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अशोक गहलोत को एक बार फिर राजस्थान की कमान

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जयपुर,  राजनेता नहीं होते, तो वह जरूर एक जादूगर होते। लो-प्रोफाइल रहने वाले अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की दौड़ में विजेता बनकर उभरे हैं। राजस्थान की राजनीति में एक लंबे अनुभव के बल पर उन्होंने तीसरी बार यह मुकाम हासिल किया है। कांग्रेस स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के बावजूद सत्ता पाने में कामयाब हुई है। शीर्ष पद के लिए पार्टी की ओर से चुने गए और अपने राजनीतिक प्रबंधन के लिए प्रसिद्ध गहलोत को अब पार्टी के अंदर ही सभी धड़ों को एक साथ लाना होगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री, पार्टी महासिचव और दो बार मुख्यमंत्री रहे गहलोत ने राजस्थान के युवा नेता व पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष सचिन पायलट को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए अंतिम समय में पछाड़ दिया।
सरकार चलाने और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की चुनौतियों के अलावा, गहलोत को राज्य कांग्रेस के भीतर आपसी मतभेद खासकर पायलट से शीत युद्ध को संभालने के लिए अपने अनुभव और राजनीतिक कुशाग्रता का इस्तेमाल करना पड़ेगा।
निर्णायक विधानसभा संग्राम में टिकट बंटवारे को लेकर आपसी मतभेद सार्वजनिक हो गए थे और मुख्यमंत्री पद को लेकर गहलोत व पायलट के बीच खींचतान भी कांग्रेस के विजयी होने के तत्काल बाद उभरकर सामने आ गया।
अंत में, कांग्रेस के नेतृत्व ने पायलट के स्थान पर अनुभवी गहलोत को चुना। पायलट को 2013 में पार्टी को मजबूत करने के लिए पार्टी की राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया गया था।
1951 में जोधपुर में जन्मे गहलोत ने छात्र नेता के तौर पर राजनीति में कदम रखा और उन्होंने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की राजस्थान इकाई की अगुवाई की।
जोधपुर से पांच बार सांसद चुने गए गहलोत ने दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में राजनीतिक कद बढ़ाया। वह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव की सरकार में केंद्र में मंत्री रहे।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी दोनों के करीबी माने जाने वाले गहलोत महत्वपूर्ण मुद्दों पर पार्टी के प्रमुख व्यक्ति बनकर उभरे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहप्रदेश गुजरात में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हें राज्य की कमान सौंपी गई थी, जहां कांग्रेस भले जीत न पाई हो, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा को उसने कड़ी टक्कर दी थी।
कांग्रेस के अनुभवी नेता ने एक बार फिर मई में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपनी कुशाग्रता का प्रदर्शन किया और गुलाम नबी आजाद के साथ मिलकर सरकार गठन के लिए जनता दल (सेकुलर) के साथ चुनाव बाद गठबंधन किया।
जोधपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त गहलोत ने पायलट के साथ मिलकर राजस्थान में कांग्रेस को फिर से उबारा और सत्ता की दहलीज तक पहुंचाया।
अपने चुनावी अभियान में गहलोत ने अधिकतर ग्रामीण इलाकों पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जिसमें उन्होंने खासकर किसानों पर ध्यान दिया, जिसका उन्हें वांछित नतीजा भी प्राप्त हुआ।
एक बार उन्होंने कहा था कि ’अगर मैं राजनीति में नहीं आता तो मैं जादूगर होता’। यह दावा वास्तव में काफी बड़ा है, खासकर तब जब 2019 का रण कुछ ही महीने दूर है। मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा ने यहां 2014 में लोकसभा की सभी 25 सीटें जीती थी।

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