सीतापुर, हंसने.खेलने और मस्ती करने की उम्र में जो बच्चा गुमसुम और उदास रहे उसके चेहरे पर एक मुस्कान देखने के लिए उसके माता.पिता को ब्लड बैंक और अस्पतालों के चक्कर काटने पड़े, सोचिये उन परिजन का क्या हाल होगा। थैलेसीमिया एक ऐसी ही आनुवंशिक बीमारी है। विडंबना यह है कि इसके कारणों का पता लगाकर इससे बचा नहीं जा सकता। थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है जो बच्चों को जन्म से ही मिलता है।
तीन माह की उम्र के बाद ही इसकी पहचान हो पाती है। चिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी में बच्चे में खून का ठीक से निर्माण नहीं हो पाता हैए जिससे खून की कमी हो जाती है। इस कारण रोगी को बार.बार खून चढ़ाना पड़ता है। खून की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है एवं बार.बार खून चढ़ाने के कारण मरीज के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है जो हृदय में पहुंचकर प्राणघातक साबित होता है।
सीएमओ डॉ मधु गैरोला का कहना है कि थैलेसीमिया एक रक्त रोग है। यह दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता.पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है जो काफी घातक हो सकता है। माता.पिता में से एक ही में माइनर थैलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। अतरू जरूरी यह है कि विवाह से पहले महिला.पुरुष दोनों अपनी जांच करा लें। वह बताते हैं कि थैलेसीमिया पीडित के इलाज में काफी खून और दवाइयों की जरूरत होती है। इस कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए इसका इलाज करा पाना मुश्किल हो जाता है।
समय से और सही इलाज करने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की उम्मीद होती है। जैसे.जैसे उम्र बढ़ती जाती है खून की जरूरत भी बढ़ती जाती है। अतरूसही समय पर ध्यान रखकर बीमारी की पहचान कर लेना उचित होता है। अस्थि मज्जा ट्रांसप्लांटेशन एक किस्म का ऑपरेशन इसमें काफी हद तक फायदेमंद होता है लेकिन इसका खर्च काफी ज्यादा होता है। देश भर में थैलेसीमिया, सिकल सेल, सिकलथेल, हिमोफेलिया आदि से पीडित अधिकांश गरीब बच्चे 8.10 वर्ष से ज्यादा नहीं जी पाते।
थैलेसीमिया के लक्षण .
बार.बार बीमार होना, सर्दी, जुकाम रहना, कमजोरी और उदासी रहना, आयु के अनुसार शारीरिक विकास न होना, शरीर में पीलापन बना रहना व दांत बाहर की ओर निकल आना, सांस लेने में तकलीफ होना यह थैसेसीमिया के लक्षण हैं।
कैसे करें थैलेसीमिया से बचाव ..
थैलेसीमिया से बचाव के लिए विवाह से पहले महिला.पुरुष की रक्त की जांच कराएं, गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराएं, मरीज का हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें, समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा लें।