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समलैंगिकता अपराध है या नहीं, ( Homosexuality) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के बाद अब यह स्पष्ट हो चुका है. समलैंगिकता को अवैध बताने वाली IPC की धारा 377 (Section 377) की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया और कहा कि समलैंगिक संबंध अब से अपराध नहीं हैं. संविधान पीठ ने सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध को एक मत से अपराध के दायरे से बाहर कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के एक हिस्से को, जो सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बताता है, तर्कहीन, बचाव नहीं करने वाला और मनमाना करार दिया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले तक आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में था. इसमें 10 साल या फिर जिंदगी भर जेल की सजा का भी प्रावधान था, वो भी गैर-जमानती. यानी अगर कोई भी पुरुष या महिला इस एक्ट के तहत अपराधी साबित होते हैं तो उन्हें बेल नहीं मिलती. इतना ही नहीं, किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान था. समलैंगिकता की इस श्रेणी को LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) के नाम से भी जाना जाता है. इसी समुदायों के लोग काफी लंबे समय से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तहत इस धारा में बदलाव कराने और अपना हक पाने के लिए सालों से लड़ाई लड़ रहे थे. यहां जानिए कि आखिर धारा 377 है क्या और क्यों इसे भारत में अपराध की श्रेणी में रखा गया था. इस एक्ट की शुरुआत लॉर्ड मेकाले ने 1861 में इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) ड्राफ्ट करते वक्त की. इसी ड्राफ्ट में धारा-377 के तहत समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखा गया. जैसे आपसी सहमति के बावजूद दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच सेक्स, पुरुष या महिला का आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध (unnatural Sex), पुरुष या महिला का जानवरों के साथ सेक्स या फिर किसी भी प्रकार की अप्राकृतिक हरकतों को इस श्रेणी में रखा गया है. इसमें गैर जमानती 10 साल या फिर आजीवन जेल की सजा का प्रावधान है. धारा-377 इस देश में अंग्रेजों ने 1862 में लागू किया था. इस कानून के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया गया है.
ब्रिटेन में 25 अक्टूबर, 1800 को जन्मे लॉर्ड मैकाले एक राजनीतिज्ञ और इतिहासकार थे. उन्हें 1830 में ब्रिटिश पार्लियामेन्ट का सदस्य चुना गया. वह 1834 में गवर्नर-जनरल के एक्जीक्यूटिव काउंसिल के पहले कानूनी सदस्य नियुक्त होकर भारत आए. भारत में वह सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर और लॉ कमिशन के हेड बने. इस दौरान उन्होंने भारतीय कानून का ड्राफ्ट तैयार किया. इसी ड्राफ्ट में धारा-377 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की कैटेगरी में डाला गया.
धारा 377 का पहली बार मुद्दा गैर सरकारी संगठन ‘नाज फाउंडेशन’ ने उठाया था. इस संगठन ने 2001 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और अदालत ने समान लिंग के दो वयस्कों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाले प्रावधान को ‘‘गैरकानूनी’’ बताया था.
ऑस्ट्रेलिया, माल्टा, जर्मनी, फिनलैंड, कोलंबिया, आयरलैंड, अमेरिका, ग्रीनलैंड, स्कॉटलैंड, लक्जमबर्ग, इंग्लैंड और वेल्स, ब्राजील, फ्रांस, न्यूजीलैंड, उरुग्वे, डेनमार्क, अर्जेंटीना, पुर्तगाल, आइसलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, कनाडा, बेल्जियम, नीदरलैंड जैसे 26 देशों ने समलैंगिक सेक्स को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है.