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यह अतिरिक्त राजस्व महामारी के दौरान राज्यों के भारी नुकसान की कर सकता है पूर्ति

लखनऊ: चिकित्सको और अर्थशास्त्रियों के साथ जन स्वास्थ्य समूह जीएसटी कौंसिल से अपील कर रहे हैं कि सभी तंबाकू उत्पादों पर कंपनसेशन सेस (क्षतिपूर्ति उपकर) बढ़ा दिया जाए तो 49,740 करोड़ रुपए का अतिरिक्त टैक्स राजस्व हासिल हो सकता है। यह अतिरिक्त राजस्व महामारी के दौरान भिन्न राज्यों की क्षतिपूर्ति की बढ़ी हुई आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है और केंद्र द्वारा देय बकायों के भुगतान के काम आ सकता है। सब मिलकर जीएसटी कौंसिल से अपील कर रहे हैं कि जीएसटी कौंसिल की अगली बैठक में एक असाधारण उपाय की तरह बीड़ी पर क्षतिपूर्ति उपकर लगाया जाए तथा सिगरेट और तंबाकू के दूसरे उत्पादों जैसे खैनी और पान मसाला पर लगने वाले क्षतिपूर्ति सेस को भी बढ़ाया जाए। 

कोविड-19 भारत में अब तक महसूस किए गए सबसे बड़े आर्थिक झटकों में एक लगता है। जीएसटी से प्राप्त होने वाला केंद्र और राज्य सरकार का राजस्व बुरी तरह प्रभावित हुआ है और इसका नतीजा यह है कि केंद्र सरकार भिन्न राज्यों को क्षतिपूर्ति उपकर का बकाया राज्यों को नहीं बांट सकी है जैसा जीएसटी के तहत गारंटी है।
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चिकित्सकों, अर्थशास्त्रियों, जन स्वास्थ्य ऐक्टिविस्ट्स ने जीएसटी कौंसिल से कहा है कि तंबाकू उत्पादों पर कंपनसेशन सेस से 49,740 करोड़ इकट्ठे हो सकते हैं।
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इसके अलावा, भारत सरकार ने अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए भिन्न वित्तीय और आर्थिक प्रोत्साहन उपायों की घोषणा की है ताकि महामारी के नकारात्मक आर्थिक झटकों से परेशान लोगों की क्षतिपूर्ति की जा सके। बीड़ी और दूसरे तंबाकू उत्पादों पर (क्षतिपूर्ति उपकर) लगाने और सिगरेट तथा तंबाकू के दूसरे उत्पादों पर लगने वाले मौजूदा क्षतिपूर्ति उपकर को बढ़ाना बहुत प्रभावी नीतिगत उपाय हो सकता है। इससे केंद्र सरकार द्वारा कमपनसेशन सेस राजस्व बढ़ाने की तात्कालिक आवश्यकता को तुंरत पूरा किया जा सकेगा। समूह का सुझाव है कि राज्य सरकारों को उनके संबंधित जीएसटी राजस्व में कमी के बदले धन देने के मामले में इस तरह के उपाय बाजार से कर्ज लेने के मुकाबले ज्यादा आकर्षक समाधान हो सकते हैं। इनके तंबाकू से संबधित मौजूदा टैक्स प्रणाली में एकीकृत होने की संभावना ज्यादा है। इसके अलावा, यह राजस्व के साथ-साथ जन स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद रहेगा। इससे तंबाकू का उपयोग कम होगा और उससे होने वाली बीमारियां कम होंगी और यह सब कोविड के खतरनाक होने का कारण है।
अर्थशास्त्री और स्वास्थ्य नीति विश्लेषक डॉ. रिजो जॉन के मुताबिक, “कोविड-19 के आर्थिक झटकों से उबरने के लिए देश को बेजोड़ वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होगी। जब खपत बढ़ाने की आवश्यकता है तब आम जनता पर अतिरिक्त कर लगाना भले ही व्यवहार्य नीतिगत विकल्प नहीं हो, तंबाकू उत्पादों पर क्षतिपूर्ति उपकर सबके लिए फायदेमंद हो सकता है। इससे तंबाकू की खपत कम होगी और सरकार के लिए अच्छा-खासा राजस्व आएगा। हर बीड़ी पर एक रुपए का क्षतिपूर्ति उपकर और सिगरेट तथा खैनी पान मसाला पर भी ऐसे ही अच्छे-खासे उपकर से उम्मीद की जाती है कि 50,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त कर राजस्व पैदा होगा।’’

