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उर्दू अदब के नामचीन शायर मुनव्वर राना के सियासी बोल

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देशविरोधी विचारधारा के जातिवादी शायर मुनव्वर राणा जैसे कट्टरपंथी इंसान जो उर्दू “अदब” के नाम पर “बेअदबी” से और बत्तमीज़ी से बात करते हैं, ये उर्दू अदब के नाम पर तमाचा हैं और उर्दू अदब की स्याह कहानी हैं, शायरी विरोध का एक माध्यम रहा है मगर सीमित सोच के इस शायर की भाषा ने इनके शख्सियत के स्तर का ज्ञान दे दिया है , इनके ग़ुस्से की वजह इन्हें लॉक डाउन के दौरान गोश्त खाने को नही मिल पाया है वही है,

ये हमेशा से देशविरोधी विचारधारा दल के सक्रिय सदस्य रहे हैं,

इनके जैसी गंदी और सीमित सोच के लोगों को देश और देशवासियों ने तो बहोत ही इज़्ज़त दी, सम्मान दी मगर शायद इन्हें घी हज़म नही होता है,

देशद्रोही शायर मुनव्वर राणा नदवी जैसे दो कौड़ी के इंसान जो उर्दू “अदब” के नाम पर “बेअदबी” से और बत्तमीज़ी से बात करते हैं, इनके ग़ुस्से की वजह इन्हें लॉक डाउन के दौरान गोश्त खाने को नही मिला है,

ये हमेशा से देशविरोधी दल के सक्रिय सदस्य रहे हैं

ये कुछ सियासी पार्टियों के हाथ मे फले- फूले लोग हैं, उन्हीं के हाथ खेले गए लोग हैं, उन्ही पार्टियों ने इन्हें इनामात दिये फ़िर उन्ही पार्टियों के कहने पर इन्होंने सियासी स्टंट अपनाते हुए रहमो करम में मिले इनामात को वापस कर दिया ।

देश के सभी वर्गों सभी धर्मो में मान्यता प्राप्त देश की जनता द्वारा चुने हुवे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की तस्वीर लेकर दरगाहों पर जाने और अटल जी की सेहत के लिये दुआएँ करना इन जैसी तंग और छोटी सोच के लोगों की शख्सियत जोकि कुछ सरकारों के साये से छुपी हुई थी को प्रदर्शित करती है जिसका असली अंदाज़ लोगों के सामने आ गया है,

देशविरोधी मानसिकता वाले मुनव्वर की भाषा किसी भी निम्न स्तर के अपराधी से कम नहीं है,

मुनव्वर राणा अपनी सेहत की दुआएँ कराने के लिये तो लोगों को ख़ूब जज़्बाती करते हैं, देशवासियों से दुआओं की उम्मीद रखते हैं, पर देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के लिये दुआएँ इन्हें बर्दाश्त नहीं, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी इन्हें अच्छे नही लगते , वर्तमान के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से भी इन्हें बुग़ज़ है, देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी इन्हें पसंद नहीं हैं,

तुनकमिज़ाज मुनव्वर को अपनी मर्ज़ी के विरुद्ध कोई भी फ़ैसला पसंद नही है। लोकतंत्र में विरोध सबका हक़ होता है , अभिव्यक्ति की आज़ादी का भी हक़ है पर हेट स्पीच और असंसदीय भाषा का प्रयोग करने का हक़ नही है, और किसी भी इस्लामिक राष्ट्र में इतना बोल के दिखा दें तो नतीजे शायद अब तक आ चुके होते।

अटल जी का विरोध करना ये साबित करता है कि ये दर्द पुरानी है जोकि तुनकमिज़ाज मुनव्वर की कट्टरपंथी सोच प्रदर्शित करती है।। इनकी सोच बहोत ही सीमित है ये शायद एक धर्म बल्कि धर्म नही ये एक जाति विशेष के शायर हैं। परंतु अबकी इनकी भाषा किसी शायर की नहीं बल्कि किसी सियासतदानों जैसी है, जोकि पार्टियों को ख़ुश करा कर अपनी नई पारी की शुरुआत करने वाली है।

*”क़लम बिकाऊ नहीं होती, और बिकी हुई क़लम बिल्कुल टिकाऊ नहीं होती”*

 

हसन वसीम ( सामाजिक कार्यकर्ता) की कलम से

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