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हार्ट फेलियर सबसे कम कम जांची जाने वाली स्थिति : विशेषज्ञ

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नई दिल्ली, 25 फरवरी 2019 , स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत में हार्ट फेलियर सबसे कम पहचानी जाने वाली और सबसे कम जांची जाने वाली स्थिति है, जिसके परिणामस्वरूप यह रोग चुपचाप लेकिन तेजी से रोगियों को मार रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, हार्ट फेलियर तेजी से बढ़ता रोग है, जिसमें हृदय की मांसपेशी समय बीतने के साथ कमजोर होकर अकड़ जाती है और ठीक तरह से पंप करने की इसकी क्षमता घटा देती है। इससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति घट जाती है। इस स्थिति को इश्चेमिक हार्ट डिजीज और हार्ट फेलियर कहा जाता है।
ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. देवकिशन पहलाजानी के अनुसार, इश्चेमिया का अर्थ है ’रक्त आपूर्ति में कमी’। कोरोनरी आर्टरीज हृदय की मांसपेशी को रक्त की आपूर्ति करती हैं, इसका कोई अन्य विकल्प नहीं है, इसलिए कोरोनरी आर्टरीज में ब्लॉकेज होने से हृदय की मांसपेशी में रक्त की आपूर्ति घट जाती है।
उन्होंने कहा, “यह ब्लॉकेज आमतौर पर कोलेस्ट्रॉल और अन्य पदार्थो के आर्टरी में जमने से होता है। इससे बीतते समय के साथ आर्टरीज अंदर से संकरी हो जाती है और हृदय में रक्त का प्रवाह आंशिक या पूर्ण रूप से रुक सकता है।“
डॉ. देवकिशन ने कहा, “इससे रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है व हृदय को सामान्य से अधिक कार्य करना पड़ता है और हार्ट फेलियर हो जाता है। “
त्रिवेंद्रम हार्ट फेलियर रजिस्ट्री (टीएचएफआर) ने हाल ही में अस्पताल में भर्ती रोगियों और दक्षिण भारत में हार्ट फेलियर के तीन वर्ष के परिणामों पर एक अध्ययन किया। अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि हार्ट फेलियर से पीड़ित 72 प्रतिशत रोगियों का इश्चेमिक हार्ट डिजीज थी। इश्चेमिक हार्ट डिजीज ने पंजाब, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल को जकड़ रखा है।
डॉ. देवकिशन के अनुसार, “हार्ट फेलियर की घटनाएं बढ़ रही हैं। मैं एक माह में जितने हार्ट फेलियर के रोगी देखता हूं, उनमें से 20-22 प्रतिशत की यह स्थिति इश्चेमिक हार्ट डिजीज के कारण है। जोखिम के कारकों की बेहतर स्क्रीनिंग और शीघ्र तथा पर्याप्त उपचार से बहुत हद तक इसकी रोकथाम की जा सकती है।“
उन्होंने कहा, “दवाइयों में हालिया उन्नति के साथ हार्ट फेलियर का प्रभावी प्रबंधन हो सकता है। साथ में जीवनशैली से सम्बंधित सकारात्मक परिवर्तन भी चाहिए, जैसे तरल का सेवन कम करना, नमक के सेवन पर नियंत्रण करना, स्वास्थ्यकर आहार लेना, धूम्रपान छोड़ना, अल्कोहल का सेवन सीमित करना और दिनचर्या में हल्की-फुल्की शारीरिक गतिविधियों को शामिल करना।

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