तंबाकू उत्पादों पर प्रस्तावित कंपनसेशन सेस और इसका प्रभाव
बीड़ी सिगरेट तंबाकू के दूसरे उत्पाद
प्रस्तावित कंपनसेशन टैक्स रुपए 1 प्रति बीड़ी रुपए 5 प्रति सिगरेट 52%
अनुमानित अतिरिक्त सेस राजस्व (रुपए) 233 बिलियन 250 बिलियन 13.5 बिलियन
कुल टैक्स का नया भार 67% 65% 70%
खपत में अनुमानित कमी का प्रतिशत 35% 17% 10%
मौजूदगी उपस्थिति में अनुमानित प्रतिशत कमी 18% 10% 5%
इसके कारण बताए जा सकने वाली मौतों में कितनी कमी का अनुमान 9.1 मिलियन 3.4 मिलियन 7.2 मिलियन

“बीड़ी समेत तंबाकू के सभी उत्पादों पर कमपनसेशन सेस बढ़ाना सरकार के लिए फायदेमंद है क्योंकि इससे कोविड 19 स्टिमुलस के लिए आवश्यक अतिरिक्त कर राजस्व मुहैया होगा। इससे देश के लोगों को राहत मुहैया कराई जा सकेगी जबकि लाखों तंबाकू उपयोगकर्ताओं को इसे छोड़ने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा। यही नहीं, इससे युवा भी तंबाकू का उपयोग शुरू करने से रुकेंगे।” – अशीम सन्याल, सीओओ, कंज्यूमर वॉयस

सभी तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ाने से न सिर्फ वे महंगे हो जाएंगे बल्कि इस कारण इनकी खपत भी कम होगी। इससे फायदा यह होगा कि तंबाकू से होने वाला नुकसान और घातक असर भी कम होगा। तंबाकू का धुंआ पीना सांस संबंधी कई बीमारियों के लिए जाना पहचाना जोखिम घटक है और इससे सांस संबंधी बीमारियों की गंभीरता काफी बढ़ जाती है। चीन और इटली से मिले शुरुआती सबूतों से पता चलता है कि धूम्रपान और धूमपान के कारण होने वाली बीमारियों के कारण जिन लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति ठीक नहीं है और जोखिम घटक ज्यादा है वे ज्यादा खतरे में हो सकते हैं। कोविड-19 से उनके मामले में स्थिति गंभीर या मौत भी हो सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश है कि तंबाकू उत्पादों की कुल कीमत या खुदरा कीमत में कम से कम 75% टैक्स होना चाहिए। इस समय उत्पादों के अंतिम खुदरा मूल्य में टैक्स का योगदान प्रतिशत रूप में सिर्फ 49.5% है। भारत में तंबाकू के दूसरे उत्पादों पर कुल कीमत में टैक्स 63.7% और यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसा के मुकाबले काफी कम है। दूसरी ओर, बीड़ी पर टैक्स बहुत कम है और इस समय यह सिर्फ 22% है तबकि नुकसान के मामले में यह कम से कम सिगरेट के बराबर है। उपयोग के मामले में भारत में इसका सेवन सिगरेट के मुकाबले दूना होता है। नतीजतन इससे होने वाली बीमारी और मौत के हिसाब से इसका अनुमानित वार्षिक खर्च 805.5 बिलियन रुपए या भारत की जीडीपी का 0.5% है। वैसे तो 20-21 के केंद्रीय बजट में सिगरेट और तंबाकू के अन्य उत्पादों पर नेशनल क्लैमिटी कांटिनजेंट ड्यूटी (एनसीसीडी) में मामूली वृद्धि हुई है पर 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से सभी तंबाकू उत्पाद किफायती हो गए हैं।

मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर केयर के चेयरमैन डॉ. हरित चतुर्वेदी के अनुसार, “बीड़ी के नुकसानदेह होने से संबंधित पर्याप्त सबूत हैं और यह गरीबों के लिए कोई अच्छी चीज नहीं है। इन्हें गरीबों के लिए इतना महंगा कर दिया जाना चाहिए कि वे इनका सेवन कर ही नहीं सकें। इससे वे जीवन भर के संकट और पीड़ा से बच सकेंगे।”

तंबाकू का उपयोग करने वालों की संख्या के मामले में (268 मिलियन या भारत के सभी वयस्कों में 28.6%) भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है – इनमें से कम से कम 12 लाख हर साल तंबाकू से संबंधित बीमारियों से मर जाते हैं। तंबाकू के उपयोग के कारण होने वाली बीमारियों की कुल लागत 2011 में 1.04,500 करोड़ रुपए थी जो भारत के जीडीपी का 1.16% है।

शाश्वत तिवारी की कलम से।।
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