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लखनऊ, राजधानी लखनऊ के इटौंजा थाना क्षेत्र में रहने वाले एक व्यक्ति को उसके भाइयों ने मृत घोषित कर उसकी कीमती जमीन तहसील के अधिकारियों की मिलीभगत से बेच दी। पीड़ित जब जेल से छूट कर गांव आया तो उसे इस बात की जानकारी मिली तो उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई। जब ग्रामीणों ने बताया कि उसकी जमीन बेच दी गई है तो वह भौचक्का रह गया क्योंकि वह जिंदा है और अभिलेखों में उसे मृत दिखा दिया गया। अब उसके पास खाने को भी लाले पड़े हैं। उसकी कीमती जमीन को राजस्व अभिलेखों में फर्जी तरीके से दूसरों के नाम दर्ज करा दिया गया। पीड़ित ने इस संबंध में दोषियों पर कार्रवाई करने और अपनी जमीन वापस दिलाने की पुलिस के उच्च अधिकारियों से गुहार लगाई है। एसपी ग्रामीण हृदेश कुमार ने कहा कि पीड़ित की हरसंभव मदद की जाएगी। पीड़ित के प्रार्थनापत्र के आधार पर दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
पीड़ित की दो बीघा जमीन बेची
जानकारी के अनुसार, घटना इटौंजा थाना क्षेत्र की है। यहां मझोरिया गांव में छोटक्के अपनी पत्नी दो बेटे बबलू और अनिल के साथ रहते हैं। पीड़ित छोटक्के ने बताया कि 5-6 साल पहले गांव वालों ने फर्जी तरीके से उसे बिजली के तार काटने का आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज करा दिया था। इस मामले में पुलिस ने उसे जेल भेज दिया था। 5-6 साल सजा काटने के बाद जब वह जेल से छूटा तो खाने के लिए उसके पास कुछ नहीं बचा। पीड़ित ने कहा कि हम अपनी जमीन गिरवी रख दें तो परिवार का पेट पाल सकूंगा। लेकिन गांव वालों ने बताया कि उसे मृत घोषित करके उसके भाइयों ने तहसील के अधिकारियों की मिलीभगत से उसकी जमीन इंदिरा नगर में रहने वाले राजेश नाम के व्यक्ति के हाथ बेच दी है।
पीड़ित ने बताया कि राजेश खुद को पुलिस विभाग में बता कर धमकी देता है कि अगर कोई कार्यवाही की तो ऐसे मामले में जेल भेज दूंगा कभी छूट नहीं पाओगे। पीड़ित ने बताया कि उसके सगे भाई पुत्ती लाल और राम नरेश ने उसकी दो बीघा जमीन बेच दी है। इसमें रामनरेश की मृत्यु हो चुकी है। जबकि पुत्ती लाल अभी जीवित है। पीड़ित के दो बेटे हैं उनका पेट पालना मुश्किल है। पीड़ित ने उच्च अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई है। देखने वाली बात होगी कि पीड़ित को न्याय मिल पाता है।
भू-माफिया कर रहे ऐसे खेल
तहसील सूत्रों का मानना है कि शहर से लगे इलाकों में जमीनों का फर्जी तरीके से वरासतनामा कराने का खेल भू-माफिया कर रहे हैं। वह ऐसे व्यक्तियों की जमीनें चुनते हैं जो कम पढ़े लिखे व सीधे-साधे हों ताकि खुलासा होने पर भी वह अपनी संपत्ति बचाने की लंबी कानूनी लड़ाई न लड़ सकें। ऐसे व्यक्तियों को मृत घोषित कर जमीन उन्हीं के वारिस या फर्जी वारिस के नाम दर्ज करा देते हैं। इसके बाद राजस्व कर्मियों की मिलीभगत से अभिलेख में अपने आदमी का नाम चढ़वाकर जमीन बेच दी जाती है। वरासत के वक्त ऐसे मामले पकड़ में न आयें तो जमींदार को वर्षों तक पता ही नहीं चल पाता।
वर्षों से चल रहा है यह खेल
लाखों-करोड़ों रुपये कीमत की दूसरों की जमीनें फर्जी तरीके से हड़पने का खेल काफी पुराना है। विगत वर्षों आलमनगर के वर्षों पुराने कब्रिस्तान की करीब तीन बीघा जमीन ऐसे दो व्यक्तियों के दर्ज होने का खुलासा हुआ जिनका उससे कोई मतलब नहीं था। जांच में खुलासा होने पर जमीन को पुन: कब्रिस्तान के नाम दर्ज करने की कार्रवाई की गई। लेकिन लाखों रुपए की जमीन के फर्जी जमींदार बनाने में शामिल राजस्व कर्मियों का पता नहीं चल पाया। सुल्तानपुर रोड पर अहिमामऊ के नजदीक स्थित एक व्यक्ति की करोड़ों रुपये कीमत की जमीन फर्जी तरीके से बेचने के मामले की जांच चली। मोहान रोड पर सरोसा-भरोसा गांव के पास स्थित कई बीघा सरकारी जमीन की भू-माफियाओं ने प्लाटिंग करके रजिस्ट्री तक करा डाली थी। सरोजनीनगर क्षेत्र के अमौसी में वहां के रहने वाले विश्राम की जमीन फर्जी तरीके से उन्हीं की पत्नी के नाम कराने का तानाबाना बनाया गया। प्रेमा देवी की तरफ से कृषि भूमि के वरासत के लिये आवेदन आया।
बताया गया कि विश्राम की वर्ष 2009 में मृत्यु हो चुकी है। इसलिए दो अलग-अलग स्थानों पर स्थित विश्राम की जमीन पत्नी प्रेमा के नाम दर्ज (वरासत) कर दी जाए। आवेदन के साथ विश्राम की मृत्यु का 24 मार्च 2009 को नगर निगम से जारी प्रमाण पत्र की प्रति साक्ष्य के रूप में लगाई गई। ऐसे दर्जनों मामलों की अलग-अलग स्तरों से जांच चल रही है।