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कभी भारतीय नेवी से मिले थे एबीजी समूह को करोड़ों के ऑर्डर, कंपनी ने साख दिखाकर उठाया मोटा कर्ज

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ABG Bank Fraud: एबीजी समूह के खिलाफ सीबीआई छापेमारी ने 22 हजार करोड़ रुपये की देनदारी और कॉरपोरेट लोन डिफॉल्ट का एक और बड़ा नमूना देश के आगे रख दिया है. साथ ही विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी की फेहरिस्त में ऋषि अग्रवाल का नाम भी शामिल कर दिया है. लेकिन हज़ारों करोड़ों रुपये की कर्ज देनदारी की एक अहम कड़ी बीते दशक में इस समूह को रक्षा मंत्रालय से मिले निर्माण ऑर्डर से भी जुड़ती है.

हज़ारों करोड़ रुपये के लोन डिफॉल्ट में डूबे एबीजी ग्रुप की कहानी, एक कारोबारी समूह के महज़ कुछ सालों में चमकदार सितारा बनने और फिर धराशायी होने की दास्तां भी है. वहीं सरकारी बैंकों से करोड़ों रुपये उधार लेकर करोड़ों के वारे-न्यारे करने के इस मामले की एक अहम कड़ी रक्षा मंत्रालय से भी जुड़ी है. क्योंकि साल 2005 से 2014 के बीच यूपीए राज में इस कम्पनी को भारतीय तटरक्षक बल और नौसेना के लिए पोत निर्माण के ऑर्डर भी दिए गए.

गुजरात की इस कंपनी को कभी भारतीय नौसेना के लिए प्रशिक्षण पोत समेत तीन जहाज़ बनाने का वर्क ऑर्डर दिया गया था. साल 2011 में नौसेना से मिले 970 करोड़ रुपए के ऑर्डर के सहारे कम्पनी ने न केवल बीएसई सेंसेक्स पर अपने शेयर की सेहत सुधारी बल्कि बैंकों से मोटा कर्ज़ भी उठा लिया. वहीं दिसम्बर 2012 में कम्पनी को करीब 485 करोड़ रुपये की लागत से एक और नौसैनिक प्रशिक्षण पोत बनाने का ऑर्डर दिया गया. 

इस मामले से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, जाहिर है कि भारतीय नौसेना से मिले निर्माण ऑर्डर ने एबीजी समूह के बही खातों को मजबूत करने के साथ ही उसे बाजार से और अधिक कर्ज लेने की जगह दे दी. हालांकि यह बात और है कि भारतीय नौसेना के लिए पोत निर्माण का यह ऑर्डर कभी पूरे नहीं हुए.बल्कि सितंबर 2014 के बाद से लगातार एबीजी समूह की माली हालत खराब होती रही और कर्ज के बढ़ते बोझ को देखते हुए नौसेना ने ऑर्डर निरस्त कर दिए.

नौसेना की तरफ से मिले वर्क ऑर्डर और कर्ज बाजार में एबीजी शिपयार्ड की साख बढ़ाने में तटरक्षक बल से मार्च 2006 में इंटरसेप्टर बोट के सप्लाई ऑर्डर की भी भूमिका मानी जाती है. तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने 2010 में संसद को दिए एक जवाब के दौरान बताया कि एबीजी समूह के साथ मार्च 2006 में 11 इंटरसेप्टर बोट आपूर्ति के लिए समझौता हुआ था. इस कड़ी में कम्पनी ने साल 2010 तक 6 निगरानी बोट की आपूर्ति भी कर दी थी. 

जाहिर है जिस कम्पनी पर भारत की नौसेना अपने जहाज बनाने के लिए भरोसा कर रही हो उसके लिए बैंक में अपनी साख को दिखाकर कर्ज लेना मुश्किल नहीं था. लिहाज़ा देश के सरकारी बैंकों समेत 22 वित्तीय संस्थाओं से एबीजी समूह ने हज़ारों करोड़ रुपये का कर्ज लिया. वहीं एबीजी समूह के खिलाफ चली वसूली की कार्रवाई के फौरन देनदारों ने उसे विलफुल डिफॉल्टर करार दिया, यानी ऐसा कर्जदार जिसके पास चुकाने की हैसियत तो है लेकिन नीयत नहीं.

साल 2009 से 2011 के बीच यह वो समय था जब रक्षा मंत्रालय में नौसैनिक पोत निर्माण को लेकर पीपीपी मॉडल पर ज़ोर था. इस कड़ी में सरकारी पोत निर्माण कम्पनियों के साथ साथ निजी पोत निर्माण कम्पनियों को भी ठेके देने की शुरुआत की जा रही थी. गुजरात के सूरत और दहेज इलाके की कम्पनी एबीजी समूह उन शुरुआती कम्पनियों में थी जिसे नौसैनिक पोत निर्माण का ठेका मिला.  

एबीजी समूह ने पहले कर्ज के रीस्ट्रक्चरिंग की कवायद शुरू की और वहीं बाद में दिवालिया घोषित किए जाने की कार्रवाई को भी आगे बढ़ाया. हालांकि अब 24 हज़ार करोड़ से अधिक की कर्ज अदायगी में चूक के आर्थिक अपराध पर जांच सीबीआई कर रही है.

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