजाब में धार्मिक आस्था का केंद्र बने हुए हैं. यहां डेरा प्रमुख होते हैं, जिन्हें बाबा या गुरुदेव इत्यादि कहा जाता है. 

पंजाब में 6 डेरे अहम

पंजाब में 6 ऐसे डेरे हैं, जिनके न सिर्फ लाखों-करोड़ों लोग अनुयायी हैं बल्कि इनका राजनीति रसूख भी है. पंजाब में एक चौथाई आबादी किसी न किसी डेरे से ताल्लुक रखती है.  ये डेरे हैं- डेरा सच्चा सौदा, राधा स्वामी सत्संग ब्यास, नूरमहल डेरा (दिव्य ज्योति जागृति संस्थान), संत निरंकारी मिशन, नामधारी संप्रदाय और डेरा सचखंड बल्लां. ये डेरे बेहद प्रभावशाली हैं और चुनाव के दौरान 68 विधानसभा क्षेत्रों में अपना असर रखते हैं. जबकि 30-35 सीटें ऐसी हैं, जहां ये किसी प्रत्याशी का खेल बना और बिगाड़ सकते हैं.

पंजाब की आबादी 2.98 करोड़ है. इनमें से करीब 53 लाख वोटर ऐसे हैं, जो डेरों को मानते हैं. डेरों को मानने वाले लोग बाबा या गुरु के हुक्म का पालन ऐसे करते हैं, जैसे वो भगवान का आदेश हो. 

कुछ डेरे पंजाब में ऐसे भी हैं, जो सीधे सीधे राजनीतिक पार्टियों का समर्थन करते हैं. वो अपने अनुयायियों तक ये भी मैसेज पहुंचा देते हैं कि चुनाव में किसके आगे बटन दबाना है और किसके नहीं. हालांकि इस चुनाव में डेरों ने पिछले चुनावों से सबक लेते हुए किसी पार्टी को सीधे समर्थन न देने का फैसला किया है ताकि उन्हें आलोचना न झेलनी पड़े. 

किस डेरे का कहां और कितना प्रभाव

डेरा सच्चा सौदा: इसकी स्थापना साल 1948 में बलूचिस्तान के शाह मस्ताना ने की थी. साल 1990 में 23 साल की उम्र में गुरमीत राम रहीम ने इसका जिम्मा संभाला. इस क्षेत्र में राम रहीम ने डेरों का कायाकल्प कर दिया. वह आम वाचक से रॉक स्टार बाबा बन गया. वह फिलहाल जेल में है. लेकिन फिर भी इस डेरे का प्रभाव करीब 35-40 सीट पर है. इसके प्रभाव वाले क्षेत्रों में मालवा बठिंडा, मांसा, संगरूर, पटियाला, बरनाला और लुधियाना आते हैं.

राधा स्वामी: इस डेरे का 15-20 सीटों पर असर है और इसके प्रभाव वाले इलाके हैं अमृतसर, तरनतारन और गुरुदारपुर

सचखंड बल्लां: दोआबा क्षेत्र (जालंधर, कपूरथला, नवाशहर) में असर रखने वाले इस डेरे का 8-10 सीटों पर प्रभाव है.

निरंकारी: अमृतसर और तरनतारन में इस डेरे के काफी अनुयायी हैं और 7-8 सीटों पर प्रभाव भी.

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान: इस डेरे का माझा और दोआबा दोनों क्षेत्रों में प्रभाव है. इस डेरे का 8 सीटों पर प्रभाव माना जाता है. 

नामधारी: विशेष रूप से माझा और मालवा क्षेत्र में असर रखने वाले इस डेरे का 9-10 सीटों पर प्रभाव है. 

जब धर्म और डेरों के बीच मचा था विवाद  

माना जाता है कि डेरे गरीब तबकों का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन कई बार दोनों के अनुयायियों के बीच तकरार और हिंसा भी देखने को मिली है. जैसे सिख धर्म को मानने वालों और डेरा निरंकारी के अनुयायियों के बीच साल 1978 में हिंसा देखने को मिली थी. इसके अलावा 2001 में डेरा भनियारवाला, डेरा सच्चा सौदा (2008-09), डेरा नूरमहल (2002) और डेरा सचखंड बल्लां (2009-10) की हिंसा की घटनाएं भी लोग भूले नहीं हैं. 

विवादों में रहे डेरे

डेरों के विवाद भी कम नहीं थे. इस कड़ी में जो सबसे विवादित डेरा जहन में आता है, वो है डेरा सच्चा सौदा. सिरसा के इस डेरे के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को दो साध्वियों से रेप मामले में दोषी ठहराया गया था. वह फिलहाल जेल की सलाखों के पीछे है. इसके अलावा पत्रकार राम चंदर छत्रपति और डेरा अनुयायी रंजीत सिंह की हत्या को लेकर भी उस पर मुकदमा चल रहा है.  

जब डेरा सच्चा सौदा ने किया था कांग्रेस का समर्थन

हालांकि पंजाब के सारे डेरा राजनीति में एक्टिव नहीं हैं. लेकिन साल 2007 के चुनाव में डेरा सच्चा सौदा का नाम काफी सुर्खियों में रहा था. डेरा ने खुलकर कांग्रेस का समर्थन किया. नतीजतन, अकाली दल की सरकार को 21 विधानसभा सीटों पर मात मिली. साल 2012 में उसने अकाली दल को समर्थन किया. यही वजह है कि तमाम पार्टियां पंजाब में डेरों को अपने पाले में रखना चाहती हैं.

हाल ही में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी राधा स्वामी और डेरा सचखंड पहुंचे थे. सीएम चन्नी डेरा सचखंड अकसर जाते हैं, ताकि दलित वोटों को साधा जा सके क्योंकि यह डेरा रविदास समुदाय से जुड़ा है. उन्होंने 50 करोड़ रुपये की लागत से गुरु रविदास वाणी अध्याय बनाने का भी ऐलान किया है. इसके अलावा बीजेपी, कांग्रेस, अकाली दल और अन्य पार्टियों के नेता भी डेरा सच्चा सौदा के विभिन्न मुख्यालयों में नजर आ चुके हैं. 

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