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सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में इसे अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है. अब दो वयस्क पुरुषों अथवा दो वयस्क महिलाओं द्वारा आपसी सहमति से आपस में यौन संबंध स्थापित करना इस धारा के तहत अपराध नहीं कहा जा सकेगा, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि IPC की इस धारा के कुछ पहलू ज़्यों के त्यों बने रहेंगे, जिनके तहत बच्चों से यौनाचार, पशुओं से यौन संबंध स्थापित करना अथवा असहमति से (ज़बरदस्ती) समान लिंग वाले व्यक्ति के साथ यौन संबंध स्थापित करना अपराध ही रहेगा.
इसी धारा के तहत दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच ही नहीं, किसी पुरुष और महिला के बीच बनाए गए अप्राकृतिक यौन संबंधों (ओरल तथा एनल सेक्स) को भी अपराध की श्रेणी में ही रखा जाता था, लेकिन एकमत से फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ की सदस्य जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि अब यौन संबंधों के इन प्रकारों को भी अपराध नहीं माना जाएगा… दरअसल, धारा 377 के अब तक बने रहे प्रावधानों में कहा गया था कि यदि कोई महिला तथा पुरुष ‘प्रकृति के खिलाफ यौनाचार’ करते हैं, तो इसकी अनुमति नहीं है, परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कोई पुरुष तथा महिला अप्राकृतिक यौनाचार (एनल और ओरल सेक्स) भी करते हैं, तो वह भी अब ‘परमिसिबल’ है.
जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने इसके अलावा यह भी स्पष्ट किया कि पुराने मामलों में इस नए फैसले से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन अब तक अदालतों में चल रहे मामलों के आरोपी गुरुवार के फैसले से अवश्य लाभान्वित होंगे. उन्होंने कहा, “धारा 377 के तहत जिन मामलों में प्रॉसीक्यूशन पूरा हो चुका है, और फैसला सुनाया जा चुका है, वे मामले हमारे फैसले से दोबारा नहीं खुलेंगे, लेकिन जो मामले अभी तक लंबित हैं, उनमें गुरुवार के फैसले के ज़रिये राहत पाई जा सकती है