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बारह वर्षों बाद यह स्थिति आ रही है कि मौजूदा तिमाही में करंट अकाउंट सरप्लस में होगा। करंट अकाउंट यानी चालू खाता देश में कुल धन आने और जाने का हिसाब है। इसके सरप्लस में होने का मतलब है, जून तिमाही में देश से बाहर गई कुल राशि देश में आई राशि के मुकाबले कम होगी। इससे पहले ऐसा 2006-07 की मार्च तिमाही में हुआ था। आम तौर पर भारत जैसे विकासशील देशों के सामने चुनौती करंट अकाउंट घाटे को काबू में रखने, उसे एक हद से ज्यादा न बढऩे देने की ही होती है।
इस लिहाज से सामान्य स्थितियों में इसे एक उपलब्धि के रूप में लिया जाता। लेकिन स्थितियां अभी सामान्य नहीं हैं। कोरोना और लॉकडाउन के डबल इंपैक्ट के चलते दुनिया भर में व्यापारिक गतिविधियां करीब-करीब बैठ गई हैं। ऐसे में करंट अकाउंट का पॉजिटिव होना जितनी राहत नहीं दे रहा, उससे ज्यादा चिंता पैदा कर रहा है। मई महीने के लिए जारी वित्त मंत्रालय की ताजा मैक्रो इकनॉमिक रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू बाजार में मांग की जबर्दस्त कमी के चलते आयात में 54.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
कारोबारी हलचलें दुनिया भर में प्रभावित हुई हैं, इसलिए इसका असर निर्यात पर भी पड़ा है। लेकिन निर्यात में इस अवधि में आई गिरावट मात्र 47.5 फीसदी आंकी गई। तो कुल मिलाकर इस तिमाही चालू खाते में हमें ऐसा फायदा हो सकता है, जिसकी इच्छा किसी ने नहीं जताई होगी। जब कोरोना वायरस का प्रकोप दिखना शुरू ही हुआ था, तभी से वाणिज्य विशेषज्ञ विश्व व्यापार और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके असर को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त करने लगे थे। लेकिन तब यह उम्मीद की जा रही थी कि एक-डेढ़ महीने में जब गर्मी अपना असर दिखाएगी तो पूरी दुनिया में न सही, कम से कम भारत में यह महामारी समाप्त हो जाएगी।
अब बीमारी के फैलाव ने वह उम्मीद तोड़ दी है, लेकिन अनलॉकिंग की प्रक्रिया शुरू कर दिए जाने से स्थिति यह बन रही है कि कोरोना से जंग लड़ते हुए अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने का काम भी चलता रहेगा। बावजूद इसके, करंट अकाउंट के मोर्चे पर हालात कुछ खास बदलने के आसार नहीं हैं। इसकी एक वजह यह है कि इकॉनमी में सुधार की प्रक्रिया रुक-रुक कर ही आगे बढ़ेगी। लेकिन दूसरी और ज्यादा टिकाऊ वजह चीन के साथ हमारे संबंधों में ऐतिहासिक गिरावट है, जिसके असर का हिसाब लगाया जाना बाकी है।
गलवान घाटी में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद दोनों देशों के बीच जैसा तनाव बन चुका है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में व्यापारिक गतिविधियों में कमी आना स्वाभाविक है, लेकिन इसके ब्यौरे भविष्य के गर्भ में हैं। एक तरफ चीन से हमारा व्यापार घाटा सबसे ज्यादा है, दूसरी तरफ चीन हमारा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर भी है। ऐसे में इस पड़ोसी देश के साथ आयात-निर्यात में कमी हमारे व्यापार घाटे को नीचे लाकर करंट अकाउंट में हमें थोड़ी और राहत दे सकती है, लेकिन इससे हमारी परेशानियां कम नहीं होंगी।